नम भूमि के संरक्षण से ही प्रकृति संरक्षण संभव


नम भूमि के संरक्षण से ही प्रकृति संरक्षण संभव

विज्ञान समिति प्रबुद्ध चिंतन प्रकोष्ठ के अन्तर्गत विज्ञान समिति सभागार में शनिवार को ‘‘उदयपुर क्षेत्र की झीलों का पारिस्थितिक स्वास्थ्य‘‘ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

 
विज्ञान समिति प्रबुद्ध चिंतन प्रकोष्ठ के अन्तर्गत विज्ञान समिति सभागार में शनिवार को “उदयपुर क्षेत्र की झीलों का पारिस्थितिक स्वास्थ्य” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष डॉ.के.एल.कोठारी ने की। कार्यशाला में पर्यावरणविद् मुख्य वन संरक्षक डॉ.एन.सी.जैन, भारतीय पर्यावरण समिति के उपाध्यक्ष डॉ.आर.के.गर्ग, वन संरक्षक डॉ. सतीश शर्मा एवं सेवानिवृत डीन (मत्स्य महाविद्यालय) डॉ.वी.एस.दुर्वे ने अपने विचार रखे।
डॉ. दुर्वे ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की नम भूमि से अवगत कराया। उन्होंने ग्रेटसाल्ट लेक आफॅ उटाह (अमेरिका) का उदाहरण देते हुए भारत के विभिन्न जलाशयों का उल्लेख कर उनके संरक्षण के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे क्षेत्रों में नमक, डामकर, मिथेन, तेल इत्यादि का उत्पादन किया जा सकता है।
डॉ. गर्ग ने कहा कि नम भूमि की गहराई 6 मीटर से अधिक नहीं होती। उन्होंने राजस्थान में रामसर समझौते के अनुसार केवलादेव व सांभर झील की नम भूमि को अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की बताया और कहा कि नम भूमि हमारे भूमिजल को बढ़ाने के साथ साथ शुद्धिकरण का कार्य भी करती है, उदयपुर की सभी झीले व आयड़ नदी भी नम भूमि के रूप में पहचानी जाती है।
उन्होंने विद्यार्थियों को छोटे-छोटे प्रोजेक्ट द्वारा नम भूमि को समझने एवं जल चक्र के विभिन्न आयामों का अध्ययन करने को कहा।
इस अवसर पर डॉ. जैन ने बताया कि शहर के आसपास करीब 500 छोटे-बडे जलाशय है जिनकों नम भूमि के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कहा कि मेनार गॉव के आसपास की नम भूमि पर अन्तर्राष्ट्रीय प्रवासी पक्षी आते है अतः इनकी पहचान भरतपुर के समकक्ष होनी चाहिए तथा इनका संरक्षण भी आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि शहर की फतहसागर, पिछोला, रूपसागर आदि में कभी फेमिंगो व क्रेन नामक पक्षी आते थे जिनकी संख्या नगण्य है और इसका कारण लगातार नम भूमि का हृास होना है।
इस अवसर पर दिल्ली से आए प्रकृति प्रेमी पीयूष एवं उनके दल ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर डॉ. सतीश शर्मा ने कहा कि नम भूमि जिन्दा है तो हम जिन्दा है और यह केवल पक्षी, पर्यटन एवं पानी तक ही सीमित नहीं है।
उन्होंने कहा कि जिस झील में बीस हजार से अधिक पक्षी आते है उसे रामसर घोषित करने का प्रावधान है। श्री शर्मा ने कहा कि प्रवासी पक्षियों कर शिकार न करें क्योंकि वे अपने साथ अनेक वायरस लाते है जो मानव जीवन के लिए हानिकारक है।
कार्यशाला में मीरा कन्या महाविद्यालय की छात्राओं सहित छः विद्यालयों के विद्यार्थियों एवं विभिन्न प्रकृति प्रेमियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन समिति के डॉ. एल.एल.धाकड एवं आभार एन.सी.बंसल ने व्यक्त किया।

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