सम्यक दर्शन के बाद होता है स्वभाव का प्रारम्भ: आचार्य कनकनन्दीजी
संसार में जीव द्रव्य जब तक मिथ्यात्मक अवस्था में रहता है तब तक उसकी विभाव पर्याय रहती है। किन्तु तत्वार्थ का श्रद्धान होने पर उसका स्वभाव में परिणमन प्रारम्भ होता है। उक्त विचार वैज्ञनिक धर्माचार्य श्री कनकनन्दी गुरूदेव ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
संसार में जीव द्रव्य जब तक मिथ्यात्मक अवस्था में रहता है तब तक उसकी विभाव पर्याय रहती है। किन्तु तत्वार्थ का श्रद्धान होने पर उसका स्वभाव में परिणमन प्रारम्भ होता है। उक्त विचार वैज्ञनिक धर्माचार्य श्री कनकनन्दी गुरूदेव ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने द्रव्य, गुण, पर्याय के स्वरूप का विस्तार से प्ररूपण करते हुए द्रव्यों की व्यापकता, उपादेयता व उनके सामान्य विशेष गुणों का व्याख्यान कर जीव द्रव्य के स्वभाव, विभाव, शुद्ध, अशुद्ध अवस्थाओं के विषय में बताया। आचार्यश्री ने जीव के ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि अनन्त गुणों की द्रव्यात्मक व आध्यात्मिक दृष्टि से महत्ता सिद्ध करते हुए ब्रह्माण्ड में सर्वश्रेष्ठ जीव द्रव्य की विराटता के माध्यम से मनुष्य भव की दुर्लभता व उपादेयता एवं भगवत शक्ति को जागृत करने की अनूठी प्रेरणा प्रदान की।
चातुर्मास कमेटी के भंवर मुण्डलिया ने बताया कि आचार्यश्री के लघु शिष्य श्रमण मुनि सुविज्ञसागरजी ने आचार्यश्री के महान व्यक्तित्व, कृतित्व, वैशिष्ट्य व अभिप्रेरणा पद्धति आदि के विषय में प्रकाश डाला। उपस्थित श्रावकों को आचार्यश्री की स्वरचित कवितात्रय की सारगर्भित विवेचना भी की।
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