नवरात्रि बने नारी रक्षा अभियान
नवरात्रि के नौ दिनों में हम नौ देवियों की पूजा करते हैं। हममें से न जाने कितने लोग नौ दिन व्रत, तप आराधना, इत्यादि देवी को प्रसन्न करने के लिये विभिन्न तरीकों से जतन करते हैं।
नवरात्रि के नौ दिनों में हम नौ देवियों की पूजा करते हैं। हममें से न जाने कितने लोग नौ दिन व्रत, तप आराधना, इत्यादि देवी को प्रसन्न करने के लिये विभिन्न तरीकों से जतन करते हैं।
बावजूद इसके जो इस धरती पर देवी के रूप में नारी है उसके अस्तित्व को खत्म करने की कोषिष करते हें। षुरू से जिस नारी षक्ति की पूजा होती आई फिर क्यों नारियों पर अत्याचार की तादाद बढ़ती जा रही? आज भी नारी पर होने वाले अत्याचार चाहे वह कन्या भू्रण के रूप में हो या बलात्कार, गेंगरेप, जैसे जघन्य अपराध द्वारा नारी के अस्तित्व को नौंचा जाता हैं एक तरफ नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा की जाती है तो दूसरी तरफ धरती पर जीती जागती नारी के वजूद को धूंधलाने का प्रयास किया जाता है।
नारी जाति को बार-बार असुरक्षित महसूस करवाकर उसे प्रताडि़त और अपमानित किया जाता है। इस नवरात्रि से यदि हर व्यक्ति ये प्रण ले कि मुझे नौ दिन नौ नारी या बेटी को बचाना है जो हमारे आस पास ही कन्या भू्रण, गैंगरेप, बलात्कार, तेजाब, दहेज प्रथा, इत्यादि जैसे अपराधों से पीडि़त है तो न जाने कितनी बेटियों और नारियों का अस्तित्व बच पाएगा। सही मायने में नवरात्रि को नया अर्थ तब ही मिलेगा जब यह नारी रक्षा अभियान का रूप लेगा।
स्वतंत्र भारत में आज भी महिलाओं से जुड़ी हिंसक घटनाओं ने बार-बार हम भारतीयों को षर्मसार किया है। नवरात्रि के नौ दिन नारियों के साथ हुई नाइनसाफियों की स्थितियों पर मंथन कर उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने का समय है। और जो महिलाएँ अब तक अत्याचार से संघर्श कर समाज मेें बदलाव लायी है वह पूजनीय है। ऐसी नारी स्वयं इस बदलाव की मिसाल देकर दूसरी नारी के लिये प्रेरणा का स्त्रोत बन सकती हैं। बस आवष्यकता है तो एक सही सोच और सही कदम की। जो इन्सान अपने घर या अपने घर के पास से ही पहल कर सकता है। फिर कहीं न कहीं एक अच्छी पहल एक अभियान का रूप लेती है।
आज भी हम देखे तो समाज में बहुत सी जगह डायन प्रथा, जैसी कुरितियँा प्रचलित है जो नारी जाति को अपमानित और षर्मसार करती है। तो कहीं जो नारी जिसके लिये अपने सिंदूर को सर पर सजाती है वहीं उसके सर पर सवार होकर दहेज इत्यादि के लिये उसे पीडि़त और अपमानित करता है। जो महिलाओं को कमजोर समझ कर उनके अस्तित्व और छवि पर प्रष्न चिन्ह लगाते है। इसलिये षायद माता पिता की सोच में परिवर्तन देखने को मिला की उनकी कन्या का दान बलिदान न बन जाए।
जरूरत है तो बस महिलाओं से जुड़े ऐसे मुद्दे उठाने व उनकी स्थितियों ने सुधार लाने की इसलिये नारी खुद अपनी षक्ति को पहचान कर अपना अस्तित्व समझे तो नारी षक्ति है, नारी भक्ति है पर नारी झुकती नहीं हैं।
लेख नुपुर झारोली द्वारा
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