डेंगूं और मलेरिया से निपटने के लिए क्लिनिकल चिकित्‍सा को प्रभावी बनाने की जरुरत


डेंगूं और मलेरिया से निपटने के लिए क्लिनिकल चिकित्‍सा को प्रभावी बनाने की जरुरत

भारत सरकार में स्‍वास्‍थ्‍य मन्‍त्रालय में सचिव तथा इंडियन काउंसिल फोर मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक डा वीएम कटोच ने कहा कि डेंगूं जैसी बीमारी से निपटने के लिए क्लिनिकल चिकित्‍सा को प्रभावी बनाने की जरुरत है।साथ ही शोध के जरिए नए टूल्‍स इजाद करने होंगे जो डेंगूं के साथ ही मलेरिया को रोकने में भी प्रमुख भूमिका निभा सके।

 

डेंगूं और मलेरिया से निपटने के लिए क्लिनिकल चिकित्‍सा को प्रभावी बनाने की जरुरत

भारत सरकार में स्‍वास्‍थ्‍य मन्‍त्रालय में सचिव तथा इंडियन काउंसिल फोर मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक डा वीएम कटोच ने कहा कि डेंगूं जैसी बीमारी से निपटने के लिए क्लिनिकल चिकित्‍सा को प्रभावी बनाने की जरुरत है।साथ ही शोध के जरिए नए टूल्‍स इजाद करने होंगे जो  डेंगूं के साथ ही मलेरिया को रोकने में भी प्रमुख भूमिका निभा सके। कटोच सोमवार की शाम यहां होटल इंदर रेसिडेन्‍सी में रोगवाहक बीमारियां नई सदी की बडी चुनौती विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्‍ट्रीय कांफ्रेन्‍स के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। यह कांफ्रेन्‍स मोहनलाल सुखाडिया विश्‍वविद्यालय के प्राणीशास्‍त्र विभाग के तत्‍वावधान में नेशनल एकेडमी आफ वेक्‍टर बोर्न डिजिज के  सहयोग से आयोजित की जा रही है। डा कटोच ने इस अवसर पर कहा कि हर वर्ष कई शोध होते है प्रोजेक्‍ट होते है लेकिन इनका लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाता। शोध निष्‍कर्षों की क्रियान्विति बहुत जरुरी है और इसके लिए युवा शोध कर्ताओं को आगे आना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि जब 1997 में पहली बार चिकनगुनिया रिपोर्ट हुआ तो हमने उसको बहुत हल्‍के से लिया इसी कारण वह पूरे देश में फैल गया। यदि समय रहते उसका टीका बनाया जाता और रोकने के लिए कारगर कदम उठाए जाते तो आज जैसी चिन्‍ताजनक स्थिति नहीं होती। उन्‍होंने मलेरिया, डेंगू ओर चिकनगुनिया से बचाव के तरीकों को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की वकालत की। मुख्‍य अतिथि विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के क्षेत्रीय सलाहकार डा लियोनार्ड ओरटेगा ने कहा कि रोगवाहक बीमारियों को रोकना पूरी दुनिया के लिए चुनौती है इसके लिए हमे जागरुक बनना होगा। कोटा विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो मधुसूदन शर्मा ने कहा कि ये रोग हमारी प्रगति के मार्ग में अवरोध पैदा कर रहे है। इनसे बचाव के लिए उन्‍होंने सुझाव दिया कि प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में इनसे बचने के पाठ शामिल किए जाए साथ ही आंगनवाडी शिक्षिकाओं को भी इसके लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इस अवसर पर नेशनल एकडमी फोर विक्‍टर बोर्न डिजिज के अध्‍यक्ष प्रो डी देवभगकर और महासचिव डा एम आर रणजीत ने रोग वाहक जनित बीमारियों को लेकर हो रहे शोध कार्यों की जानकारी दी। कार्यक्रम के अध्‍यक्ष सुविवि के कुलपति प्रो आई वी त्रिवेदी ने आशा व्‍यक्‍त की कि इस कांफ्रेन्‍स के जरिए निकलने वाले शोध निष्‍कर्षों से दक्षिण राजस्‍थान में इन रोगों की रोकथाम के लिए एक दिशा मिलेगी। कार्यक्रम के प्रारम्‍भ में प्रो महीप भटनागर ने सभी का स्‍वागत किया जबकि आयोजन सचिव डा आरती प्रसाद ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रमुख शोधकर्ताओं तथा चिकित्‍सा वैज्ञानिकों को पुरस्‍कृत भी किया गया। अतिथियों ने कांफ्रेन्‍स की स्‍मारिका का भी विमोचन किया ।

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