नन्द बाबू को समर्पित नववर्ष गोष्ठी


नन्द बाबू को समर्पित नववर्ष गोष्ठी

वि. यहाँ साहित्यिक और वैचारिक संस्था ‘‘संप्रेषण’’ के तत्वावधान में आयोजित नव वर्ष कविगोष्ठी विशेष तौर राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार प्रो. नन्द चतुर्वेदी को समर्पित रही।

 

साहित्यिक और वैचारिक संस्था ‘‘संप्रेषण’’ के तत्वावधान में आयोजित नव वर्ष कविगोष्ठी विशेष तौर राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार प्रो. नन्द चतुर्वेदी को समर्पित ही।

बीकानेर की जे़ल अधीक्षक एवं प्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती प्रीता भार्गव के मुख्य आतिथ्य में आयोजित इस गोष्ठी में नगर के प्रमुख कवियों ने अपनी ऊर्जावान कविताएँ हृदय से नन्द बाबू को समर्पित कर उन्हें याद किया।

गोष्ठी के शुभारंभ में कवयित्री शकुन्तला सरूपरिया ने सरस्वती वंदना- रोशनी के गीत गाऊँ चाँदनी के गाँव में, शारदे तुझको बुलाऊँ रागिनी के गाँव में’’ गाकर किया। साहित्यकार डॉ. ज्योतिपंुज ने ‘‘नेह निर्झर की फुहारें’’मुक्तक से काव्य पाठ शुरु कर ‘‘सन्नाटे की चीख’’ कविता में वर्तमान में सर्वहारा वर्ग की चेतना को व्यक्त किया, वहीं उनकी कविता ‘‘ दामिनी तुम जाग जाओ-2’’ नारी के आत्म सम्मान को जगाने की थी जो सभी को छू गई।

कवयित्री प्रीता भार्गव ने ‘‘जिजीविषा नामक रचना में नारी के बुलन्द हौसलों की बात करते हुए कहा ‘‘मैं हर सदी में हर औरत में तब्दील हो जाती हूँ। स्त्री शक्ति को समर्पित अपनी एक ओजस्वी कविता ’’अहिल्याएँ जाग उठीं धरा पर’’-के साथ उन्होंने हमेशा ही मायके से विदा ले जाती स्त्रियों के नाम कविता में कहा कि‘‘ ले जाया गया जब हमें/ बहुत दूर अपने घरों से/ हम अपने भीतर छिपा ले जाती हैं/ बिल्कुल साबुत अपना आपा! उनकी पहचान बन गई कविता ‘‘मैं शाप देती हूँ‘‘ को भी सभी उपस्थित साहित्यकारों ने आग्रह पूर्वक सुना। डॉ. श्रीनिवासन अय्यर ने अपनी एक कविता ‘‘मन ही सब कुछ’’ में मन की सुन्दर अभिव्यक्ति दी- ‘‘मन ही साँझ हुआ करता है/ उगता मन ही भोर हुआ करता है/ मन ही करता बाहुबली हमको/ मन ही तो कमज़ोर हुआ करता है।’’

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. भगवती लाल व्यास ने नई सदी के बदलते रंगों पर अपने तल्ख़ अन्दाज़ में कविता में कुछ इस प्रकार अभिव्यक्ति दी कि-‘‘ घडि़याँ बन्द पड़ीं बरसों से/समय को लक़वा मार गया/ काँटें नहीं सरकते आगे/ तारीख़ें आगे भागी जाती हैं। वहीं उनकी कविता ‘चबूतरी’’ में उन्होंने पीढि़यों के अन्तराल को बख़ूबी पेश किया- बुढि़याएँ रोज़ाना आती हैं चबूतरी पर/ जब वे नहीं आतीं तो/ उदास होती है चबूतरी और घर की बहुएँ भी। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. महेन्द्र भानावत ने अपनी कविता में श्री नन्द बाबू को जीवन्त करते हुए अपनी दूसरी कविता की सार्थक अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार दी-‘‘ मैंनें आँख का ऑपरेशन कराया/ घर आकर नातिन युक्ता अपने कक्ष में ले गई और बोली-दूसरी आँख तो ठीक है नाना! उसे खोल दीजिये ना/ मैं बोला आस और विश्वास की डोर मेें/ दोनों एक- दूसरे से बंधी हुई हैं/ जब माँ ग़मगीन हो तो मौसी के घर चूल्हा कैसे जलेगा’?’’ सुप्रसिद्ध गीतकार श्री किशन दाधीच ने ‘‘चतुष्पदी’’ पेश कर नंद बाबू की कमी का शिद्दत से अनुभव कराया कि ‘‘ मुझको डर था तुम जाओगे/एक दिवस सबके मनबसिया/नन्द तुम्हारे बिन गायेंगें/कैसे हम होरी के रसिया।

यमुना तट सो यो पिछौलो/रूप फतह को फतह सागर/नन्द लुटाएँ मोती आखर/तुम कविता के शिखर सिन्धु हो/तुम कवित्त की कस के कसिया।’’ गोष्ठी का संचालन कर रहीं शकुन्तला सरूपरिया ने अपनी ग़ज़ल-‘‘औलादों की फि़क्ऱ मंदी में माथा भीग जाता है- जो बारिश से बचाता है वो छाता भीग जाता है।’’ से अपना रंग जमाया।

‘‘मददगार’ समाचार पत्र के संपादक श्री उग्रसेन राव ने नारी को समर्पित कविता- ‘‘गीत गोविन्द, भारत माँ और रासौ’’ से सर्वहारा स्त्री के श्रम और पसीने के सौन्दर्य को रेखांिकंत किया ।

संप्रेषण की वरिष्ठ कवयित्री व गोष्ठी की मेज़बान डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ ने ‘मधुमती पृथ्वी’’ में कला और सृजन के अनहद नाद को धारण करने वाली पृथ्वी और काल पुरुष के संवाद को दार्शनिक अभिव्यक्त दी। उनकी कविता‘‘उत्तर कनुप्रिया’’ में राधा-भाव के गहनतम रंगो को उजागर करते हुए ने गोष्ठी को नई ऊँचाइयाँ दीं।देश के प्रसिद्ध कथाकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर ने अपनी कविता-‘‘ बेमौसम सी यादें’’ और ‘‘अधबुनी कहानी’’ सुनाकर अपने कवि रूप से परिचय कराया। धन्यवाद की रस्म डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ ने अदा की।

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal

Tags