एन एल सी पी फेल : झील का पानी बनना चाहिए था नीला, बन रहा काला-भूरा
राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना का उद्देश्य झील जल् की गुणवत्ता में सुधार लाकर मूल झील पर्यावरण तंत्र की बहाली था। परियोजना के उद्घाटन अवसर पर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री ने परियोजना समाप्ति पर झील के पानी के "नीला कच " हो जाने की घोषणा की थी। लेकिन पानी नीला कच नही बन काला कच बनता जा रहा है। परियोजना के वास्तविक लाभ प्राप्त नही हुए हैं। यह विचार विद्या भवन पोलीटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने टेरी स्कूल ऑफ एडवांस स्टडीज, दिल्ली के शोधार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किये।
राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना का उद्देश्य झील जल् की गुणवत्ता में सुधार लाकर मूल झील पर्यावरण तंत्र की बहाली था। परियोजना के उद्घाटन अवसर पर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री ने परियोजना समाप्ति पर झील के पानी के “नीला कच ” हो जाने की घोषणा की थी। लेकिन पानी नीला कच नही बन काला कच बनता जा रहा है। परियोजना के वास्तविक लाभ प्राप्त नही हुए हैं। यह विचार विद्या भवन पोलीटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने टेरी स्कूल ऑफ एडवांस स्टडीज, दिल्ली के शोधार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किये।
झील संरक्षण समिति से जुड़े मेहता ने कहा कि 2008 -09 में प्रारम्भ योजना निर्धारित तीन साल के बजाय नौ सालों में जाकर पूरी हुई। एक सौ बीस करोड़ खर्च होने के बाद भी स्थिति में विशेष सुधार नही हुआ है। अतः परियोजना के परिणामों व लाभों का वास्तविक सामाजिक पर्यावरणीय अंकेक्षण होकर मूल्यांकन करना जरूरी है।
उल्लेखनीय है कि टेरी के पर्यावरण विभाग के शोधार्थियों ने दो दिन झीलों का भ्रमण कर एन एल सी पी के परिणामों का आंकलन किया है। शोधार्थियों ने झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल के साथ सम्पूर्ण झील क्षेत्र का निरीक्षण किया।
शोधार्थी अनन्या तथा आराद्रा ने इस बात पर क्षोभ जताया कि योजना के नाम पर झील की मूल सीमाओं को घटाकर झीलों को छोटा कर दिया गया है। मणिकांत तथा सन्नी संकर ने कहा कि योजना से सतही व भूजल दोनों की गुणवत्ता में सुधार आना चाहिए था लेकिन झील क्षेत्र में कई हैंडपम्प प्रदूषित भूजल उगल रहे है।
निहारिका सिंह व आदित्य ने कहा कि डीवीडिंग मशीन से निकली खरपतवार व झील में फेंका गया कचरा झील पेटे में जलाया जाता है। यह कानूनी व पर्यावरणीय दृष्टि से गलत है । कुछ स्थानों पर गंदा पानी झील में जा रहा है। ईशान, तान्या व आकांक्षा ने कहा कि झीलों के आसपास के पहाड़ हरे भरे वृक्षों से आच्छादित होने चाहिए थे लेकिन कई जगह पहाड़ो को छील कर निर्माण हो रहे है।
विद्या भवन रूरल इंस्टीट्यूट के सलाहकार अभिनव पंड्या व टेरी के वरिष्ठ फेलो प्रत्यय ने कहा कि भारी राशि के खर्च के बावजूद झील इको सिस्टम में निर्धारित सुधार नही आना अनेक प्रश्न खड़े करता है।
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