संवत्सरी पर्व ही नहीं, आत्म चिंतन का दिन भी : कनकश्रीजी


संवत्सरी पर्व ही नहीं, आत्म चिंतन का दिन भी : कनकश्रीजी

साध्वी श्री कनकश्रीजी ने कहा कि संवत्सरी सिर्फ एक परम्परा या पर्व नहीं है बल्कि आत्म चिंतन का दिन भी है। आज का दिन श्रावक-श्राविकाओं में स्वयं एक प्रेरणा जगाता है कि हम स्वयं को आराध्य के प्रति समर्पित कर दें। संवत्सरी को केवल परम्परा के रूप मे ही न मनाएं बल्कि प्रायोगिक रूप से जीवन में उतारें।

 
संवत्सरी पर्व ही नहीं, आत्म चिंतन का दिन भी : कनकश्रीजी

साध्वी श्री कनकश्रीजी ने कहा कि संवत्सरी सिर्फ एक परम्परा या पर्व नहीं है बल्कि आत्म चिंतन का दिन भी है। आज का दिन श्रावक-श्राविकाओं में स्वयं एक प्रेरणा जगाता है कि हम स्वयं को आराध्य के प्रति समर्पित कर दें। संवत्सरी को केवल परम्परा के रूप मे ही न मनाएं बल्कि प्रायोगिक रूप से जीवन में उतारें।

वे शुक्रवार को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पर्युषण के आठवें दिन संवत्सरी पर धर्मसभा को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि पूरे जैन समाज की सामूहिक रूप से एक संवत्सरी मनाने के लिए आचार्य तुलसी ने कई प्रयास किये। उन्होंने कहा कि आज का दिन अद्भुत है। देश-विदेश में रहने वाले जैन श्रावक भी संवत्सरी के प्रति विशेष आदर रखते हैं। पर्युषण के अंतिम दिन साध्वी कनकश्रीजी के सानिध्य में 4000 श्रावक-श्राविकाओं ने प्रवचनों का लाभ लिया।

साध्वीश्री ने श्रावक-श्राविकाओं को मंगल पाथेय देते हुए कहा कि हम जिस रोज अपनी आत्मा के निकट रहते हैं, तब पर्युषण मनाया जाता हैं। पयुर्षण के आठ दिन एक साधना हैं, यज्ञ है। संवत्सर यानि 12 महीनों का एक दिन संवत्सरी यह प्रेरणा देता हैं कि 12 महीनों में जो भी गलतियां की हैं, जो भी परिवर्तन हुए हैं उन पर आत्म चिंतन करे, आत्मावलोकन कर उन्हें दूर करें। प्रवचनों की शृंखला में साध्वी वीणा कुमारी, साध्वी मधुलता, मधुलेखा एवं साध्वी समितिप्रभा ने भी श्रावक-श्राविकाओं को प्रवचनों से लाभान्वित किया।

पर्युषण के साथ चल रही भगवान महावीर की जन्मांतर यात्रा को आगे बढ़ाते हुए साध्वीश्री ने बताया कि भगवान महावीर ने माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही संयम व सामायिक जीवन जीना शुरू किया और अगले एक वर्ष दान दिया। जब 2 वर्ष पूरे हुए तब वे संयमित जीवन की ओर अग्रसर हुए। हजारों देवताओं ने मिलकर भगवान महावीर की दीक्षा के लिए चन्द्रप्रभा नामक शिलिका बनाई। इन्द्र आदि देवतागण दीक्षा महोत्सव मे शामिल हुए।

भगवान महावीर ने शिलिका को उठाने का पुण्य कार्य मानवों को प्रथम रूप से दिया क्योंकि उन्हें मानवों का ही कल्याण करना था। भगवान महावीर ने वस्त्र, आभूषणों का त्याग करके जीवन की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में प्रवेश किया। संयमित जीवन स्वीकार करते ही सिंहासन से उतरकर धर्म की राह पर चल निकले।

सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि साध्वीश्री ने आठ एवं इससे अधिक उपवास करने वाले 31 श्रावक-श्राविकाओं को प्रत्याख्यान कराया। फत्तावत ने बताया कि चार हजार से अधिक श्रावकों ने पूर्ण निराहार रहकर उपवास किये। शनिवार सुबह सामूहिक पारणा होगा तथा वर्ष भर में जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमायाचना भी की जाएगी।

फत्तावत ने बताया कि श्रावक समाज का स्वागत करते हुए आगामी एक वर्ष की कार्ययोजना प्रस्तुत करते हुए बताया कि सभा की नवगठित कार्यकारिणी का शपथ ग्रहण रविवार को अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में होगा। इसमें पंचायतीराज मंत्री गुलाबचंद कटारिया मुख्य अतिथि होंगे।

साध्वी मधुलता ने श्रावक-श्राविकाओं से संकल्प करने को कहा कि 7 सितम्बर को 212 वां भिक्षु निर्वाण महोत्सव पर सामूहिक रूप से ‘ऊँ भिक्षु, जय भिक्षुÓ के सवा करोड़ मंत्रों का जाप करें। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से अनुरोध किया कि सौ परिवार सवा-सवा लाख मंत्रों का जाप करें या यथासम्भव घर के सदस्यों के अनुपात में मंत्र जाप अवश्य करें। मंगलाचरण सोनल सिंघवी एवं समूह ने किया।

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