विद्यापीठ मटेरिया मेडीका पर एक दिवसीय कार्यशाला
होम्योपेथी में सबसे पहले रोगी केा समझ कर फिर रोग की जड तलाशी जाती है। होम्योपेथ मानता है कि मन में उठने वाले विचार और भावनाओं के कारण ही रोग की उत्पत्ति होती है इसलिए इस पद्धति में सबसे पहले रोगी की भावना और उसके दिमाग में उठने वाले विचारों पर नियंत्रण का प्रयास किया जाता है। यह कहना है डॉ. सुमित सिंह मावी का।
होम्योपेथी में सबसे पहले रोगी केा समझ कर फिर रोग की जड तलाशी जाती है। होम्योपेथ मानता है कि मन में उठने वाले विचार और भावनाओं के कारण ही रोग की उत्पत्ति होती है इसलिए इस पद्धति में सबसे पहले रोगी की भावना और उसके दिमाग में उठने वाले विचारों पर नियंत्रण का प्रयास किया जाता है। यह कहना है डॉ. सुमित सिंह मावी का।
वे जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक होम्योपेथी चिकित्सा महाविद्यालय में हुए एक दिवसीय मटेरिया मेडीका विषय पर आयोजित राज्य स्तरीलय कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि होम्योपेथी में सभी गंभीर बिमारियोे का इलाज है। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि होम्योपेथी चिकित्सा पद्धति का आम जन में विश्वास निरंतर बढ़ता जा रहा है।
होम्योपेथी द्वारा गंभीर बिमारी जैसे कैंसर, हद्धयरोग, डायबिटिज, रक्तचाप आदि का ईलाज संभव हुआ है। समारोह के विशिष्ठ अतिथि अधिष्ठाता अरूण पानेरी, प्राचार्य राजन सुद थे। स्वागत उद्बोधन निदेशक डॉ. अमिया गोस्वामी ने किया। आयोजन सचिव डॉ. निवेदिता ने बताया कि सेमीनार में राज्यभर के 237 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
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