पैंसठ साठ साल में जिले से केवल 5 महिलाएं बनीं विधायक
आदिवासी बहुल उदयपुर जिले में महिला शिक्षा की कमी, आर्थिक व सामाजिक पिछड़ापन एवं राजनीतिक जागरूकता की कमी के रहते आजादी के 65 वर्ष गुजरने के
आदिवासी बहुल उदयपुर जिले में महिला शिक्षा की कमी, आर्थिक व सामाजिक पिछड़ापन एवं राजनीतिक जागरूकता की कमी के रहते आजादी के 65 वर्ष गुजरने के बावजूद भी केवल 5 महिलायें ही विधानसभा सदस्य बन पाई। वर्तमान में उदयपुर जिले से दो महिलाएं विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रही हैं और दोनों ही आसन्न विधानसभा चुनाव में पुन: कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव लड़ रही हैं।
इनमें लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत भीम से कांग्रेस के टिकट पर तीन बार विधायक चुनी गई। कुछ महिलाएं एकाधिक बार विधायक चुनी गई, लेकिन कुल मिलाकर चेहरे अब तक 5 ही रहे।
सर्वप्रथम उदयपुर जिले की भीम विधानसभा (सामान्य) सीट से साहित्यकार लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत ने कांग्रेस के टिकट पर 1962 में विधानसभा चुनाव लड़ा एवं विजयी रही। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी जनसंघ के उम्मीदवार सुन्दरलाल को 12 हजार 955 मतों से हराया।
लक्ष्मी कुमारी 1967 के चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर भीम से विधायक चुनी गई। इस चुनाव में उन्होंने जनसंघ के शंकरलाल को 14 हजार 948 मतों से हराया। चूण्डावत तीसरी बार 1980 में कांग्रेस के टिकट पर ही फिर भीम की विधायक बनी। इस बार उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार रासासिंह रावत को तीन हजार 366 मतों से पराजित किया।
उल्लेखनीय है कि चूण्डावत ने कांग्रेस के टिकट पर पहली बार भीम विधानसभा क्षेत्र से 1957 में चुनाव लड़ा था लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और वे निर्दलीय उम्मीदवार फतहसिंह से दो हजार 244 मतों से हार गई।
लक्ष्मीकुमारी के बाद उदयपुर शहर विधानसभा (सामान्य) से लेखिका डॉ. गिरिजा व्यास 1985 में विधानसभा के लिए चुनी गई। जिले का यह संयोग कहा जा सकता है कि दोनों महिलाएं साहित्य से सरोकार रखती हैं। डॉ. व्यास मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर थीं।
उन्होंने 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार गुलाबचंद कटारिया को एक हजार 120 वोटों से हराया। दूसरी बार 1990 में उदयपुर शहर से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा के उम्मीदवार शिवकिशोर सनाढ्य से चुनाव हार गई। उसके बाद डॉ. व्यास ने संसद की तरफ अपना कदम बढ़ाया।
डॉ. गिरिजा व्यास पहली बार 1991 में उदयपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद बनी। उन्होंने अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी गुलाबचंद कटारिया को 26 हजार 623 मतों से हराया। सन्ï 1996 के लोकसभा चुनाव में वे दूसरी बार उदयपुर से सांसद चुनी गई। इस बार उन्होंने भाजपा के मेवाड़ महामंडलेश्वर मुरलीमनोहरशरण शास्त्री को 40 हजार मतों से हराया।
सन् 1998 के लोकसभा चुनाव में वे हार गई जबकि 1999 के लोकसभा चुनाव में वे फिर विजयी रही। लोकसभा चुनाव 2004 में वे भाजपा की उम्मीदवार किरण माहेश्वरी से पराजित हुई।
विधानसभा चुनाव 2003 के आते-आते राजनीति में महिलाओं की जागरूकता में मामूली परिवर्तन देखने को मिला। विधानसभा चुनाव 2003 में उदयपुर जिले से छह महिलाओं ने चुनाव लड़ा किन्तु उनमें से मात्र एक विजयी रही। यह महिला श्रीमती वंदना मीणा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित उदयपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से चुनी गई।
मीणा ने 2003 में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा एवं अपने निकटतक कांग्रेस प्रत्याशी खेमराज कटारा को दो हजार 551 मतों से हराया। श्रीमती वंदना मीणा पहली महिला हैं जो उदयपुर जिले की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लडक़र विधानसभा में पहुंची। विधायक बनने से पूर्व मीणा उदयपुर जिले की जिला प्रमुख भी रहीं।
वर्तमान में उदयपुर जिले से ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से सज्जन कटारा और सलूम्बर से सांसद रघुवीर मीणा की पत्नी बसन्तीदेवी मीणा विधायक हैं। वर्ष 2008 में कांग्रेस की सज्जन देवी कटारा ने बीजेपी की वंदना मीणा को 10 हजार 696 मतों से शिकस्त दी। इसी वर्ष सलूम्बर सीट से रघुवीर मीणा ने बीजेपी के नरेन्द्र मीणा को 23 हजार 498 मतों से पराजित किया लेकिन अगले ही वर्ष रघुवीर मीणा को सांसद के रूप में चुनाव लडऩे का टिकिट मिला जो जीत कर सांसद बन गए। उनकी जगह हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी बसन्ती देवी मीणा को सलूम्बर से कांग्रेस का टिकिट दिया गया जिन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के अमृतलाल मीणा को 3098 मतों से पराजय दी।
सज्जन देवी कटारा और बसन्ती देवी दोनों ही पुन: कांग्रेस के टिकिट पर आसन्न विधानसभा चुनाव में मैदान में है।
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