जीवन्ता हॉस्पिटल में मात्र 520 ग्राम के शिशु को मिला नया जीवनदान


जीवन्ता हॉस्पिटल में मात्र 520 ग्राम के शिशु को मिला नया जीवनदान

नन्हीं सी जान के एक सौ दो दिनों के जीवन व मौत के बीच चले लम्बे संघर्ष के बाद आखिरकार शहर के हिरन मगरी सेक्टर 5 स्थित जीवन्ता चिल्ड्रन हॉस्पिटल चिकित्सकों ने प्रदेश के सबसे कम वजन एवं कम दिन के प्रीमेच्योर नवजात शिशु का सफल इलाज करते हुए न केवल उस नन्हीं सी जान वरन् उसकी माता को भी खतरे से निकालने में सफलता हासिल की।

 
जीवन्ता हॉस्पिटल में मात्र 520 ग्राम के शिशु को मिला नया जीवनदान

नन्हीं सी जान के एक सौ दो दिनों के जीवन व मौत के बीच चले लम्बे संघर्ष के बाद आखिरकार शहर के हिरन मगरी सेक्टर 5 स्थित जीवन्ता चिल्ड्रन हॉस्पिटल चिकित्सकों ने प्रदेश के सबसे कम वजन एवं कम दिन के प्रीमेच्योर नवजात शिशु का सफल इलाज करते हुए न केवल उस नन्हीं सी जान वरन् उसकी माता को भी खतरे से निकालने में सफलता हासिल की।

हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. सुनील जांगिड़ ने आज यहाँ होटल उदय मेरिडियन में अयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि हरियाणा के नारनौल निवासी माया और देवसिंह परिवर्तित नामद्ध दम्पति को शादी के 18 साल बाद जुड़वाँ बच्चे होने का पता चला लेकिन 24 सप्ताह यानि साढ़े पांच महीने के गर्भावस्था काल में ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी, गर्भाशय का पानी लगभग खत्म हो गया था। ऐसी नाजुक स्थिति में माया को हरियाणा से उदयपुर शिफ्ट किया गया। जांच के दौरान पता चला कि बच्चा बच्चेदानी के मुहं में फस गया था एवं रक्तस्त्राव होने लग गया। बच्चादानी फटने के डर के कारण आपातकालीन सिजेरियन ऑपरेशन से जुड़वाँ बच्चों का जन्म 29 मई 2017 हुआ। जन्म के वक्त पहले शिशु का वजन 520 ग्राम और दूसरे का मात्र 480 ग्राम था। जन्म पर शिशु खुद से श्वांस नहीं ले पा रहे थे,उनका शरीर नीला पड़ता जा रहा था।

जीवन्ता चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉ सुनील जांगिड़, डॉ निखिलेश नैन एवं उनकी टीम ने डिलीवरी के तुरंत पश्चात नवजात शिशु के फेफड़ों में नली डालकर पहली श्वांस दी एवं नवजात शिशु इकाई एनआईसीयू में अति गंभीर अवस्था में वेंटीलेटर पर भर्ती किया। शादी के 18 वर्ष बाद मिले दोनों बच्चें ही इस दम्पति की आखरी उम्मीद थी और वे हर हालत में इन्हें बचाना चाहते थे।

डॉ. आर. के. अग्रवाल ने बताया कि ने बताया कि इतने कम वजन के शिशु को बचाना पूरी टीम के लिये एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। राजस्थान में इतने छोटे एवं कम वजन के नवजात शिशु के अस्तित्व की कोई रिपोर्ट देखने को नहीं मिली है।

डॉ. एस.के.टांक ने बताया कि इतने कम दिनों के पैदा हुए बच्चें का शारीरिक रूप से सर्वांगीण विकास पूरा नहीं हो पाता है। शिशु के फेफड़े, दिल, पेट की आंते, लीवर, किडनी, दिमाग, आँखें, त्वचा आदि सभी अवयव अपरिपक्व, कमजोर एवं नाजुक होते है और इलाज के दौरान काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।

डॉ. प्रदीप सूर्यवंशी ने बताया कि बेहतरीन ईलाज दिये जाने के बावजूद भी मात्र 20-30% ही इस प्रकार के शिशु के बचने की संभावना होती है और केवल 5-10% शिशु मस्तिष्क क्षति हुए बिना जीवित रह जाते है। जन्म के बाद से ही उनका त्वरित करते हुए फेंफड़ों के विकास के लिए फेफड़ों में दवाई डाली गयी। नियमित रूप से मस्तिष्क एवं ह्रदय की सोनोग्राफी भी की गयी ताकि यह पता लगाया जा सकें की किसी प्रकार को कोई आतंरिक रक्तस्त्राव तो नहीं हो रहा है।

जुड़वां बच्चे का दूसरा 480 ग्राम वजनी शिशु की कि गई प्रारंभिक सोनोग्राफी में पता चला की उसके दिमाग में आंतरिक रक्तस्त्राव हुआ है, उसका ईलाज किये जाने के बावजूद वह बच नहीं सका। 520 ग्राम के शिशु के खून की कमी थी, खून में संक्रमण था, दिल के दो धमनियों को जोड़नेवाली नस पीडीए खुली थी इस कारण दिल एवं फेफड़ों पर सूजन आ रही थी। प्रारंभिक दिनों में शिशु की नाजुक त्वचा से शरीर के पानी का वाष्पीकरण होने के वजह से उसका वजन घटकर 420 ग्राम तक आ गया था। यह चिकित्सकों के लिये और जटिल केस बन गया। पेट की आंतें अपरिपक्व एवं कमजोर होने के कारण, दूध का पचन संभव नहीं था। इस स्थिति में शिशु के पोषण के लिए उसे नसों के द्वारा सभी आवश्यक पोषक तत्व यानि ग्लूकोज, प्रोटीन्स एवं वसा दिए गए। धीरे धीरे नली के द्वारा बून्द बून्द करके दूध दिया गया। शिशु को कोई संक्रमण न हो, इसका भी विशेष ध्यान रखा गया।

डॉ सुनील जांगिड़ ने बताया कि शुरुआत के 70 दिनों तक श्वसन प्रणाली एवं मस्तिष्क की अपरिपक्वता के कारण , शिशु श्वांस लेना भूल जाता था और उसे कृत्रिम श्वांस की जरुरत पड़ती थी। चिकित्सकों की टीम द्वारा शिशु की 102 दिनों तक आईसीयू में देखभाल की गयी।. शिशु के दिल, मस्तिष्क, आँखों का नियमित रूप से चेक अप किया गया। अब उसका वजन 1710 ग्राम हो गया है। वह स्वस्थ है और रविवार को घर जा रहा है।

डॉ. सुनील जांगिड़ ने बताया कि नवीनतम अत्याधुनिक तकनीक, अनुभवी नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर्स व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ की मेहनत से अब 500 से 600 ग्राम के प्रीमैचुअर शिशु का बचना भी सम्भव हो चुका है। जीवन्ता हॉस्पिटल ने पिछले 2 साल में कई 6 माह के गर्भावस्था एवं 600 से 700 ग्राम के बच्चों का सफल ईलाज किया है।

इससे पूर्व 2015 में जीवन्ता हॉस्पिटल ने 607 ग्राम के शिशु का सफल इलाज किया है. वह बच्ची आज 2 वर्ष की हो गयी है एवं पूर्ण रूप से स्वास्थ्य और सामान्य जीवन जी रही है।

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal

Tags