जैनविधा एवं प्राकृत विभाग में व्याख्यानमाला का आयोजन
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के जैनविधा एवं प्राकृत विभाग द्वारा आयोजित विस्तार व्याख्यानमाला में अमेरिका से भौतिक शास्त्र विषय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पारसमल अग्रवाल जैनविधा की तातिवक मीमांसा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आत्मा को बाहय एवं आभ्यंतर इन दो रूपों में देखा जा सकता है।
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के जैनविधा एवं प्राकृत विभाग द्वारा आयोजित विस्तार व्याख्यानमाला में अमेरिका से भौतिक शास्त्र विषय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पारसमल अग्रवाल जैनविधा की तातिवक मीमांसा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आत्मा को बाहय एवं आभ्यंतर इन दो रूपों में देखा जा सकता है। जब हम आत्मा के बाहय रूप को देखते हैं तब समस्त कि्रया-कलाप के रूप में उसकी गतिशीलता देखी जाती है तथा आभ्यंतर जगत में जीव आत्मा का रूप भावनाओं, संवेदनाओं, वैचारिक धरातल के रूप में आत्मा की सकिगयता देखी जाती है।
विस्तार व्याख्यानमाला के मुख्य अतिथि, पूर्व निदेशक एवं पूर्व संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर प्रेमसुमन जैन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए व्याख्यान के विषय को बहुत बारीकी से स्पष्ट किया, उन्होंने जैन संस्कृति के विभिन्न आयामेां तथा जैनाचार एवं दर्शन परक सिद्धांतो को समसामयिक रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने अहिंसा, अनेकान्त, स्याद्वाद जैसे जैन सिद्धान्तों की समसामयिकता को स्पष्ट किया। जैनविधा एवं प्राकृत विभाग के अध्यक्ष डॉ जिनेन्द्र कुमार जैन ने इटली सें पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि जैनविधा एवं प्राकृत विभाग अपने स्थापनाकाल से ही जैनविधा एवं प्राकृत साहित्य पर शोध कार्य कराने के लिए कृतसंकलिपत है। क्योंकि जैन दर्शन की तातिवक संदृषिट आज भी समसामयिक एवं सार्वभौमिक है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं कला महाविधालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर शरद श्रीवास्तव ने जैनदर्शन की गुढ़तम वैशिष्टय को उजागर करते हुए कहा कि आज हम जिस माहौल में जी रहे हैं उसमें यदि जैन सिद्धान्तो की अनुपालना की जाये तो निशिचत ही हमारा वर्तमान एवं भविष्य दोनों की सुरक्षित हो सकतें है। अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य जैसे सिद्धान्तों की सदैव प्रासंगिकता बनी रहती है। आवश्यकता है कि हम अपनें कर्तव्यों के प्रति सजग रहें।
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