मौलिकता को नष्ट करने वाला परिवर्तन सर्वनाश का स्वरूप
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि व्यक्ति वस्तु जो भी है, जहा भी है उनमें परिवर्तन तो होता ही रहता है किन्तु परिवर्तन कैसा होता है, यह चितंन का विषय है।
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि व्यक्ति वस्तु जो भी है, जहा भी है उनमें परिवर्तन तो होता ही रहता है किन्तु परिवर्तन कैसा होता है, यह चितंन का विषय है।
एक परिवर्तन वस्तु और व्यक्ति के वास्तविक स्वरूप को उजागर करता हुआ उसकी विशिष्टताओं को शत: गुणित कर देता है तो दूसरा ऐसा भी परिवर्तन होता है जो व्यक्ति और वस्तु की वास्तविकता को लगभग समाप्त ही कर देता है।
वे आज पंचायती नोहरे में आयोजित विशाल धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जो परिवर्तन मौलिकता को नष्ट-भ्रष्ट कर दे, वह परिवर्तन सर्वनाश स्वरूप होता है। व्यक्ति के जीवन में भी यदि ऐसा परिवर्तन आए तो वह मानव नही रह कर दानव भी बन सकता है। मानव जब जन्म लेता है कुछ बड़ा होता है वहा तक वह अनेक अच्छाइयों का भंड़ार बना रहता है। मानवता उसके जीवन में साकार बनकर उभरती है किन्तु कुछ और बड़ा हो जाने के बाद अक्सर उसमें वैकारिक परिवर्तन आने लगता है। छल, चालाकी और अहंकार वे मुख्य दुर्गुण है जो व्यक्ति को शैतान के रूप में परिवर्तित कर देते है।
हमारें शास्त्रों में आत्मा को परमात्मा माना है। वैष्णवमत में तो जड़ ‘चेतन जग जीव सब, सकल राममय जानि’ इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक आत्मा में परमात्मा का ही रूप है। यही कारण है कि सच्चा वैष्णव वृक्षों और पहाड़ो को भी परमात्मा जानकर नमन करता है। मुनि ने बताया कि भारत के बाहर दूर युरोपीय और अन्य देशो में आत्मा को कहीं भी इतना महत्व नहीं देते है। हमारे यहां आत्मा को श्रेैष्ठतम पदार्थ माना गया है।
धर्म की तरफ बदलना ही वह सकारात्मक बदलाव होता है जो आत्मा को चिरन्तन सत्य का सच्चा द्वार दिखला देता है। आज समाज और राष्ट्र में जो संक्लेश और कठिनाइयां व्याप्त है उसका एक मात्र कारण है व्यक्ति का अपने प्रति सतर्क नही रहना। यह सत्य है कि आज व्यक्ति प्राचीन व्यक्तियो की अपेक्षा अधिक सतर्क है किन्तु अपने प्रति नही। अपने भौतिक आकर्षणो के प्रति व्यक्ति अधिक सतर्क हो सकता है। किन्तु वह उन अर्थो में सतर्क नही कि उसमें परिवर्तन कैसा र्घिटत हो रहा है।
मुनि जी का कहना था कि परिवर्तन तों मानव जीवन में आता है वह इतना धीरे से और क्रमश: सहजता से आता है कि उसे विशेष घटना के रूप में लिया ही नही जा सकता किन्तु क्रमश: और धीरे से होने वाले यें छोटे छोटे से परिवर्तन यदि वे भावात्मक है तो व्यक्ति का मौलिक स्वरूप ही वह परिवर्तन हो जाएगां। मुनि ने बताया कि ऐसे परिवर्तन चाहे तत्काल पहचानना चाहिए और उन्हे जड़ से उखाडक़र फेंक देने चाहिए जिससे उनके विषैले फलो से आप और आपकी संतान बच पाएं। महामंत्री हिम्मतसिंह बड़ाला ने कार्यक्रम का संचालन किया।
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