सिद्ध जीवों का सुख उपमा रहित – आचार्य कनकनन्दी जी
आचार्यश्री कनकनन्दी ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों को मुक्त जीवों के स्वाधीन सुख के बारे में बताते हुए कहा कि सिद्धों का सुख आत्मा से ही उत्पन्न होता है तथा अतिशय से युक्त होता है। समस्त बाधाओं से रहित अत्यन्त विशाल व विस्तीर्ण होता है।
आचार्यश्री कनकनन्दी ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों को मुक्त जीवों के स्वाधीन सुख के बारे में बताते हुए कहा कि सिद्धों का सुख आत्मा से ही उत्पन्न होता है तथा अतिशय से युक्त होता है। समस्त बाधाओं से रहित अत्यन्त विशाल व विस्तीर्ण होता है।
आचार्यश्री ने कहा कि वृद्धि एवं हृास रहित इन्द्रिय विषयों से रहित स्वाभाविक होता है। दु:ख रूप विरोधी धर्म से सदा रहित होकर अन्य बाह्य निमित्त या सामग्रियों क अपेक्षा से रहित उपमा से रहित अनन्त सुख होता है। विनाश रहित होकर सदा बना रहता है। इसलिए सुख का महात्म्य सर्वोत्कृष्ट है और वह अनन्तकाल तक रहता है। इन्द्र आदि के सुख से भी बढ़ कर है इसलिए कर्मों के सर्वथा नाश होने से वह सिद्ध भगवान के ही होता है।
अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद कोठारी ने बताया कि आचार्यश्री कनकनन्दीजी गुरूदेव की प्रात:कालीन धर्मसभा में श्रावकों के साथ ही बड़े- बड़े विद्वान, साहित्यकार, प्रोफेसर एवं सुधि वैज्ञानिक भी उपस्थत हो रहे हैं तथा वह गुरूदेव से विशेष ज्ञानार्जन कर रहे हैं।
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