कविता: मेरा देश… अपना देश!


कविता: मेरा देश… अपना देश!

देश में फ़ैल रही असहिष्णुता, अराजकता और साम्प्रदायिकता पर अपने विचारो को इस कविता में अभिव्यक्त किया है उदयपुर की नाज़नीन अली ने. नाज़नीन हाल में विदेश में रहती है पर अपनी जन्मभूमि से अत्यंत लगाव और राजनितिक, सामाजिक और धार्मिकता को लेकर हो रही अशांति से व्याकुल नाज़नीन ने यह स्वयं लिखित कविता उदयपुर टाइम्स के साथ शेयर की.

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कविता: मेरा देश… अपना देश!

देश में हो रहा है, साम्प्रदायिकता का प्रहार ;

क्या होगा किसी का आहार, ये प्रश्न है बेकार;

अब तो इन सबको छोड़, विकास पर आजाओ सरकार;

मिलझुलकर रहने से, क्यूँ है,कुछ लोगों को इंकार

कोई क्या खाए क्या पहने ,इस पर मत करो विचार;

इससे बेहतर है देश में फैलाओ प्यार ;

ख़त्म करो अब तो महंगाई की ये मार;

अच्छे दिन का, हमे भी तो है इंतज़ार

नेताओं की बोली में क्यूँ है इतनी तेज़ धार;

हर शब्द पे जैसे की चलती हो कोई कटार;

अब तो जनता पर बंद करो ये अत्याचार;

और देश की हालत में कुछ तो करलो सुधार

ये देश मेरा है, मुझे भी है इस से प्यार;

कुछ लोगो को, क्यूँ करना पड़ता है, ये साबित बार-बार;

आओ मिलकर करे असहिषुणता पर वार;

और बदल दे फिर से, इस देश का अकार

अब वक़्त की यही है पुकार;

भाई चारा रहे हम में बरक़रार;

बदले एक-दूजे के प्रति अपना व्यवहार ;

मिलकर मनाएं ईद-दिवाली और त्यौहार

और हाँ सुन लो ये सौबार

किसी पार्टी से नहीं है मेरा कोई सरोकार

-नाज़नीन अली

देश में  फ़ैल रही असहिष्णुता, अराजकता और साम्प्रदायिकता पर अपने विचारो को इस कविता में अभिव्यक्त किया है उदयपुर की नाज़नीन अली ने. नाज़नीन हाल में  विदेश में रहती है पर अपनी जन्मभूमि से अत्यंत लगाव और राजनितिक, सामाजिक और धार्मिकता को लेकर हो रही अशांति से व्याकुल नाज़नीन ने यह स्वयं लिखित कविता उदयपुर टाइम्स के साथ शेयर की.

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