उदयपुर 29 जनवरी 2020। मूलतः उदयपुर हाल अहमदाबाद निवासी कंटेंट राइटर महिमा जावरिया के काव्य संग्रह ’इतनी सी भूल’,के पोस्टर का विमोचन जुस्ता रिसोर्ट में किया गया।
एम स्क्वायर के संस्थापक मुकेश माधवानी ने बताया कि ये विमोचन उदयपुर के भूतपूर्व मेयर रविन्द्र श्रीमाली, कांग्रेस नेता पंकज शर्मा, कवि राव अजात शत्रु व अन्य गणमान्य अतिथियों द्वारा लाॅन्च किया गया।
प्रदीप कालरा ने बताया कि लेखन में विशेष रुचि रखने वाली और प्रोफेशन से चार्टर्ड अकाउंटेंट महिमा जावरिया द्वारा रचित पुस्तक इतनी सी भूल का पोस्टर विमोचन किया गया । यह पुस्तक महिमा की कुछ बेहतरीन कविताओं का संकलन है जो उन्होंने बहुत ही अल्पायु में लिखी थी । भावनाओं से लबरेज उनकी एक-एक कविता पाठकों के दिल में जज्बातों का सैलाब खड़ा कर देती है।
महिमा ने बताया कि इतनी सी भूल उनकी पहली पुस्तक है जिसमें उन्होंने प्रेम के दर्द, तन्हाई, प्रेम की भावना, समाज का दोहरा रूप जैसी कई संवेदनशील भावनाओं को अपनी कविताओं के द्वारा व्यक्त किया है।
एम स्क्वायर इवेंट्स एंड पब्लिकेशन के सीईओ मुकेश माधवानी ने बताया कि महिमा जावरिया की पुस्तक इतनी सी भूल का प्रकाशन एम स्क्वायर इवेंट्स एंड पब्लिकेशन द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि बचपन से उन्हें लेखन का शौक है और वह अपने आप को बतौर एक सराहनीय लेखक के रूप में देखना चाहती है । उनके लेखन के क्षेत्र में सहयोग देने की दृढ़ इच्छा ही वह वजह है जिसके कारण महिमा ने अपनी शिक्षा के दौरान भी लेखन नहीं छोड़ा।
महिमा बताती है कि लेखन उन्हें एक नया उत्साह प्रदान करता है तथा उन्हें जीने की नई राह दिखाता है। मात्र 22 वर्ष की उम्र में सीए, सीएस, एमकॉम, डीआईआरएम जैसी तमाम डिग्रियां हासिल करने वाली महिमा का मानना है कि जब कोई व्यक्ति लेखक होता है तो वह जीवन के सभी क्षेत्रों में बेहतरीन तरीके से प्रदर्शन कर सकता है क्योंकि उसकी अभिव्यक्ति श्रेष्ठ होती है ।
महिमा हाल में अपने लेखन के जुनून को बरकरार रखते हुए अपनी खुद की कंटेंट राइटिंग- मार्केटिंग फर्म अहमदाबाद में चला रही है। वह कवि व लेखक कुमार विश्वास से प्रेरित है। महिमा का मानना है कि भारत की भूमि ने कई उम्दा कवि और लेखकों को जन्म दिया है और वह खुद भी उन महान लेखकों का अनुसरण कर नई ऊंचाइयां हासिल करना चाहती है।
महिमा कहती है आज के दौर में हिंदी भाषा ने अपनी पहचान खो दी है और अंग्रेजी ने पैर पसार दिए हैं। महिमा अंग्रेजी के खिलाफ नहीं है बल्कि वह खुद भी अंग्रेजी की बहुत अच्छी वक्ता है। लेकिन हिंदी भाषा की जगह उनके हृदय में कोई नहीं ले सकता है। वह यह भी मानती है कि भारत में जन्मा हर व्यक्ति अपनी मातृभाषा हिंदी में अपनी भावनाओं को ज्यादा अच्छे तरीके से व्यक्त कर सकता है और हिंदी साहित्य से अपने आप को जुड़ा महसूस करता है।
महिमा ने कहा कि उनकी पुस्तक उन सभी लोगों के लिए है जो भावुक है तथा अपनी भावनाओं का सामना करने के लिए तैयार है। भावनाओं से ओतप्रोत इतनी सी भूल निसंदेह पाठकों में भावनाओं का बवंडर मचा देगी।
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