जन सहभागिता, बायोइंडिकेटर से जाँचे पर्यावरण योजनाये
झील संरक्षण, नदी संरक्षण एवं दूषित जल उपचार से जुडी योजनाओ की ऑडिट करते समय ऑडिटर यह भी आंकलन करे कि परियोजना क्रियान्वयन के हर स्तर पर हितधारकों एवं जनता की सहभागिता सुनिश्चित हुई है या नहीं।
झील संरक्षण, नदी संरक्षण एवं दूषित जल उपचार से जुडी योजनाओ की ऑडिट करते समय ऑडिटर यह भी आंकलन करे कि परियोजना क्रियान्वयन के हर स्तर पर हितधारकों एवं जनता की सहभागिता सुनिश्चित हुई है या नहीं।
उक्त सुझाव विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य एवं झील संरक्षण समिति के सहसचिव अनिल मेहता ने शुक्रवार को सी ए जी (कैग )के प्रमुख ऑडिटर्स को दिए। इंडियंस एकाउंट्स व ऑडिट सर्विस के राजस्थान , केरल, नागालैंड ,दिल्ली ,पंजाब,असम,मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश आंध्रा,महाराष्ट्र, गोवा , गुजरात,जम्मुकश्मीर,एवं बिहार के ऑडिटर्स को सम्बोधित करते हुए मेहता ने कहा की राष्ट्रिय झील संरक्षण योजना (एनएलसीपी) के तहत आवंटित राशि का जल गुणवत्ता में सुधार को प्रमुख ऑडिट आंकलन में रखा जाये। यदि योजना से झीलों की सीमाओ को छोटा किया गया है तो ऑडिट सूक्ष्मता व गंभीरता से निरिक्षण करे।
मेहता ने सीएजी द्वारा अचरोल में स्थापित इंटरनेशनल सेंटर फॉर एन्वायरमेंट ऑडिट एंड सस्टेनेबल डवलपमेंट में देश भर से आये ऑडिट विशेषज्ञों को सलाह दी कि वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट स्कीम्स सूचकों से जचि जनि चाहिए। मेहता ने केश स्टडी के तौर पर ऑडिटरो को जलकुम्भी नियंत्रण की बायोकंट्रोल तथा आयद नदी सुधर की ग्रीन ब्रिज टेक्नोलॉजी से भी अवगत कराया। सेंटर की निदेशक निमिता प्रसाद ने प्रतिभागियों और से मेहता का स्वागत किया।
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