कमरुद्दीन मावलीवाला: एक शांत बोहरा क्रांतिकारी, सुधारक और समाज सेवक
उदयपुर 20 दिसंबर 2025। "इंक़लाब" लफ़्ज़ का ताल्लुक आम तौर पर किसी मौजूदा निज़ाम (व्यवस्था) या इदारे (संस्थान) के हिंसक उथल पथल से जोड़ा जाता है। लेकिन सामाजिक सोच में गहरा और स्थायी परिवर्तन भी एक इंक़लाबी (क्रांतिकारी) कदम होता है। स्वर्गीय क़मरुद्दीन भाई मावलीवाला, उदयपुर के दाऊदी बोहरा समाज के उन व्यक्तित्वों में से थे, जिन्होंने निःस्वार्थ सामाजिक सेवा, शिक्षा और सुधार के माध्यम से समाज में एक गहन वैचारिक परिवर्तन स्थापित किया।
जो लोग स्थापित धारणाओं में परिवर्तन लाते हैं या सामाजिक कार्य करते हैं, वे प्रायः सार्वजनिक मंचों पर दिखाई देते हैं; परंतु क़मरुद्दीन भाई ने स्वयं को प्रचार-प्रसार से दूर रखा और शांत भाव से, बिना किसी दिखावे के, अपने कार्य करते रहे। उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा भाग अपने समुदाय के उत्थान के लिए समर्पित किया।
मैं उन्हें बचपन से सामाजिक सेवा करते हुए देखता आया हूँ, और 1960 के दशक में पहली बार उन्हें प्रगतिशील विचारकों के समूह का हिस्सा बनते हुए देखा। 1991 से मुझे उनके साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुझे लगता है कि समाज और विशेषकर उनके समुदाय के लिए इस दिवंगत आत्मा द्वारा किए गए अपार योगदानों को उजागर करना मेरा कर्तव्य है।
15 जुलाई 1930 को एक मध्यमवर्गीय संयुक्त दाऊदी बोहरा परिवार में जन्मे क़मरुद्दीन भाई ने उस समय की प्रचलित परंपराओं के अनुसार शिक्षा प्राप्त की और अपने पिता व भाइयों के साथ पारिवारिक पारंपरिक व्यवसाय में शामिल हो गए। बोहरा समाज मुख्यतः छोटे-मोटे व्यापार से जुड़ा हुआ था और अभी भी है। अमूमन संयुक्त परिवार के सभी पुरुष सदस्य एक ही दुकान में अपने पैतृक व्यापार में भाग लेते थे, जिससे प्रति व्यक्ति लाभ, पुरुष सदस्यों की संख्या के अनुपात में होता था। परिणाम-स्वरूप, उन दिनों उच्च शिक्षा, व्यवसाय में विविधता या सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों में नौकरी करने के प्रयास बहुत कम किए जाते थे।
स्वतंत्रता के बाद के काल में यह मॉडल और अधिक प्रभावित हुआ, जब विभाजन के पश्चात पंजाब और सिंध से आए शरणार्थी उदयपुर में बसे। जनसंख्या में बदलाव के साथ साम्प्रदायिक दंगे भी हुए। जिन अनेक व्यवसायों पर बोहरों का वर्चस्व था, वे शरणार्थियों द्वारा अपने हाथ में ले लिए गए। इन परिस्थितियों के कारण बोहरा समाज की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्हें अपनी ज़मीनें और बंगले तक बेचने पड़े।
इन परिस्थितियों में क़मरुद्दीन भाई ने अपने कुछ समान विचारधारा वाले साथियों के साथ मिलकर “सैफ़ इमदादिया कमेटी” नामक एक संस्था का गठन किया। ‘इमदाद’ का अर्थ है सहायता। इसका उद्देश्य बोहरा समाज में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना था, ताकि उनके बच्चे मुख्यधारा से जुड़ सकें, नौकरियाँ प्राप्त कर सकें और प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में भाग ले सकें।
समिति ने ज़रूरत-मंद विद्यार्थियों को निःशुल्क पुस्तकें, छात्रवृत्तियाँ और ट्यूशन शुल्क देना प्रारंभ किया तथा मेधावी विद्यार्थियों के लिए नकद पुरस्कार और स्वर्ण पदक भी शुरू किए। बहुत ही कम समय में एक क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिला। दाऊदी बोहरा समाज में शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्त हुई और युवा स्त्री-पुरुष White Collar नौकरियों के लिए तैयार हुए। वे इंजीनियरिंग, चिकित्सा, विधि, लेखा, पत्रकारिता और यहाँ तक कि सशस्त्र बलों तक में हर क्षेत्र में दिखाई देने लगे।
इस शैक्षिक क्रांति ने समुदाय की व्यावसायिक सोच में भी परिवर्तन ला दिया-व्यवसाय के विस्तार और विविधीकरण की दिशा में स्वयं क़मरुद्दीन भाई ने साहसपूर्वक पारिवारिक व्यवसाय छोड़कर एक नया उपक्रम आरंभ किया और यह सिद्ध किया कि दृढ़ संकल्प और नवीन विचार व्यक्ति के भाग्य को बदल सकते हैं।
इस प्रकार, न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्षरत एक समुदाय, सोच में परिवर्तन के इस कदम के कारण पुनः एक समृद्ध समुदाय बन सका। यह क़मरुद्दीन भाई द्वारा समान विचारधारा वाले सज्जनों के समूह सदस्य के रूप में किया गया एक महान और निःस्वार्थ सेवा कार्य था। दुर्भाग्यवश 1973 में बोहरा युवा सुधार आंदोलन के अवसर पर यह समिति भंग हो गई। तथापि, समिति के सभी सदस्य सुधारवादी समूह में शामिल हो गए। सुधारवादियों ने आगे चलकर ‘स्टूडेंट वेलफेयर सोसाइटी’ का गठन किया, जिसके माध्यम से निःशुल्क पुस्तकों और ट्यूशनों का वितरण जारी रखा गया, दो सार्वजनिक विद्यालय खोले गए, एक सहकारी बैंक, ट्रस्ट तथा अन्य संस्थाओं की स्थापना की गई, ताकि इमदादिया की पहलें सक्रिय और सशक्त बनी रहें। क़मरुद्दीन भाई इन सभी पहलों को दिशा देने में जमीनी स्तर पर सक्रिय रहे। उन्होंने ‘द उदयपुर अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड’ के निदेशक मंडल के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान कीं।
क़मरुद्दीन भाई का एक अन्य महत्वपूर्ण और रचनात्मक योगदान खारोल कॉलोनी और उसके आस-पास के क्षेत्रों के निवासियों के लिए विभिन्न सुविधाएँ और सेवाएँ उपलब्ध कराने में उनकी अग्रणी भूमिका रही, जहाँ वे स्वयं और उनके समुदाय के सदस्य रहते थे। इसके लिए उन्होंने खारोल कॉलोनी और आस-पास के क्षेत्रों के निवासियों को मिलाकर एक और संस्था का गठन किया। इस संस्था के अंतर्गत 1991 से लेकर लगभग दो दशकों तक सड़कों, नालियों, सड़क-बत्ती के खंभों, जल पाइपलाइनों, सामुदायिक केंद्र और उद्यान का निर्माण किया गया। वे अपने अंतिम सांस तक इन कार्यों में सक्रिय रहे। सामाजिक सेवा का एक उज्ज्वल उदाहरण प्रस्तुत करते हुए भी उन्होंने कभी प्रचार की इच्छा नहीं की और एक मौन सेवक बने रहे।
सुधारवादी बोहरों ने उनके कल्याणकारी कार्यों में दिए गए योगदान को मान्यता दी और 2011 में आयोजित ऑल वर्ल्ड दाऊदी बोहरा कॉन्फ्रेंस में उन्हें सम्मानित किया।
आज जब समुदाय उनके निधन का शोक मना रहा है, उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। एक मौन कर्मयोगी, दूरदर्शी सुधारक और समाज के सच्चे सेवक क़मरुद्दीन भाई, आपको अल्लाह त'आला जन्नत उल फिरदौस में आला मक़ाम दें
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