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सितार में झंकृत हुई राग ‘बहार’, शिव और कृष्ण के रंग में रंगा कत्थक

पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित तीन दिवसीय शास्त्रीय संगीत व नृत्य समारोह ‘‘ऋतु वसंत’’ की आखिरी और तीसरी सांझ पहले सितार पर झंकृत हुई बहार और बाद में कत्थक में शिवारधना के साथ कृष्ण रास से रंगी कला प्

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सितार में झंकृत हुई राग ‘बहार’, शिव और कृष्ण के रंग में रंगा कत्थक

पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित तीन दिवसीय शास्त्रीय संगीत व नृत्य समारोह ‘‘ऋतु वसंत’’ की आखिरी और तीसरी सांझ पहले सितार पर झंकृत हुई बहार और बाद में कत्थक में शिवारधना के साथ कृष्ण रास से रंगी कला प्रेमियों की शाम।

यहां शिल्पग्राम के मुक्ताकाशी रंगमंच पर रविवार को पहले बैंगलूरू की संगीतज्ञ और देश की प्रतिष्ठित सितार वादिका अनुपमा भागवत का सितार वादन हुआ। केवल नौ वर्ष की अवस्था में अपने चाचा और मेहर घराने के श्री आर.एन.वर्मा के सानिध्य में तथा बाद में इमदादखानी घराना श्री बिमलेन्दु मुखर्जी के शिष्यत्व में संगीत की शिक्षा ग्रहण करने वाली अनुपमा ने अपने वादन की शुरूआत राग विहाग से की जिसमें खयाल और फिर विलम्बित व द्रुत लयकारी के साथ सितार के तारों में फिरती अंगुलियों ने सुर और ताल का जादू सा फैला दिया। इसके बाद उन्होंने रराग दीपचंदी में निबद्ध रचना को अनूठे अंदाज में पेश किया कि दर्शक स्वर लहरियों में खो से गये। इनके द्वारा प्रस्तुत बहार कार्यक्रम की उत्कृष्ट रचना थी जिसमें ऐसा प्रतीत हुआ मानों वसंत ऋतु में समस्त पुष्प एक साथ खिल कर अपनी महक वातावरण में फैला रहे हों। अनुपमा के साथ तबले पर देश के प्रतिष्ठित तबला नवाज़ ओजस अढिया ने संगत की तथा अपनी लयकारी के जादू से दर्शकों की वाहवाही लूटी।

सितार में झंकृत हुई राग ‘बहार’, शिव और कृष्ण के रंग में रंगा कत्थक

कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति देश प्रसिद्ध कत्थक कलाकार व जयपुर घराना शैली के प्रतिष्ठित कलाकार हरीश गंगानी व उनके दल ने पहले कत्थक शैली में शिव स्तुति की। राग भटियार में निबद्ध इस रचना में भाव प्रवणता तथा लास्य का उत्कृष्ट तारतम्य रहा। इसके बाद हरीश गंगानी ने कत्थक का शुद्ध पक्ष प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने थाट, आमद और परनें पेश की। हरीश के नर्तन में एक अनुभवी ठहराव के साथ लयकारी के साथ पदों का संचालन व दैहिक भंगिमाओं का मिश्रण श्रेष्ठ बन सका। तबलावादक योगेश गंगानी और हरीश गंगानी का सामंजस्य दर्शनीय बन सका।

इसके बाद गंगानी के दल ने ‘‘कृष्ण रास’’ को एक नये अंदाज में प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने बनारस घराने के पं. छन्नूलाल जी मिश्रा की ठुमरी ‘‘रंग डारूंगी, डारूंगी रंग…’’ को अभिनय, नृत्य और भाग भंगिमाओं से प्रदर्शित किया। प्रस्तुति में रास का रंग दर्शकों पर ऐसा चढ़ा कि मानों एक बार फिर होली का त्योहार लोट आया हों। हरीश गंगानी व उनके साथियों की प्रस्तुति में संजीत गंगानी, पारूल दत्ता, नन्दिनी खण्डेलवाल, आरती त्रिपाठी व अक्षिता दाधीच ने जहां नृत्य में अपना रंग दिखाया वहीं संगतकारों में सितार पर हरिहर शरण भट्ट, सारंगी पर महेन्द्र सोनगरा ने संगत की। केन्द्र निदेशक फुरकान ख़ान द्वारा पुष्प गुच्छ भेंट कर कलाकारों का स्वागत किया गया। सितार में झंकृत हुई राग ‘बहार’, शिव और कृष्ण के रंग में रंगा कत्थक

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