धर्म और विश्वास का बन्धन है रक्षा बन्धनः सुप्रकाशमति माताजी
राष्ट्रसंत गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि धर्म और विश्वास का बन्धन है रक्षा बन्धन। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन की मूल मंत्र है। वे आज बलीचा स्थित ध्यानोदय क्षेत्र में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। यह पर्व मात्र रक्षा सूत्र के रूप में धागा बांध कर रक्षा का वचन ही नहीं देना वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा,संकल्प के जरिये दिलों को बाँधने का वचन देता है। इसलिये इसे जैन धर्म में वात्सल्य पर्व के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रसंत गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि धर्म और विश्वास का बन्धन है रक्षा बन्धन। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन की मूल मंत्र है। वे आज बलीचा स्थित ध्यानोदय क्षेत्र में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। यह पर्व मात्र रक्षा सूत्र के रूप में धागा बांध कर रक्षा का वचन ही नहीं देना वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा,संकल्प के जरिये दिलों को बाँधने का वचन देता है। इसलिये इसे जैन धर्म में वात्सल्य पर्व के रूप में मनाया जाता है।
उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में जीवों की रक्षा, राष्ट्र, समाज, परिवार, भाषा व संस्कृति की रक्षा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने आमजन का आव्हान किया कि वे पर्यावरण की रक्षा हेतु आगे आयें क्योंकि देश की प्रगति के साथ पर्यावरण का नुकसान हो रहा है।
सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि रक्षाबन्धन के अवसर पर रविवार को ध्यानोदय क्षेत्र में लगे सभी वृक्षों पर रक्षा सूत्र बांध कर एक सकारात्मक संदेश दिया जाएगा। यदि यह परिपाटी हर व्यक्ति अपना ले तो देश में कभी पेड़ों को नहीं काटा जाएगा। जिस व्यक्ति के मन में रक्षा का संकल्प होता है वह आत्मविश्वासी होता है।
उन्होेंने बताया कि जैन धर्म में यह पर्व 700 जैन मुिनयों की रक्षा से जुड़ा हुआ है। रक्षा बनधन के ही दिन 700 मुनियों का उपसर्ग हुआ था। धुएं आदि से इनके गले रूक गये थे। इसलिये इस दिन खीर का प्रचलन बढ़ा थे। ट्रस्ट के कार्याध्यक्ष ओमप्रकाश गोदावत ने बताया कि 6 अगस्त रविवार को ध्यानोदय क्षेत्र में रक्षाबन्धन के उपलक्ष में विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाऐंगे।
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