पाठक योगदान: नेताजी फिर कब आओगे कब आओगे


पाठक योगदान: नेताजी फिर कब आओगे कब आओगे

देख के घर की टूटी छत को, कितना अफ़सोस जताते हैं
पक्के घर का वादा करके, मेरा मत पक्का करवाते हैं

 

पाठक योगदान: नेताजी फिर कब आओगे कब आओगे

मैं जनतंत्र का हिस्सा हूँ, मेरा मत जनादेश कहलाता है चुनाव से पहले इसीलिए तो, हर नेता मुझको फुसलाता है

चाहे लोकसभा या विधानसभा हो, या नगरपालिका की हो सीट वोट के खातिर सब आ जाते, सहलाने को मेरी ही पीठ

जब प्रचार को आते हैं, तब सपने बहुत दिखाते हैं पक्ष विपक्ष की सियासी नीति, समझाकर मुझको उलझाते हैं

महँगाई व भ्रष्टाचार, मिटाने की आस जागते हैं लेकिन सत्ता में आकर, कुछ भी न वो कर पाते हैं

देख के घर की टूटी छत को, कितना अफ़सोस जताते हैं पक्के घर का वादा करके, मेरा मत पक्का करवाते हैं

रोज़गार दिलवाने का भी, वादा कर के जाते हैं न जाने कुर्सी पाते ही, सब वादे भूल वो जाते हैं

हर बूढ़े को, हर किसान को, उसका हक़ वो दिलवाएंगे युग युग से ये कहते आए, अब कर के कब दिखलायेंगे

न बिजली का, न पानी का, संकट गाँव पर छाएगा ऐसा कह कर चले गए वो अब कौन ये सच करवाएगा

गाँव की टूटी सड़कों पर भी, राजनीति खेली जाती है “राजमार्ग से जोड़ेंगे इनको” ऐसी बातें बोली जाती है

राजमार्ग हम ढूँढ रहे हैँ, सड़के टूटी पड़ी हुई है पार्टी कार्यालय में इन फाइलों पर, जाने कितनी धुल जमी हुई है

हर पार्टी की यही कहानी है, हर नेता का ये ही है हाल इनकी ऐसी नीति से ही, जनतंत्र हो रहा बेहाल

चुनाव से पहले आते है, फिर ओझल से हो जाते हैं चाहे जीते या न जीते, लौटकर ये न आते हैं

मैं जनता हूँ ! सब वादे सुनते जाता हूँ हर चुनाव में जाकर अपना मत भी देकर आता हूँ

लेकिन नेताजी को गायब पाकर, फिर अपना प्रश्न दोहराता हूँ कब तक वादे करते जाओगे ? “नेताजी” इनको पूरा करने कब आओगे ? कब आओगे ?

By: Nazneen Ali Wagpura

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