पाठक योगदान ! किसका दोष है यह ?


पाठक योगदान ! किसका दोष है यह ?

दोष किसे दिया जाए! उन्हें जो अयोग्य होते हुए भी अपना स्वयं का वर्तमान सुधारने के लिए शिक्षक के पद पर आसीन तो हैं किन्तु उन बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं जो कि कालांतर में स्वयं इस देश के भविष्य पर ही एक बड़ा प्रश्न चिन्ह बन जाएगा। या फिर उस सिस्टम को जिसमें प्रतिभावान युवा अपने लिए अयोग्य पदों पर भी आवेदन करने के लिए मजबूर हैं और प्रतिभाहीन व्यक्ति उन जिम्मेदार पदों पर काबिज है जिन पर देश के वर्तमान एवं भविष्य की जिम्मेदारी है। दोष उस बच्चे का है जिसे अपने विषय अथवा अपने पाठ्यक्रम का ज्ञान नहीं है अथवा उस शिक्षक का है जिस पर उसे पढ़ाने का जिम्मा है लेकिन स्वयं की अज्ञानता क

 

पाठक योगदान ! किसका दोष है यह ?

पता नहीं यह दुर्भाग्य केवल उस नौजवान का है या पूरे देश का जिसके झोले में डिग्री , जेब में कलम लेकिन हाथ में झाड़ू और फावड़ा हो।

कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में चपरासी अथवा सफाई कर्मचारी के पद के लिए सरकार द्वारा आवेदन मांगें गए थे जिसमें आवश्यकता  368 पदों की थी और योग्यता प्राथमिक शिक्षा तथा साइकिल चलाना थी। इन पदों के लिए जो आवेदन प्राप्त हुए उनकी संख्या  23 लाख थी जिनमें से 25000 पोस्ट ग्रैजुएट, 255 पीएचडी, इसके अलावा डाक्टर इंजीनियर और कामर्स विज्ञान जैसे विषयों से ग्रौजुएट शामिल थे।

आइये अब चलते हैं मध्यप्रदेश, जहाँ हवलदार के पद के लिए भी कमोबेश इसी प्रकार की स्थिति से देश का सामना होता है, आवश्यकता 14000 पदों की है। शैक्षणिक योग्यता  हायर सेकन्डरी लेकिन आवेदक  9.24 लाख के ऊपर  जिनमें 1.19 लाख ग्रैजुएट हैं, 14562 पोस्ट ग्रैजुएट हैं, 9629 इंजीनियर हैं, 12 पीएचडी हैं।

ऐसी ही एक और परिस्थिति, जिसमें  माली के पद के लिए सरकार को लगभग 2000 पीएचडी धारकों के आवेदन प्राप्त हुए। जब सम्बन्धित अधिकारियों का ध्यान  पद के लिए आवश्यक योग्यता और आवेदकों की शैक्षणिक योग्यता के बीच इस विसंगति की ओर दिलाया गया तो उनका कहना था कि हमारा काम परीक्षा कराना है आवेदकों की प्रोफाइल का निरीक्षण करना नहीं।

इस सबके विपरीत, एक रिपोर्ट जिसके केंद्र में मध्यप्रदेश ,उत्तर प्रदेश , बिहार जैसे राज्यों के सरकारी विद्यालयों के  शिक्षक हैं। इनकी योग्यता:  देश के प्रधानमंत्री का नाम हो या राष्ट्रपति का नाम, किसी प्रदेश की राजधानी का नाम हो या सामान्य ज्ञान से जुड़ा कोई प्रश्न, हर प्रश्न अनुत्तरित! किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में असक्षम। कोई आश्चर्य नहीं कि इन प्रदेशों की परीक्षाओं के परिणाम का उदाहरण बिहार माध्यमिक बोर्ड (दसवीं की परीक्षा) में  दिखाई दिया जब बोर्ड को टॉप करने वाले विद्यार्थियों को उन विषयों तक के नाम नहीं पता जिनमें उन्होंने टाप किया है  ।

लेकिन क्या यह घटनाएँ हम सभी के लिए, पूरे देश के लिए, हमारी सरकारों के लिए एक चिंता का विषय नहीं होना चाहिए ? न केवल समाज का हिस्सा होने के नाते अपितु स्वयं पालक होने के नाते, क्या यह हमारे बच्चों ही नहीं बल्कि इस देश के भी भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है  ? दोष किसे दिया जाए! उन्हें जो अयोग्य होते हुए भी अपना स्वयं का वर्तमान सुधारने के लिए शिक्षक के पद पर आसीन तो हैं किन्तु उन बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं जो कि कालांतर में स्वयं इस देश के भविष्य पर ही एक बड़ा प्रश्न चिन्ह बन जाएगा। या फिर उस सिस्टम को जिसमें प्रतिभावान युवा अपने लिए अयोग्य पदों पर भी आवेदन करने के लिए मजबूर हैं और प्रतिभाहीन व्यक्ति उन जिम्मेदार पदों पर काबिज है जिन पर देश के वर्तमान एवं भविष्य की जिम्मेदारी है।

दोष उस बच्चे का है जिसे अपने विषय अथवा अपने पाठ्यक्रम का ज्ञान नहीं है अथवा उस शिक्षक का है जिस पर उसे पढ़ाने का जिम्मा है लेकिन स्वयं की अज्ञानता  के कारण उसे पढ़ा नहीं पाता। दोष उस शिक्षक का है जिसने ‘ कुछ ले दे कर’ अथवा ‘जुगाड’ से अपनी अयोग्यता के बावजूद किसी योग्य का हक मार कर नौकरी हासिल कर ली या फिर उस अधिकारी का जिसने आवेदक की योग्यता को ज्ञान के बजाय सिक्कों के तराज़ू में तोला !

दोष उस अधिकारी का है जिसने अपने कर्तव्य का पालन करने के बजाय उस भ्रष्ट तंत्र के आगे हथियार डाल दिए या फिर उस भ्रष्ट तंत्र का जिसके बने बनाए सिस्टम में उस अधिकारी के पास एक ही रास्ता होता है या तो सिस्टम में शामिल हो जाओ या फिर बाहर हो जाओ।

दोष आखिर किसका है हर उस पुरुष अथवा महिला का जिस पर अपने परिवार को पालने की जिम्मेदारी है जिसके लिए वह येन केन प्रकारेण कोई भी नौकरी पाने  की जुगत लगा लेता है और जो जीतता है वो सिकन्दर बन जाता है या फिर सदियों से चले आ रहे इस तथ्यात्मक सत्य की, कि जिसके पास लाठी होती है भैंस वही ले जाता है  ।

डारविन ने अपनी “थियोरी आफ इवोल्यूशन ” में ‘सरवाइवल आफ द फिट्टेस्ट’ का उल्लेख किया है अर्थात् जो सबसे ताकतवर होगा वही परिस्थितियों के सामने टिक पाएगा किन्तु ‘ताकत’ की परिभाषा ही जो समाज अपने लिए एक नई गढ़ ले ! जहाँ ताकत बौद्धिक शारीरिक मानसिक अथवा आध्यात्मिक से इतर सर्वशक्तिमान ताकत केवल ‘धन’ की अथवा ‘जुगाड़’ की हो तो दोष किसे दिया जाए समाज को या  ‘ताकत’ को !

दोष किसे दिया जाए उस समाज को जिसमें यह विसंगतियाँ पनप रही हैं और सब खामोश हैं या फिर उस सरकार को जिसका पूरा तंत्र ही भ्रष्ट हो चुका है। दरअसल हमारे देश में न तो हुनर की कमी है न योग्यता की लेकिन नौकरी के लिए इन दोनों में से किसी को भी प्राथमिकता नहीं दी जाती। यहाँ नौकरी मिलती है डिग्री से लेकिन डिग्री कैसे मिली यह पूछा नहीं जाता। इस देश और उसके युवा को उस सूर्योदय का इंतजार है जो उसके भविष्य के अंधकार को अपने प्रकाश से दूर करेगा उसे उस दिन का इंतजार है जब देश अपनी प्रतिभाओं को पहचान कर उनका उचित उपयोग करेगा शोषण नहीं

जिस देश में अपने प्राकृतिक संसाधनों का और मानव संसाधनों दोनों का ही दुरुपयोग होता हो वह देश आगे कैसे जा सकता है ? जहाँ प्रतिभा प्रभाव के आगे हार जाती हो वहाँ प्रभाव जीत तो जाता है लेकिन देश हार जाता है। इस देश के युवा को  उस दिन का इंतजार है जब योग्यता को उसका उचित स्थान एवं सम्मान मिलेगा। नौकरी और पद प्रभाव नहीं प्रतिभा से मिलेंगे  ।

न तो कोई पढ़ा लिखा बेरोजगार युवा मजबूर होगा अपनी कलम छोड़ कर झाड़ू पकड़ने के लिए न कोई अयोग्य व्यक्ति मजबूर होगा अपने परिवार की जरूरतों को पूरा  करने के लिए किसी योग्य व्यक्ति का हक मारने के लिए न कोई बच्चा मजबूर होगा किसी अयोग्य शिक्षक से पढ़ने के लिए न कोई अधिकारी मजबूर होगा किसी अपात्र को पात्रता देने के लिए,जहाँ इस देश का युवा सिस्टम से हारने के बजाय सिस्टम को हरा दे जहाँ सिस्टम हार जाए और देश जीत जाए।

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