कर्मोदय में हर्ष विवाद नहीं करना ही धर्म हैं: आचार्य सुकुमालनन्दी
"धर्म क्या है, पुण्य क्या है, इन सभी बातों का क्या अर्थ है, हमने आज तक नहीं जाना। जो आत्मा को पवित्र करे वह पुण्य है, और जो आत्मा को पतित करे वह पाप है। पुण्य- पाप कर्मों के उदय में समभाव रखना ही धर्म कहलाता है" - उक्त विचार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने सेक्टर 13 स्थित शाही कॉपलेक्स में कल्पद्रूम विधान में व्यक्त किये।
“धर्म क्या है, पुण्य क्या है, इन सभी बातों का क्या अर्थ है, हमने आज तक नहीं जाना। जो आत्मा को पवित्र करे वह पुण्य है, और जो आत्मा को पतित करे वह पाप है। पुण्य- पाप कर्मों के उदय में समभाव रखना ही धर्म कहलाता है” – उक्त विचार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने सेक्टर 13 स्थित शाही कॉपलेक्स में कल्पद्रूम विधान में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि बीते हुए साल में किये गये दोषों का प्रायश्चित करें, पश्चाताप करें और नये साल में संकल्प लें कि हम औरों के लिए जीएंगे, परोपकार में अपना जीवन सामर्पित करेंगे क्योंकि पुण्य उदय में खुश नहीं होना और पाप कर्म के उदय में दुखी नहीं होना ही समता है। समता सहित जीवन जीना ही जिन्दगी है वरना तो कितने ही साल बदलते चले जाएंगे और हमारे भावों में परिवर्तन नहीं आया तो यह जीवन व्यर्थ है। इसलिए हमें पुराने भावों को तिलांजलि देकर नये भावों को अपनाना चाहिये।
नए साल का आशीर्वाद लेने पहुंचे श्रावक- देशभर से अनेक अतिथिगण आचार्य का आशीर्वाद लेने उदयपुर पहुंच रहे हैं। इसके पीछे उनकी धारण है कि उनका नया साल गुरूदेव के आशीर्वाद से अच्छा बीते। नव वर्ष के उपलक्ष में आचार्य सभी को प्रभावना स्वरूप ज्ञान-धर्म वर्धक वस्तुएं अपने हाथों से प्रदान करेंगे।
आज होगा विधान का समापन- चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने बताया कि समापन अवसर पर विश्वशांति महायज्ञ (हवन) एवं शोभा यात्रा निकाली जाएगी एवं चातुर्मास में सहयोग करने वालों को विशेष स्मृति चिन्ह भी प्रदान किये जाएंगे। सेक्टर 11 के प्रत्येक घर वालों को आचार्य समवशरण में बैठकर आशीर्वाद प्रदान करेंगे।
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