संत का ह्दय नवनीत के समानः आचार्य डाॅ. शिवमुनि
श्रमणसंघीय आचार्य डाॅ. शिवमुनि महाराज ने कहा कि संत कभी किसी को श्राप नहीं देता हैं। संत का हृदय नवनीत के समान कोमल होता है। नवनीत तो भी आग लगने पर पिघलता है संत तो ऐसे ही किसी दुःखी असहाय को देखकर पिघल जाते हैं।
श्रमणसंघीय आचार्य डाॅ. शिवमुनि महाराज ने कहा कि संत कभी किसी को श्राप नहीं देता हैं। संत का हृदय नवनीत के समान कोमल होता है। नवनीत तो भी आग लगने पर पिघलता है संत तो ऐसे ही किसी दुःखी असहाय को देखकर पिघल जाते हैं।
वे आज शिवाचार्य समवसरण में श्रद्धालुओं को सम्बोध्ति कर रहे थे। उन्होंने कहा कि साधुत्व भीतर से आता है, वस्त्र तो केवल पहचान है। म्यान का नहीं मूल्य तलवार का होता हैं। साधु जीवन में आकर भी तृप्ति नहीं है, हाय तौबा है तो साधु केवल नाम मात्र का हैं। साधु किसी एक परमात्मा के सिवाय किसी को याद नहीं करता है। साधुता भीतर से खिलनी चाहिए। एक गुलाब सा मुस्कुराता हुआ होना चाहिए साधु का जीवन।
उन्होंने कहा कि संत हमेशा आनंद बांटता है जो पास है सबको बांटकर खाता है न मिला तो संतोष कर लेता हैं। संत वही है जिनके नयनों में तेजस्विता हृदय में, कोमलता मन में, सरलता संयम में, सजगता व्यवहार में, शालीनता स्वभाव में, शितलता दिल में हर वक्त प्रेम और स्नेह का दरिया बहता है।
सोना कचरे में पड़ा हो तो भी उठा लेते हो आपको उसकी किमत का पता है वैसे ही जीवन में जो महत्वपूर्ण हैं, सार्थक है उसको कही भी मिल जाए ले लेना चाहिए। सत्य को समझने के लिए अपने हृदय के द्वार खुले रखें। अपने दिल के दरवाजे को खुले रखों नहीं तो कोरे कागज की तरह रह जाओगें।
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