ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाओं को संगठित करने के लिए 'सखी' अभियान


ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाओं को संगठित करने के लिए 'सखी' अभियान

कहा जाता है जब आप गांव में एक महिला को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त एवं समृद्ध करते हैं तोे वह महिला ना केवल अपने परिवार, अपने गांव बल्कि अपने देश को सुदृढ़ बनाती है। यही मूल कारण बनता है देश के विकास का।

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ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाओं को संगठित करने के लिए 'सखी' अभियान

कहा जाता है जब आप गांव में एक महिला को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त एवं समृद्ध करते हैं तोे वह महिला ना केवल अपने परिवार, अपने गांव बल्कि अपने देश को सुदृढ़ बनाती है। यही मूल कारण बनता है देश के विकास का।

ग्रामीण व आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी एवं सशक्त बनाने के लिए हिन्दुस्तान जिंक ने अभियान ‘सखी’ की शुरूआत की है। यह अभियान हिन्दुस्तान जिंक के लगभग 475 स्वयं सहायता समूहों की 6000 से अधिक ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाओं को आपस में विचार-विमर्ष, ज्ञान का आदान प्रदान, सामान बेचने के लिए उपयुक्त बाजार, समय के अनुसार बदलती मांग के अनुरूप उत्पादन तथा एक दूसरे को पूरक करने की दिषा में महत्वपूर्ण साबित होगा।

हिन्दुस्तान जिंक के हेड-कार्पोरेट कम्यूनिकेषन पवन कौषिक ने बताया कि ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाओं को आपस में अपने कार्य को लेकर आगे बढ़ने की प्रेरेणा मिलनी चाहिए। साथ ही विभिन्न महिलाओं से बातचीत कर उन्हे उनके हुनूर एवं कार्य में भी, बदलते समय के अनुरूप, बदलाव लाना चाहिए।

‘सखी’ अभियान इन 6000 महिलइओं को आपस में जोड़ने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा। ‘‘सखी’’ अभियान के माध्यम से यह ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाएं अनेकों ग्रामणी उद्यमी महिलाओं से जुड़ पाएंगी। ’’

कंपनी ने ‘‘सखी’’ अभियान की शुरूआत एक ब्लॉग के माध्यम से की है जहां इन महिलाओं की प्ररेणास्पर्ध कहानियां अंकित होगी जो बाकी महिलाओं को प्रेरित करेंगी। तथा फेसबुक पर ‘‘सखी’’ पेज विचार-विमर्ष के लिए उपयोग में लाया जाएगा।

हिन्दुस्तान जिंक ने अपने 475 स्वयं सहायता समूह की लगभग 6000 ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाओं को अनेकों प्रकार के प्रषिक्षण उपलब्ध कराये है जिसमें कड़ाई, बुनाई, सिलाई, बैग बनाना, बंटन बनाना, कपडे़ बनाना तथा घर की साज-सज्जा का सामान बनाना शामिल है।

यह ग्रामीण महिलाएं अब बैंकों से भी जुड़ चुकी है तथा बैंकों की कार्यप्रणाली से पूर्णतः अवगत हैं तथा अपने द्वारा उत्पादित सामान को बेचने के लिए प्रषिक्षित मध्यस्त की सहायता लेती है ताकि सही मूल्य मिल सके।

‘‘सखी’’ अभियान के शुरूआत से ही लगभग 3000 लोग इससे जुड़ चुके हैं तथा इसका ब्लॉग भी 1 लाख पेज व्यूज तक पहुंच चुका है।

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