पंचम काल में की जाने वाली तपस्या से मोक्ष नहीं मिलताःसुप्रकाशमति
राष्ट्रसंत गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि द्रव्य, क्षेत्र,काल,भव एवं भाव को महत्व दिया है और वर्तमान में ये पंचमकाल बने हुए है। ऐसे समय में की जाने वाली साधना, तपस्या से मोक्ष नहीं मिलता है।
राष्ट्रसंत गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि द्रव्य, क्षेत्र,काल,भव एवं भाव को महत्व दिया है और वर्तमान में ये पंचमकाल बने हुए है। ऐसे समय में की जाने वाली साधना, तपस्या से मोक्ष नहीं मिलता है।
वे आज हिरणमगरी से. 5 स्थित प्रभातनगर में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रही थी। उन्होेंने कहा कि बिना मनुष्य भव में उसे सिद्धी नहीं मिलती है। स्वार्थ सिद्धि एवं सिद्धालय में मात्र एक सूत का अन्तर है लेकिन फिर भी यदि स्वार्थ सिद्धि के देव भी सिद्धालय नहीं जा सकता है यदि स्वार्थ सिद्धि के देव को भी मोक्ष जाना होता है तो उसे मनुष्य भव में जन्म लेना आवश्यक है। इसलिये इस मनुष्य पर्याय में आ कर अधिकाधिक पुण्य कमाना चाहिये।
उन्होंने कहा कि जिनेन्द्र प्रभु के शरण में जाकर अपने सारे अपराधों का प्रक्षालन किया जाना चाहिये। गुणों के प्रति अनुराग विशेष होना चाहिये और वहीं हमारी भक्ति है। पूजा पाठ ऐसी भक्ति जिसमें सभी का मन लगता है। उदयपुर संस्कार यात्रा संयोजक प्रकाश सिंघवी ने बताया कि इससे पूर्व संस्कार यात्रा प्रातः गायरियावास से रवाना हो कर बैण्ड बाजों के साथ हिरणमगरी से. 5 स्थित चन्द्रप्रभु मन्दिर प्रभातनगर पंहुची जहाँ गुरू मां का कुण्डलगढ़ से आये विशेष बैण्ड के साथ भव्य स्वागत किया गया। बैण्ड की मधुर स्वरलहरियों के बीच भक्त नाचते गाते चल रहे थे।
युवा मंच के मनोज चंपावत ने बताया कि चन्द्रप्रभु युवा मंच शोभायात्रा का भव्य स्वगात किया गया। चन्द्रप्रभु महिला मण्डल की महिलाओं ने मंगल कलश के साथ भव्य अगवानी की गई। बीच मार्ग में संस्कारयात्रा एवं गुरू मां के स्वागत के लिए अनेक द्वार लगाये गये तथा जगह-जगह पुष्पवृष्टि की गई। अनेक स्थानों पर गुरू मां का पाद प्रक्षालन किया गया। संस्कार यात्रा का एतिहासिक भव्य सवागत देख कर मानों यह लग रहा था कि गुरू मां की अनवरत रूप से चली आ रही 36 वर्ष का संस्कार पदयात्रा सफल हुई।
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