मुक्ति मार्ग एकांगी नहीं है


मुक्ति मार्ग एकांगी नहीं है

प्रज्ञामहर्षी उदयमुनि ने वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान में धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि मात्र ज्ञानयोग से या भक्तियोग से, या कर्मयो

 

प्रज्ञामहर्षी उदयमुनि ने वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान में धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि मात्र ज्ञानयोग से या भक्तियोग से, या कर्मयोग से मुक्त हो सकता है पर महावीर ने ज्ञान-दर्शन-चरित्र-तप की एकता, एकसाधता और परस्पर अविरोध रूपमोदा- मार्ग है। किसी एक से अर्थात् ज्ञान से या चरित्र से या मात्र तप से मुक्ति नहीं होती। चारों मिलकर मोक्षमार्ग बनता है। जानना-देखना जीव का गुण है।

अनादि से अनन्तकाल तक रहेगा परन्तु जानने-देखने के साथ क्रिया-प्रतिक्रिया से, राग-द्धेषादि से तो चतुर्गातिरूप संसार मार्ग होता है और मात्र स्वात्मा को जानने-देखने उसी में रमने से मुक्ति होती है।

बाहृ में, शुभभाव या अशुभ भाव में मन-वचन-काया की प्रवृत्ति से तो पुण्य या पाप का बंध किया। फल हुआ शुभ या अशुभ गतियों में अनन्तकाल से परिभ्रमण। किसी भी गति से दुख व्यथा से रहित सुख नहीं मिला। चारों गतियों से मुक्त होना चाहते हो तो शुभ या अशुभ से परे हो शुद्ध-स्वरूपी-स्वात्मा का ज्ञान-मान- रमणता करें।

बिना किसी राग-द्वेषादि के मात्र अपने आप को जानना-अपने आप को देखना-यह मोक्ष का मार्ग है, मुक्ति है, परमात्मा-स्वरूप प्रकट हो जाना है। शुभ या अशुभ करना मनुष्यों ने आसान मान रखा है, वस्तुतः वह अत्यन्त कठिन है। कुछ न करना, मात्र स्वरूप में मग्न हो जाना अत्यंत आसान है। मोक्ष का मार्ग समझना कठिन है, उस पर चलना आसान है। करके देखों, अपूर्व आनन्द का अनुभव आता है।

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