रंगमंच पर बही गोवन संस्कृति की धारा समई फुगड़ी ने रंग बिखेरे
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं लोक कला उत्सव ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ में तीसरे दिन मुख्य रंगमंच ‘‘कलांगन’’ पर सागर तटीय प्रदेश गोवा की लोक संस्कृति की धारा प्रवाहित हुई। वहीं अन्य कला प्रस्तुतियों ने कला प्रेमियों को अभिभूत सा कर दिया। गुरूवार को उत्सव में ‘‘राजस्थान दिवस’’ राजस्थान की लोक […]
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं लोक कला उत्सव ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ में तीसरे दिन मुख्य रंगमंच ‘‘कलांगन’’ पर सागर तटीय प्रदेश गोवा की लोक संस्कृति की धारा प्रवाहित हुई। वहीं अन्य कला प्रस्तुतियों ने कला प्रेमियों को अभिभूत सा कर दिया। गुरूवार को उत्सव में ‘‘राजस्थान दिवस’’ राजस्थान की लोक कला शैलियों पर केन्द्रित कार्यक्रम रंगमंच पर दर्शाया जायेगा।
लोक कला एवं शिल्प परंपरा को बढ़ावा देने तथा कलाओं के प्रसार हेतु आयोजित दस दिवसीय उत्सव में बुधवार शाम रंगमंच गोवा मय हो गया। एक जमाने में गोवा लोगों का ड्रीम होता था आज रंगमंच पर उसी गोवा की कलाओं ने कला प्रेमियों के स्वप्न को साकार कर दिखाया। गोवा के कला एवं संस्कृति संचालनालय द्वारा प्रायोजित गोवा के विशेष कला दल ने गोवा में बसने वाली विभिन्न समुदायों की संस्कृति को दर्शाया।
इस अवसर पर गोवा का प्रसिद्ध फुगड़ी व कळशी फुगड़ी ने वहां का सौम्य स्वरूप दर्शकों को दिखाया तो देखणी में वहां की श्रंृगारिक कला को देखने का अवसर मिला जिसमें भारतीय और पश्चिमी संस्कृति का सम्मिश्रण उत्कृष्ट ढंग से किया गया। प्रस्तुति में नर्तकियाँ विवाह समारोह में जाने के लिये नाविक से नदी पार करवाने का अनुरोध करते हुए उसे विभिन्न प्रकार का प्रलोभन देती हैं। गोवन लोक गीत ‘‘हंव साहिबा फलतड़ी वेईता…..’’ गीत पर नाविक और सजी संवरी महिलाओं ने मोहक नृत्य प्रस्तुति दी। धालो गोवा के कृषक समुदाय का नृत्य है जिसमें महिलाए गीत गाती हुए उत्सव मनाती नजर आती है।
गोवा में गणपति उत्सव के दौरान तथा वैवाहिक अवसरों पर किया जाने वाला नृत्य ‘‘समई’’ कार्यक्रम की सबसे लुभावनी प्रस्तुति रही। गोवा के पारंपरिक वाद्य घुम्मट, ढोलक, झांझ आदि पर गीतों की लय पर गोवा की नृत्यांगनाओं ने समई (दीप स्तम्भ) अपने शीश पर संतुलित करते हुए नृत्य किया। नृत्य के दौरान नृत्यांगनाओं ने विभिन्न प्रकार की आकर्षक संरचनाएँ बनाई तो दर्शकों ने करतल ध्वनि से कलाकारों का अभिवादन किया। गोवा के दल का नेतृत्व कला एवं संस्कृति संचालनालय के श्री मिलिन्द माटे द्वारा किया गया।
रंगमंच पर इसके अलावा दर्शकों को गुजरात का बेड़ा रास देखने को मिला। जाम खम्भालिया से आये कलाकारों ने ढोल, शरनाई की थाप व धुन पर अपने सिर पर बेड़ा (मटके) रख कर नृत्य कर गुजरात की इस अनूठी रास परंपरा को दर्शाया। मणिपुर का स्टिक डांस दर्शकों को लुभाने में सफल रहा। मणिपुरी कलाकार ने स्टिक को अपने हाथों तथा शरीर के विभिन्न अंगों पर उत्कृष्ट ढंग से नियंत्रित करे दर्शकों की तालियाँ बटोरी। कलांगन पर इसके अलावा नगाड़ा वादन, सहरिया स्वांग, गोटीपुवा नृत्य का प्रदर्शित किया गया।
यहां शिल्पग्राम में चन रहे दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के तीसरे दिन हाट बाजार परवान चढ़ने लगा तथा शहर से कला और शिल्प के पारखी व शौकीन लोग अपने मित्रों, परिजनों के साथ शिल्पग्राम पहुंचेव खरीददारी की और मेले का आनन्द उठाया।
हाट बाजार के वस्त्र संसार में विकास आयुक्त हथकरघा के सौजन्य से आये शिल्पकारों के हैण्डलूम के उत्पादों पर लोगों की पैनी निगाह रही। इनमें विभिन्न प्रकार के ड्रेस मेटीरियल, ज्वैलरी, पेन्टिंग्स, ढाल तलवार, वूलन शॉल, नमदा जूती, कश्मीरी प्श्मीना शॉल, सहारनपुर का नक्काशीदार फनीर्चर, टेराकोटा के बने डेकोरेटिव इनमें दीपक, जल पात्र में तैरते कछुए, मक्की की रोटी सेकने के गैस के मिट्टी के तवे, मिट्टी की पट्टिकाओं पर उत्कीर्णित डेकारेटिव वॉल पीस, जूूट के बैग्स, चर्म शिल्प के उत्पाद, बांस के विभिन्न प्रकार के लैम्प शेड व हैंगिंग्स, आर्टिफिशियल फ्लॉवर आदि उल्लेखनीय हैं।
हाट बाजार में ही लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों को देखने बड़ी संख्या में लोग जमा हुए। हाट बाजार में ही मशक वादकों ने राजस्थानी लोक गीतों की धुनों से आगंतुकों की अगवानी की। हाट बाजार में ही लोगों ने विभिन्न प्रकार के व्यंजनों मक्का की रोटी, सरसों का साग, दाल बाटी चूरमा, मक्की की पापड़ी, तिल की जगल आदि का स्वाद लिया।
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