गीतांजली में बचाया- ’जब खुद के ही दांतों से खतरे में आई जान’


गीतांजली में बचाया- ’जब खुद के ही दांतों से खतरे में आई जान’

गीतांजली हॉस्पिटल, उदयपुर के गेस्ट्रोएन्टोलॉजिस्ट डॉ पंकज गुप्ता ने 86 वर्षीय बुजुर्ग के भोजननली में फंसे नकली दांत को एंडोस्कोपी द्वारा निकाल रोगी को ठीक किया।

 
गीतांजली में बचाया- ’जब खुद के ही दांतों से खतरे में आई जान’ गीतांजली हॉस्पिटल, उदयपुर के गेस्ट्रोएन्टोलॉजिस्ट डॉ पंकज गुप्ता ने 86 वर्षीय बुजुर्ग के भोजननली में फंसे नकली दांत को एंडोस्कोपी द्वारा निकाल रोगी को ठीक किया। डॉ पंकज गुप्ता ने बताया कि नीमच निवासी रोगी नानाराम सोनी(86) पिछले 10 दिनों से भोजननली में दांत फंसने से परेशान था, जो भोजन खाते समय उसकी भोजननली (ईसोफेगस) में अटक गया था और इसी के कारण उसे खाना निगलने में दिक्कत हो रही थी और केवल तरल पदार्थ ही पी पा रहा था। वह नीमच में ही आँख, नाक व गले के फिजिशियन डॉक्टर से मिला चिकित्सकों ने फंसे दांत को निकालने का प्रयास किया परंतु असफल रहे। इसके बाद मरीज गीतांजली हॉस्पिटल आया और डॉ गुप्ता से मिलने के बाद बिना भर्ती, बिना चीरे, बिना ऑपरेशन व बिना बेहोशी के एंडोस्कोपी द्वारा दांतों को पकड़कर बाहर निकाला गया। उन्होंने बताया कि एंडोस्कोपी एक प्रकार का दूरबीन है, जिसके द्वारा लूप (मेटल के तार की गठान) के सहारे भोजननली में फंसे दांतो को निकाला गया जिससे रोगी अब स्वस्थ है। इसमें दांतों के कारण भोजननली में दो स्थानों पर घाव हो गए थे, वो भी 5-7 दिन में भर जाएंगे। डॉ गुप्ता ने बताया कि ऐसे मामलों में चिकित्सकों की यह सलाह होती है कि नकली दांत जो कि स्थिर नही होते, वे कई बार श्वासनली को अवरूद्व कर सकते हैं और भोजननली में फंस जाने पर भोजननली में छेद भी कर सकते हैं और जान के लिए खतरा बन सकते है। अतः हमेशा स्थिर रहने वाले दांत ही उपयोग में लेने चाहिए। और भोजननली या श्वासनली में अटक जाने पर जल्द से जल्द निकलवा देना चाहिए अन्यथा देरी से चिकित्सक के पास पहुँचने से जटिलताएं ओर अधिक बढ़ सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि बुजुर्गाें को अस्थिर दांत नही लगवाने चाहिए क्योंकि उम्र के साथ उनके निगलने की प्रक्रिया भी कमज़ोर पड़ जाती है और यदि ये भोजननली में फंस जाए तो दिक्कतें ओर बढ़ जाती है।

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