विद्यापीठ- सैंकड़ो कार्यकाताओं, छात्रों ने किया प्रदर्शन, एडीएम को दिया ज्ञापन
सेंकड़ो कार्यकर्ताओं, छात्र-छात्राओं ने कलेक्ट्री परिसर के बाहर उप रजिस्ट्रार अश्विन वशिष्ट तथा पूर्व कुल प्रमुख प्रफुल्ल नागर, पूर्व कुलपति दिव्य प्रभा नागर के खिलाफ जोरदार नारे बाजी कर प्रदर्शन किया।
जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ कुल के 02.09.2014 के संशोधित संविधान को उप रजिस्ट्रार सहकारी संस्था के श्री अश्विन वशिष्ठ द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर नियम विरूद्ध तरीके से निरस्त को लेकर शुक्रवार को वि.वि. के श्रमजीवी महाविद्यालय परिसर, प्रताप नगर परिसर एवं पंचायतन यूनिट डबोक, झाड़ोल के सभी विभागोें के सेंकड़ो कार्यकर्ताओं, छात्र-छात्राओं ने कलेक्ट्री परिसर के बाहर उप रजिस्ट्रार अश्विन वशिष्ट तथा पूर्व कुल प्रमुख प्रफुल्ल नागर, पूर्व कुलपति दिव्य प्रभा नागर के खिलाफ जोरदार नारे बाजी कर प्रदर्शन किया।
विद्यापीठ के कुल प्रमुख भंवरलाल गुर्जर, वि.वि. के रजिस्ट्रार प्रो. सी.पी. अग्रवाल, पी.जी.डीन. प्रो. प्रदीप पंजाबी सहायक कुलसचिव डॉ. हेमशंकर दाधिच, डॉ. संजय बंसल, के नेतृत्व में एडीएम सिटी श्री ओ.पी.बुनकर को ज्ञापन दिया तथा मामले की जॉंच करने तथा इनके विरूद्ध कार्यवाही की मॉंग की एवं साथ ही अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री राजेश भारद्वाज को भी पूर्व प्रशासन के खिलाफ मामले की जॉंच कर इनके विरूद्ध कार्यवाही की मॉंग कर ज्ञापन दिया। रजिस्ट्रार प्रो. सी.पी. अग्रवाल ने बताया कि सेंकड़ों छात्र-छात्राओें तथा कार्यकर्ता शास्त्री सर्कल से कतारबद्ध हाथों में तख्तियॉं लेकर कलेक्ट्री पहॅंुचे।
गौरतलब है कि गुरूवार 10 दिसम्बर 2015 को विद्यापीठ को एक बडा अनुतोष (राहत) प्रदान करते हुए विद्यापीठ के पक्ष में स्टे दिया। कुल प्रमुख श्री भवंरलाल गुर्जर ने बताया कि कुल द्वारा दायर याचिका पर पर कोर्ट द्वारा आदेश में कहा गया कि उप रजिस्ट्रार, सहकारी समितियों को इस प्रकार के आदेश पारीत करने का कतई अधिकार नहीं है पूर्व में भी उच्च न्यायालय ने इस बाबत् निर्णय दिया हुआ है जिसकी रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां द्वारा इस निर्णय द्वारा अवमानना की है।
यह निश्चित रूप से संविधान एवं अधिकारों की अवहेलना करते हुए कृत्य किया है जो स्वीकार नहीं है। ज्ञातव्य है कि पूर्व प्रशासन एवं कुछ बाहरी लोगों के दबाव में आकर उप रजिस्ट्रार संस्थाऐं श्री अश्विन वशिष्ठ ने 15 माह पूर्व जिस संविधान संशोधन को मान्यता दी गई उसे निरस्त कर दिया, उक्त कार्यवाही करने से पूर्व उप रजिस्ट्रार ने विश्वविद्यालय को अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया था।
कोर्ट ने माना कि संविधान निरस्त करने का अधिकार उप पंजीयक के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। अगर संविधान में कोई गडबडी पाई जाती है तो उप पंजीयक को मात्र आर्थिक दण्ड लगाने का अधिकार है।
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