स्पीड बोट हादसे के बाद निजी फर्म ने गोताखोर को दिलाया स्कूबा डाइविंग का प्रशिक्षण


स्पीड बोट हादसे के बाद निजी फर्म ने गोताखोर को दिलाया स्कूबा डाइविंग का प्रशिक्षण

पिछले दिनों फतहसागर में हुए स्पीड बोट हादसे में जयपुर की मासूम चहक के डूबने पर राहत और बचाव के नाम पर प्रशासन की लापरवाही जगजाहिर हो गयी, झीलों में कोई भी हादसा होने पर प्रशासन के पास राहत एवं बचाव के नाम पर परम्परागत संसाधन एवं स्वयंसेवी गोताखोर ही हैं जिससे रेस्क्यू अभियान में सफलता मिलने में बहुत समय लगता है और कई बार स्थिति बिलकुल हाथ से निकल जाती है।इसके मद्देनज़र नाव संचालन से जुड़ी निजी फर्म ने पहल करते हुए अपने एक कार्मिक को स्कूबा डाइविंग का प्रशिक्षण दिलवाया, जिसका रविवार को डेमो हुआ।

 
स्पीड बोट हादसे के बाद निजी फर्म ने गोताखोर को दिलाया स्कूबा डाइविंग का प्रशिक्षण

पिछले दिनों फतहसागर में हुए स्पीड बोट हादसे में जयपुर की मासूम चहक के डूबने पर राहत और बचाव के नाम पर प्रशासन की लापरवाही जगजाहिर हो गयी,  झीलों में कोई भी हादसा होने पर प्रशासन के पास राहत एवं बचाव के नाम पर परम्परागत संसाधन एवं स्वयंसेवी गोताखोर ही हैं जिससे रेस्क्यू अभियान में सफलता मिलने में बहुत समय लगता है और कई बार स्थिति बिलकुल हाथ से निकल जाती है।इसके मद्देनज़र नाव संचालन से जुड़ी निजी फर्म ने पहल करते हुए अपने एक कार्मिक को स्कूबा डाइविंग का प्रशिक्षण दिलवाया, जिसका रविवार को डेमो हुआ।

फतहसागर में आरटीडीसी के अधीन नौका संचालन करने वाली फर्म यश एम्यूजमेंट ने दो डाइविंग सूट खरीदने के साथ ही कार्मिक सुहेल को पुणे के स्कूबा इंडिया सेंटर में प्रशिक्षण दिलवाया है। प्रशिक्षण के बाद सुहेल ने अन्य कर्मचारी वेला राम को भी प्रशिक्षण दिया। इसके बाद दोनों ने रविवार को फतहसागर झील में रेस्क्यू का डेमो किया। साथ ही लेकसिटी में ही नहीं, संभाग में भी कहीं भी हादसा होने और जरूरत पडऩे पर प्रशासन को सहयोग करने के लिए तैयार रहने का भरोसा दिलाया है।

स्पीड बोट हादसे के बाद निजी फर्म ने गोताखोर को दिलाया स्कूबा डाइविंग का प्रशिक्षण

इस सूट का वजन करीब 20 किलो ग्राम है जिसे पहन कर प्रशिक्षित गोताखोर करीब 25 मिनट तक पानी में रहकर तलाशी कर सकता है। सांस ज्यादा लेने की स्थिति में वह 10 मिनट से ज्यादा अंदर नहीं रह सकता है।

इस सूट की यह खासियत है कि यह 10 फीट से ज्यादा गहराई में काम करने में आसान रहता हैं। इसको पहनकर उतरने में लेडर (सीढि़यां) का सहारा लेना पड़ता है। पानी में तलाशी के दौरान तैरना व सतह पर खड़ा रहना संभव है। पानी से बाहर आने के लिए भी लेडर का सहारा लेना पड़ता है।

रेस्क्यू टीम अंडर वाटर कैमरे की मदद से पानी में 2 फीट के दायरे की रिकार्डिंग कर सकती है जिससे रेस्क्यू ऑपरेशन में काफी मदद मिलती है। पानी में रहने के दौरान रेस्क्यू दल से केवल आवाज के सहारे ही संपर्क किया जा सकता है। हालांकि, डेमो के दौरान अंडर वाटर कैमरे की रिकार्डिंग में हरा पानी ही नजर आया।

Source: Rajasthan Patrika

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