उदयपुर फिल्म फेस्टिवल का दूसरा दिन
जन संस्कृति मंच और उदयपुर फिल्म सोसाइटी के तत्वावधान में आयोजित उदयपुर फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन आज सभी दर्शकों ने सभी फिल्मों को जमकर सराहा और आमंत्रित अतिथियों से संवाद किया।
जन संस्कृति मंच और उदयपुर फिल्म सोसाइटी के तत्वावधान में आयोजित उदयपुर फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन आज सभी दर्शकों ने सभी फिल्मों को जमकर सराहा और आमंत्रित अतिथियों से संवाद किया।
सुबह एकतारा कलेक्टिव की फिल्म ‘तुरुप’ ने दर्शकों को भावुक कर दिया. तुरुप भोपाल शहर के एक चौराहे पर चल रहे शतरंज के टूर्नामेंट के माध्यम से इंसानी जज्बातों और समकालीन राजनीतिक परिदृश्य के उन पर पड रहे असर पर बात करती है। साम्प्रदायिकता, जातिवाद, लिंग भेद सभी मुद्दे शतरंज की बिसात पर चले रहे खेल में गुंथे चले आते हैं। एकतारा कलेक्टिव के सुशील और फिल्म के मुख्य पात्र ‘तिवारी जी’ उर्फ़ अनिल दोनों ने फिल्म बनने की प्रक्रिया और सामूहिक प्रयास के फलसफे को विस्तार से बताया। फिल्म में अमूमन सभी पात्र पेशेवर अभिनेता नहीं हैं और इसी कारण उनकी स्वाभाविकता इस फिल्म में जान डाल देती है।
‘जहाँ चार यार मिल जाएँ’ – इस दस्तावेजी फिल्म ने दिल्ली की जहांगीरपुरी के चार युवकों की ज़िंदगी को करीब से देखते हुए उनकी इच्छाओं, भ्रांतियों, भय और कुंठाओं को दिखाया। यह फिल्म दक्षिण एशिया में नौजवानों की यौनिकता और मर्दानगी की समझ के लिए हुए एक बड़े प्रोजेक्ट के तहत बनी थी। हाल में देश में महिलाओं के बढ़ते यौन उत्पीडन के प्रति चिंता और संवेदनशीलता बढी है, ऐसे में इस फिल्म की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। फिल्म के निर्देशक ने उपस्थित दर्शकों के ढेर से सवालों का जवाब देते हुए कहा कि एक फिल्म बनाते हुए किसी की ज़िंदगी में झांककर उसकी सच्ची आवाज़ को सुनना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। इस फिल्म को बनाने से पहले उन्होंने इन युवकों के साथ लम्बा आत्मीय समय बिताया इस्ल्ये यह फिल्म संभव हो पायी।
‘दास्तानगोई’ भारत की इस बरसों पुरानी सांस्कृतिक परम्परा को पुनर्जीवित करते हुए दास्तानगो राणा प्रताप और राजेश कुमार ने आज ‘दास्ताने सेडीशन’ की प्रस्तुति दी। एक घंटे तक सिर्फ दिलचस्प कहानी, अभिनय और आवाज़ के उतार चढ़ाव के जरिये उन्होंने दर्शकों को बांधे रखा। यह दास्तान मूलतः डॉ. बिनायक सेन को राजद्रोह के आरोप में सज़ा देने के बाद लिखी गयी थी। इसमें ऐयार अमर और खलनायक अफरासियाब की कहानी एक काल्पनिक जगह कोहिस्तान के बारे में बताती है। दास्तान के प्रतीकार्थ और लहजे के उतार चढ़ाव ने दर्शकों को बहुत आनंदित किया। दास्तान के बाद दोनों दास्तानगो ने दर्शकों के साथ सवाल-जवाब सत्र भी किया। राणा प्रताप ने कहा कि तलफ्फुस और संवाद अदायगी की ट्रेनिंग उन्हें अपने उस्ताद हबीब तनवीर और महमूद फारूकी से मिली है और इसलिए वे इसके प्रति बहुत गंभीर हैं। राजेश ने बताया कि दो अलग शहरों में होने के बावजूद इस विधा के अनुशासन के कारण वे एक दिन की तैयारी से इसे कभी भी प्रस्तुत कर सकते हैं।
दर्शकों से खचाखच भरे हॉल में आज की मुख्य प्रस्तुति इस वर्ष की विख्यात फिल्म ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ दिखाई गई। फेस्टिवल संयोजक रिंकू परिहार ने बताया कि कल के मुख्य आकर्षण में तमिल दस्तावेजी फिल्म ‘कक्कूस’ प्रमुख है जो तमिलनाडु में हाथ से मैला उठाने वाले सफाईकर्मियों की कठिन जीवन परिस्थितियों का कारुणिक चित्र प्रस्तुत करती है और इस गैरकानूनी प्रथा को गुपचुप जारी रखने के प्रशासन के षड्यंत्र को उजागर करती है। वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह द्वारा गोरखपुर त्रासदी के माध्यम से हमारी सार्वजानिक स्वास्थ्य व्यवस्था की विसंगतियों को उजागर किया जाएगा। बांगला फिल्म ‘धनंजय’ और ईरानियन फिल्म ‘ऑफ़साइड’ अन्य मुख्य आकर्षण रहेगा।
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