प्राचीन कृषि विज्ञान के द्वितीय अंक का विमोचन


प्राचीन कृषि विज्ञान के द्वितीय अंक का विमोचन

एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउंडेशन राजस्थान अध्याय एवं प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौधोगिकी विश्वविधालय, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आज दिनांक 06 फरवरी 2013 को आयोजित कार्यक्रम में एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन राजस्थान अध्याय द्वारा सम्पादित प्राचीन कृषि विज्ञान बुलेटिन के द्वितीय अंक का विमोचन प्रो. ओ. पी. गिल, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौधोगिकी विष्वविधालय, उदयपुर ने किया।

 

प्राचीन कृषि विज्ञान के द्वितीय अंक का विमोचन

एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउंडेशन राजस्थान अध्याय एवं प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौधोगिकी विश्वविधालय, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आज दिनांक 06 फरवरी 2013 को आयोजित कार्यक्रम में एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन राजस्थान अध्याय द्वारा सम्पादित प्राचीन कृषि विज्ञान बुलेटिन के द्वितीय अंक का विमोचन प्रो. ओ. पी. गिल, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौधोगिकी विष्वविधालय, उदयपुर ने किया।

इस बुलेटिन के सम्पादन में डॉ. एम.एम. सिमलोट, डॉ. आर्इ. जे. माथुर, डॉ. सुनील खण्डेलवाल, डॉ. गणेश राजामणि, डॉ. सुनील इन्टोदिया एवं डॉ. मीना सनाढय की मुख्य भूमिका रही। इस बुलेटिन में प्राचीन कृषि ज्ञान का सारगर्भित संकलन किया गया है।

समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. ओ. पी. गिल, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौधोगिकी विश्वविधालय, उदयपुर ने इस अवसर पर कहा कि हमारा देश भारत प्राचीन समय से ही कृषि प्रधान देश रहा है। हम आजादी के समय खाने के लिए अनाज विदेषों से मंगवाते थे, खेतों में बहुत कम पैदा होता था। फिर हरित क्रांति का दौर आया।

प्राचीन कृषि विज्ञान के द्वितीय अंक का विमोचन

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राजस्थान कृषि विश्वविधालय के प्रथम कुलपति प्रो. के.एन. नाग ने व्याख्यान की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुये कहा कि आधुनिक कृषि एवं अधिक उत्पादन प्राप्त करने की होड़ में हम अपने प्राचीन कृषि ज्ञान को भूला रहे हैं। उन्होनें जैविक खेती एवं पारम्परिक कृषि ज्ञान को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया जिसकी वजह से आज अनेक समस्यायें उत्पन्न हो गर्इ हैं, जिनका निवारण वैदिक खेती या कार्बनिक खेती को अपनाकर ही किया जा सकता है।

इस समारोह के प्रारम्भ में डॉ. एम.एम. सिमलोट, अध्यक्ष, एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन राजस्थान अध्याय, उदयपुर ने राजस्थान अध्याय की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन राजस्थान अध्याय इस ओर काफी सक्रिय रुप से कार्य कर रहा है, साथ ही उपलब्ध प्राचीन पांडुलिपियों का भी हिन्दी भाषा में अनुवाद कर प्रकाशित कर रहा है।

इस अवसर पर एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन राजस्थान अध्याय के सदस्य डॉ. गणेश राजामणि ने ‘कुनपजल एक द्रवीय खाद’ पर अपना व्याख्यान भी दिया।

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