पुरूषार्थ के उपयोग के लिए सही दिशा का चयन करें
जीवन में इतनी बुराईयां व्याप्त है कि यदि हम सम्पूर्ण जीवन पापाचार के साथ भी बिता दे लेकिन बुराईयो का कोई अन्त नही होगा। इसक
जीवन में इतनी बुराईयां व्याप्त है कि यदि हम सम्पूर्ण जीवन पापाचार के साथ भी बिता दे लेकिन बुराईयो का कोई अन्त नही होगा। इसका परिणाम यह होगा कि व्यक्ति स्वयं अधर्मी और निकृष्ट बनकर रह जाएगा।
उक्त विचार श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने पंचायती नोहरा में आयोजित विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि अनेक व्यक्ति मात्र नकारात्मक दृष्टि लेकर समझते है उनकी दृष्टि में अन्धकार ही अन्धकार है उन्हे लगता है कि इस विश्व में चारो तरफ पापाचार ही फैला हुआ है। ऐसा सोच कर वह भी उसी क्षेत्र में आगे बढ़ जाता है। वह यह नही सोचता कि आज भी लाखो व्यक्ति अच्छाइयो के साथ जीते है और पीडि़त मानवता की सेवा में संलग्न है। लाखों लोग शील और सदाचार के उपासक है और सद्गुणों के साथ जी रहे है। हजारों साधु साध्वी स्वयं त्याग पूर्ण जीवन जी रहे है और पापाचार की रोकथाम के लिये अपना पल पल समर्पित कर रहे है नकारात्मक सोच वाले को यह कुछ दिखाई नही देता।
उन्होंने कहा कि देश में लाखों लोग जन सेवा और पशु सेवा के प्रकल्प चला रहे है। लेकिन उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है। ऐसी स्थिति में उसका पुरूषार्थ भी उधर ही काम करता है। मुनि ने बताया कि परमात्मा भगवान महावीर ने एक सूत्र दिया कि जीवन का परमार्थ साधने में अपना पुरूषार्थ लगा दे। यह एक दिशा है मानव मात्र को आगे बढऩे की। यह वह दिशा है जिसके बढने पर व्यक्ति स्वयं तो प्रकाश मान हो ही जाएगा, वह जन जीवन में व्याप्त पापात्मक अन्घकार को भी कम करेगा।
मुनि जी का कहना था कि मानव को मात्र अपने पुरूषार्थ के लिये सम्यक दिशा का निर्धारण करना चाहिये, उसी में उसके जीवन की सार्थकता है। कार्यक्रम का संचालन हिम्मत बड़ाला ने किया व स्वागत अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार डांगी ने किया।
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