राजेन्द्र चोल के 1000 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित संगोष्ठि
साहित्य संस्थान, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर के सभागार में हालैण्ड लीडन के विश्वविद्यालय के संग्रहालय में चोल साम्राज्य की 21 राजाज्ञाएं (ताम्र पत्रों के रूप में) संग्रहित है यह संस्कृत एवं तमिल भाषा के मिले जुले रूप में उत्कीर्ण है; जानकारी पैसिफिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.पी. शर्मा ने मुख्य अतिथि के रूप में साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित चोल शासक राजेन्द्र चोल के एक हजार वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित समारोह में दी।
साहित्य संस्थान, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर के सभागार में हालैण्ड लीडन के विश्वविद्यालय के संग्रहालय में चोल साम्राज्य की 21 राजाज्ञाएं (ताम्र पत्रों के रूप में) संग्रहित है यह संस्कृत एवं तमिल भाषा के मिले जुले रूप में उत्कीर्ण है; जानकारी पैसिफिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.पी. शर्मा ने मुख्य अतिथि के रूप में साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित चोल शासक राजेन्द्र चोल के एक हजार वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित समारोह में दी।
उन्होंने यह भी बताया की इन ताम्रपत्रों की स्तुति भगवान विष्णु से प्रारंभ होती है।
समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राजशेखर व्यास ने बताया कि राजेन्द्र चोल ने भारतीय संस्कृति के समग्र स्वरूप को उजागर किया। उसकी दीग्विजय एवं देश विदेशों में साम्राज्य प्रसार को बतालाया।
श्रीलंका के शासक पर आक्रमण कर उसे अपनी अधीनता में लाया! चोल कालीन स्वायत शासी संस्थाओं के बारे में जानकारी दी। गंगा के महत्व को समझ उसने गंगाईकोण्डा चोलपुरम राजधानी बनाई। गंगाईकोण्डा चोल झील बनवायी एवं स्वयं ने गंगाईकोण्डा चोल की उपाधि धारण की। इसके अतिरिक्त उन्होंने चोल कला, शिक्षा एवं प्रशासन पर अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी दी।
संगोष्ठी में डॉ. के.पी. सिंह ने स्लाइड शो के माध्यम से राजेन्द्र चोल की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। समारोह के विशिष्ठ अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो. के.एस. गुप्ता ने चोल साम्राज्य द्वारा भारतीय संस्कृति के दक्षिण पूर्व एशिया में प्रसार को रेखांकित किया।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत कुलपति, ज.रा.ना. राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय ने बताया कि भारतीय नौ सेना बधाई की पात्र है क्योंकि राजेन्द्र चोल के 1000 वर्ष पूर्ण होने पर नौ सेना द्वारा बड़ा समारोह आयोजित किया। उन्होंने कहा कि राजेन्द्र चोल ने सबसे पहले नौ सेना का निर्माण किया तथा भारतीय नौ सेना ने तमिलनाण्डू सरकार के आग्र्रह पर एक भव्य समारोह का आयोजन किया।
समारोह में प्रो. ललित पाण्डेय ने उत्तरमेरू अभिलेख का जिक्र करते हुए चोल राज्य की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी का संचालन करते हुए डॉ. कुलशेखर व्यास ने कहा कि राजेन्द्र चोल प्रथम राजराजा का पुत्र था और 1014 ई. में चोल साम्राज्य का अधिपति बना था। उसने 1014 ई. से 1044 ई. तक शासन कर कई विजय प्राप्त की और अपने साम्राज्य का विस्तार किया तथा जनहित के कई कार्य किये और भारतीय संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उसके महान कार्यों से उसे इतिहास में राजेन्द्र चोल प्रथम महान के रूप में स्वीकारा जाता है।
आगंतुक विद्वानों का स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने कहा कि चोल साम्राज्य के दक्षिण पूर्व एशिया चीन व जापान तक व्यापारिक कार्य स्थापित करने के कारण मेवाड़ के जस्ते का ज्ञान चीन पहुंचने की पूर्ण सम्भावना है क्योंकि सिटी पेलेस के अभिलेखागार में हैदराबाद की हुण्डी है, जो व्यापार की कड़ी को जोड़ सकती है। साथ ही डॉ. खरकवाल द्वारा रचित मोनाग्राफ आर्कियोलोजी ऑफ राजस्थान का विमोचन किया गया।
संगोष्ठी में सरंस्वती वन्दना श्री भरत आचार्य ने की एवं धन्यवाद डॉ. महेश आमेटा ने किया। संगोष्ठी में संस्थान के डॉ. प्रियदर्शी ओझा, श्री धर्मनारायण सनाड्य, श्रीमती संगीता जैन के साथ शोध छात्र सचिन दीक्षित, रोहित मेनारिया, नारायण पालीवाल, डॉ. हंसमुख सेठ, डॉ. दिलीप गर्ग, रघुवीर सिंह देवड़ा, शहर के प्रसिद्ध इतिहासकार एवं साहित्यकार डॉ. सतीश आचार्य, डॉ. विष्णु माली, डॉ. पी. के. चूण्डावत, डॉ. नीरज त्रिपाठी, डॉ. जे.के. ओझा, डॉ. देव कोठारी, डॉ. गोपाल व्यास, डॉ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित, डॉ. मेहता, डॉ. नीलम कौशिक, डॉ. हेमेन्द्र चोधरी, डॉ. आमेटा, डॉ. छगनलाल बोहरा, डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, डॉ. युवराज सिंह, डॉ. अलकनन्दा शर्मा, श्री अरूण पानेरी डॉ. संजय मिश्रा तथा समारोह में मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय, पेसिफिक विश्वविद्यालय, मीराकन्या महाविद्यालय, आहड़ संग्राहलय मानव सर्वेक्षण विभाग, भोपाल नोबल्स महाविद्यालय के विद्वानों ने भाग लिया।
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