वरिष्ठों, नवांगतुक व पारंपरिक मूर्ति शिल्पी एक मंच पर
शिल्पग्राम परिसर में चल रही मल्टीमीडिया कार्यशाला में विभिन्न माध्यमों से मूर्ति शिल्पों का सृजन कार्य चल रहा है जिसमें लोक तथा अभिजात्य शिल्प का अनूठा समागम है।
शिल्पग्राम परिसर में चल रही मल्टीमीडिया कार्यशाला में विभिन्न माध्यमों से मूर्ति शिल्पों का सृजन कार्य चल रहा है जिसमें लोक तथा अभिजात्य शिल्प का अनूठा समागम है।
कोई मार्बल के प्रस्तर खण्ड को आकर दे रहा है तो कोई मिट्टी के लौंदे को कलात्मक ढंग से उकेर रहा है और कोई काष्ठ खण्ड में आकृति खोजने का काम कर रहा है। विभिन्न माध्यमों पर काम करने वाले मूर्ति शिल्प कलाकारों को एक मंच पर लाने तथा उनमें तकनीकी व शैलिगत कला के विनिमय के उद्देश्य से आयोजित इस कार्यशाला में दो दर्जन से ज्यादा शिल्पकार भाग ले रहे हैं।
कार्यशाला में युवा शिल्पी ने काष्ठ और वृक्ष की टहनियों से एक अनूठा बांसुरी तैयार की है जिसमें फूँक मारने पर स्वर प्रस्फुटित होते हैं। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लौह शिल्पी नंदलाल विश्वकर्मा भट्टी पर लोहा तपाते व पीटते नजर आते हैं। नन्दलाल ने सात फीट आकार की आदिम प्रतिमा बनाई हैं जो शिल्प और संस्कृति का परिचायक प्रतीत होती है।
उदयपुर के शिल्पी रोकेश कुमार सिंह ने प्रस्तर खण्ड से जहां कृति बनाई है वहीं फाइबर मोल्ड तैयार करने में साथियों की मदद कर रहे हैं। अहमदाबाद के ही एक शिल्पकार बताते हैं कि वे अपने परिजनों के साथ पिछली दीपावली पर घूमने आये थे तब यहां मार्बल की खण्डों को देख कर उनके मन में यहां के पत्थरों के साथ काम करने की उत्कंठा जागृत हुई और इस राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला के जरिये उनकी ये क्षुधा शांत हुई।
कार्यशाला में अहमदाबाद की देविबा ने प्रस्तर खण्ड व विभिन्न धातुओं के सम्मिश्रण से कृति तैयार की जिसमें धातु निर्मित तीर एक अनूठके अंदाज में सृजित किया है।
कार्यशाला के समन्वयक अहमदाबाद के महेन्द्र भाई कडिय़ा, उदयपुर के प्रो. सुरेश शर्मा व एल.एल वर्मा ने बताया कि एक साथ कई माध्यमों पर काम करने का अवसर प्रदान करने की दृष्टि से यह कार्यशाला अनूठी व वृहद है। कडिय़ा ने बताया कि कार्यशाला में मूर्ति शिल्पियों की लगन अनूठी है इनमें से कुछ मूर्तिकार देर रात तक काम करते हैं।
कार्यशाला का समापन सोमवार 18 फरवरी को 12.30 बजे होगा इस अवसर पर कृतियाँ भी प्रदर्शित की जायेगी।
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