अणुव्रत दिवस पर हुए प्रवचन


अणुव्रत दिवस पर हुए प्रवचन

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी संभा द्वारा तेरापंथ भवन में चल रहे पयुर्षण महापर्व कार्यक्रम के तहत पयुर्षण पर्व के पांचवें दिन अणुव्रत दिवस पर साध्वीश्री कनकश्रीजी ने भगवान महावीर की जन्मांतर यात्रा का वर्णन करते हुए 'महान माँ, महान संतान' विषयक उद्बोधन दिया।

 
अणुव्रत दिवस पर हुए प्रवचन

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी संभा द्वारा तेरापंथ भवन में चल रहे पयुर्षण महापर्व कार्यक्रम के तहत पयुर्षण पर्व के पांचवें दिन अणुव्रत दिवस पर साध्वीश्री कनकश्रीजी ने भगवान महावीर की जन्मांतर यात्रा का वर्णन करते हुए ‘महान माँ, महान संतान’ विषयक उद्बोधन दिया।

साध्वीश्री ने बताया कि कैसे माँ त्रिशला को 9 माह 8 दिन की प्रसव पीड़ा के बाद भगवान महावीर का जन्म हुआ और भगवान महावीर ने माँ त्रिशला के गर्भ मे ही कायोत्सर्ग, त्रिगुप्ति साधना व अवधि ज्ञान किया और तत्पश्चात् उनका जन्म कल्याणक हुआ।

साध्वीश्री ने अणुव्रत दिवस पर सभी से सडक़ पर पैदल एवं वाहन पर चलते वक्त मोबाइल पर बात ना करने का संकल्प लेने के लिए कहा।

साध्वीश्री समितिप्रभा ने अणुव्रत दिवस पर ‘संयम से संवारे व्यक्तित्व विषयÓ पर कहा कि अणुव्रत का अर्थ छोटे-छोटे व्रतों से गुंथी हुई आचार संहिता है। अणुव्रत निर्मल गंगा है, जो अभाव ग्रस्त व्यक्ति को शीतल छांव देता है। साध्वीश्री ने बताया कि अणुव्रत के 11 नियम हैं। साध्वीश्री मधुलता ने कहा कि बाहरी उपकरणों से आंतरिक सौन्दर्य को नहीं संवारा जा सकता। आन्तरिक सौन्दर्य को अगर संवारना है तो उसके लिए सबसे बड़ा उपकरण है संयम।

अणुव्रत की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि इस कलियुग में आज हर व्यक्ति में त्याग की चेतना की जगह भोग चेतना, पदार्थ चेतना, स्वार्थ चेतना ही घर कर रही है। व्यक्ति अपने मूल उद्देश्य से भटकता जा रहा है। भारत की आजादी के बाद तो धर्म और देश ती परिस्थितियां काफी बदल चुकी है। देखा जाये तो पूर्व पश्चिम में समा रहा है तो पश्चिम पूरब की तरफ आ रहा है। सभी सुख चाहते है। सुख तो कही भी मिल सकता है। लेकिन लोगों में उसे खोजने का तरीका अलग-अलग है। लोग स्वार्थ में, पदार्थ में या भोग में सुख की खोज करते है जबकि परम सुख है अणुव्रत और संयम। अणुव्रत के नियमों का पालन करके चरित्र निर्माण किया जा सकता है।

जिस देश के नागरिकों का चरित्र अच्छा होता है वह राष्ट्र हमेशा उन्नत रहता है। उन्होंने कहा कि सभी कहते है जियो और जीने दो, लेकिन इसके साथ संयम शब्द को और जोडकर कहना चाहिये कि संयम से जीयो और संयम से जीने दो। अणुव्रत का मतलब है छोटे-छोटे व्रत। श्रावक वह है जिसके जीवन में व्रत होते है। इन व्रतों से व्यक्ति अपनी चेतनाओं को विकसित कर सकता है। जब तक 12 व्रतों की उपासना हम नही करेंगे तब तक जैनी नही कहलायेंगे। यदि हम एक समान तपस्या करेंगे तो सभी एक समान ही बनेंगे। उन्होंने कहा कि हमें तीर्थंकरों के जीवन से प्रेरणा लेकर कषायमुक्त जीवन जीने की कला सीखनी चाहिये। अणुव्रत का सिद्धान्त लोगों को प्रेरणा देता है और अहिंसक बनाने में सहायक सिद्ध हो सकता है।

उन्होंने कहा कि अनुशासन भय नहीं बल्कि आत्मप्रेरणा है। तेरापंथ युवक परिषद की ओर से सोमवार शाम त्वरित प्रश्न मंच प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। इसमें प्रतिभागियों ने हर्ष से हिस्सा लिया।

सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि ‘तेरापंथ समाज विजन-2025Ó निबंध प्रतियोगिता होगी। इसके लिए प्रतिभागियों से निबंध आमंत्रित किए गए हैं। बुधवार को जप दिवस पर विशेष प्रवचन होंगे।

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