अपनी कीमत खुद लगाओ, दूसरे को मत लगाने दो


अपनी कीमत खुद लगाओ, दूसरे को मत लगाने दो

जिंदगी सिर्फ काटने के लिए नहीं बल्कि कुछ कर गुजरने के लिए मिली है। इसके लिए अपने आप में रोमांच पैदा करें। अपनी जिंदगी का कैनवास, अपने हाथ में ब्रश और अपने ही रंग। फिर कमी और चिंता किस बात की है। चाहें जैसा चित्र बनाएं, बच्चे हों या बूढ़े काम तो करना पड़ेगा। अपनी कीमत खुद लगाओ। दूसरे को मौका मत दो कि वह आपकी कीमत लगाए।

 

अपनी कीमत खुद लगाओ, दूसरे को मत लगाने दो

जिंदगी सिर्फ काटने के लिए नहीं बल्कि कुछ कर गुजरने के लिए मिली है। इसके लिए अपने आप में रोमांच पैदा करें। अपनी जिंदगी का कैनवास, अपने हाथ में ब्रश और अपने ही रंग। फिर कमी और चिंता किस बात की है। चाहें जैसा चित्र बनाएं, बच्चे हों या बूढ़े काम तो करना पड़ेगा। अपनी कीमत खुद लगाओ। दूसरे को मौका मत दो कि वह आपकी कीमत लगाए। आज राडो की घड़ी एक लाख रूपए की आती है। है तो वह भी सभी सामान्य घडिय़ों की तरह लेकिन उसमें एक हजार रूप्ए की घड़ी है और 99 हजार रूप्ए उस कंपनी राडो के नाम के हैं। आपको सपने पूरे तो करने हैं। तय सिर्फ यह करना है कि सपने अपने पूरे करने हैं या और किसी के। आप सपने देखेंगे तो अपने सपने पूरे करेंगे और एंटरप्रेन्योर बनेंगे। नौकरी करेंगे तो दूसरे के सपने पूरे करने के लिए उसके यहां काम करेंगे।

ये विचार राष्ट्रीय मोटीवेशनल स्पीकर इंदिरा प्रियदर्शिनी अवार्ड से सम्मानित एसपी भारिल्ल ने रविवार को सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय ऑडिटोरियम में जैन सोश्यल ग्रुप समता की ओर से होने वाले ऐतिहासिक कैरियर काउंसलिंग एवं मोटीवेशनल सेमिनार में मोटीवेशनल स्पीकर के रूप में व्यक्त किए। सेमिनार में डेढ़ हजार से अधिक बच्चों, अभिभावकों, युवाओं ने हिस्सा लिया। न सिर्फ पूरा ऑडिटोरियम खचाखच भरा था बल्कि बाहर एलईडी लगाकर तीन सौ बच्चों को बिठाने के बावजूद कई लोग खड़े रहे।

उन्होंने कहा कि बच्चे के 18 वर्ष तक के होने तक उसे सिर्फ और सिर्फ निराशावादी बातें ही सुनने को मिलती है। ये तुमसे नहीं होगा। ये तुम नहीं कर पाओगे। ऐसा किसी ने कहा कि हां, ये तो तुम कर ही लोगे। 18 वर्ष की उम्र तक बच्चे की मां से बिगड़ जाती है और पिता से बन नहीं पाती। इसलिए वह घर से बाहर के परिवेश में, दोस्तों में अपना हमदर्द ढूंढता है। ये एक बहुत बड़ी हकीकत है जिन्दगी की।

भारिल्ल ने कहा कि हम घर से निकलते हैं बाहर जाने के लिए। रेलवे स्टेशन पर जाकर टिकट लेते हैं। उसे यह तो नहीं कहते कि कहीं की भी दे दो, किसी भी ट्रेन की दे दो। सफर का गंतव्य पता है लेकिन दुर्भाग्य है कि हमें अपनी जिंदगी के गंतव्य का नहीं पता। ऐसा कोई कॉलेज नहीं है जो ये बता दे कि अमीर कैसे बना जा सकता है। अच्छे नौकर कैसे बनते हैं, यह सभी कॉलेज, यूनिवर्सिटीज सिखाती हैं। अमीर बनना तो हमें घर में सिखाया जाता है तभी तो कहा जाता है कि अमीर का बेटा अमीर और गरीब का बेटा गरीब।

पहचान तो उसी की होगी जिसने सपना देखा, उसकी नहीं जिसने काम किया। धीरूभाई अम्बानी ने सपना देखा कि गरीब से गरीब व्यक्ति के पास मोबाइल होना चाहिए। यह कैसे संभव हुआ, उनके यहां काम करने वालों ने इसे संभव बनाया। जिसने यह काम किया उन्हें कोई नहीं जानता लेकिन अम्बानी ने यह सपना देखा और आज विश्व पटल पर छा गए।

अपनी कीमत खुद लगाओ, दूसरे को मत लगाने दो

काम कैसे होगा, यह मत सोचो। इसे क्यों करना है, इस पर विचार करो। काम करने वाले तो हजारों मिल जाएंगे लेकिन उसे सही साबित करने के लिए क्यों का जवाब आपके पास होना चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कुत्ते ने अपनी भूख मिटाने के लिए खरगोश का पीछा किया। दोनों बहुत दौड़े और आगे खरगोश एक बिल में छिप गया। दोनों ने आपस में बात की। कुत्ते ने कहा कि हम दोनों ही तेज दौड़े लेकिन मैं तुम्हें पकड़ क्यों नहीं पाया। खरगोश ने जवाब दिया कि तुम अपने लंच के लिए दौड़ रहे थे और मैं लाइफ के लिए। यही फर्क है। रेस जीतने वाला इसलिए जीतता है क्योंकि हारने वाले से उसके पास बड़ा सपना है। किसी भी काम के लिए ज्ञान की नहीं ड्रीम की जरूरत है। सपना पूरा नहीं होता तो सपना छोडऩा नहीं है, उसके तरीके बदलने होंगे। मुहम्मद गौरी ने 17 बार पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया लेकिन 18 वीं बार पृथ्वीराज चौहान ने कह दिया कि तुझे हराकर मुझे बार बार अच्छा नहीं लगता क्योंकि हारोगे तो वापस आ जाओगे। आज मैं ही हार जाता हूं। गौरी जैसी लत हम सबको लगनी चाहिए कि एक बार और प्रयास करें। उसने 17 बार प्रयास किया।

इससे पूर्व कैरियर काउंसलिंग को लेकर आल्टएचआर कंपनी अहमदाबाद के निदेशक अरूण राज ने कहा कि आज के युग में 70 से 80 प्रतिशत एम्पलाई अपनी प्रोफाइल के अनुसार फिट नहीं होते। कैरियर तो चुन लिया लेकिन उसे आगे चला नहीं पाते। आपने अपने कैरियर में तन, मन से काम नहीं किया तो लम्बा नहीं चल पाएंगे। वह काम करें जिसमें आप अच्छे हों सिर्फ एवरेज नहीं। अगर प्लानिंग है तो फोकस करें। आने वाले भविष्य में टिकने के लिए निरंतर लर्निंग बहुत जरूरी है। अगर नहीं सीखे और जमाने के साथ नहीं चले तो जल्द ही आउट हो जाएंगे। अभिभावक बच्चों के सपोर्ट सिस्टम बनें। उन्हें अच्छे-बुरे की एडवाइज करें लेकिन कैरियर की राह में उनके लिए रोड़ा न बनें। तनावमुक्त जीवन जीने वाला ही सक्सेस कैरियर वाला होगा। इंटरेस्ट, एक्टिविटी और प्लानिंग अगर अपनी जिंदगी में ये तीनों नहीं हैं तो फिर कुछ नहीं हो सकता। कैरियर में लोकेशन का भी अहम रोल है। आईटी में बीई कर ली और अहमदाबाद में नौकरी ढूंढेंगे तो कुछ हासिल नहीं होगा। उसके लिए बेंगलुरू, पुणे जाना ही होगा।

कैरियर काउंसलर एवं कॉर्पोरेट ट्रेनर हिमांशु पालीवाल ने पावर पाइंट प्रजेन्टेशन के माध्यम से बताया कि कैरियर क्या है। तनाव बिलकुल न पालें। चाहे किसी भी प्रोफेशन में हों। आज के युग में 10 हजार से अधिक प्रोफेशंस हैं। साइंस लेने का अर्थ सिर्फ इंजीनियर या डॉक्टर बनना नहीं है। इसके आगे जहां और भी है। आज के युवा का सबसे बड़ा ड्रॉबैक यही है कि भविष्य की कोई योजना नहीं है। सिर्फ भीड़ को फॉलो कर रहे हैं। मोटीवेशन नहीं मिलता। फोकस नहीं है। क्वालिटी को छोडक़र क्वांटिटी पर ध्यान जा रहा है। खुद को डिस्कवर करें, पेरेन्ट्स, फ्रेंड्स से चर्चा करें लेकिन निर्णय अपना करें और अपने निर्णय पर एक बार फिर विचार करें। प्रेक्टिस करें, कन्टीन्यू कंसन्ट्रेट होकर डिटर्मिनेशन के साथ वर्क करें, सफलता निश्चित मिलेगी।

मुख्य अतिथि के रूप में गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि मैं स्वयं एक शिक्षक रहा हूं इसलिए शिक्षा की महत्ता समझता हूं। आज के युग में सर्वाधिक बदलाव की जरूरत किसी क्षेत्र में है तो वह सिर्फ और सिर्फ शिक्षा ही है। विशिष्ट अतिथि के रूप में महापौर चन्द्रसिंह कोठारी, ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा, चित्तौडग़ढ़ पुलिस अधीक्षक प्रसन्न खमेसरा मौजूद रहे। जेएसजी समता की ओर से अतिथियों का उपरणा ओढ़ा स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मान किया गया।

संगठन के अध्यक्ष एवं सेमिनार के संयोजक अरूण माण्डोत ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि स्कूली बच्चों को आरंभ से ही भविष्य के बारे में शिक्षा मिले। इस संदर्भ में जेएसजी समता का यह हमारा प्रयास रहा। ऐसे आयोजन आगे भी करने को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं। कार्यक्रम में इंद्रसिंह मेहता, डॉ. सुभाष कोठारी ने भी विचार व्यक्त किए। सेमिनार के सफल आयोजन में कमल कोठारी, राकेश नंदावत, पुष्पेन्द्र परमार, नरेन्द्र वया, राजेश नाहर आदि ने सक्रिय सहयोग दिया।

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