शिल्पग्राम उत्सव: जो भी आया कुछ ना कुछ ले कर ही गया
यहां शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ में हाट बाजार का आलम ये है कि शहर तथा आस-पास के गांवों या जिलों से जो भी शिल्पग्राम के हाट बाजार में आया वो यहां बैठे शिल्पकारों की बनाई कलात्मक सौगात अपने साथ ले जाना नहीं भूले। उत्सव के सातवें दिन हाट बाजार में शिल्प उत्पादों की बिक्री का दौर जारी रहा। बुधवार शाम रंगमंच पर आखिरी प्रस्तुति के लिये जैसे ही सिद्दी कलाकारों ने मंच पर प्रवेश किया तो दर्शक झूम उठे। लोक वाद्यों ढोल, ढोलकी, शंख की धुन पर थिरकते हुए कलाकारों ने प्रस्तुति के दौरान सिर से नारियल फोड़ दर्शकों पर अपने नर्तन की अनूठी छाप छोड़ी। कार्यक्रम में इसके अलावा रोप मलखम्भ भ रोचक प्रस्तुति बन सकी।
यहां शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ में हाट बाजार का आलम ये है कि शहर तथा आस-पास के गांवों या जिलों से जो भी शिल्पग्राम के हाट बाजार में आया वो यहां बैठे शिल्पकारों की बनाई कलात्मक सौगात अपने साथ ले जाना नहीं भूले। उत्सव के सातवें दिन हाट बाजार में शिल्प उत्पादों की बिक्री का दौर जारी रहा।
दस दिवसीय उत्सव में बुधवार का दिन शिल्पकारों के लिये खुशनुमा रहा तथा विभिन्न दूकानों पर बैठे शिल्पकार मेला प्रारम्भ होने से ले कर देर शाम तक शिल्प उत्पादों की सौदेबाजी में व्यस्त रहे। उत्सव में लगे हाट बाजार में बैइे शिल्पकारों की कलात्मक वस्तुओं को देखने व खरीदने की ललक में न केवल उदयपुर शहर अपितु आस-पास के गांवों के साथ-साथ राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, डुंगरपुर आदि जिलों से भी काफी संख्या में लोग मेले में आये।
बुधवार को हाट बाजार की शुरूआत धीमी चाल से हुई मगर दोपहर बाद और देर शाम तक भारी तादाद में लोग शिल्पग्राम पहुंचना प्रारम्भ हुए तथा लोगों ने हाट बाजार में खूब खरीददारी की। हाट बाजार में केन बेम्बू की कलात्मक चीजे़, लेदर लेम्प शेड, वुडन फर्नीचर, मार्बल मूर्तियाँ, मिट्टी की मूर्तियाँ, गैस पर काम आने वाले मिट्टी के तवे, गर्म बंडी, वूलन जैकेट, राजस्थानी पेन्टिंग्स, वूलन चप्पल, भरथ कारीगरी और मोतियों से अलंकृत कुशन कवर, वूलन कारपेट, फ्लाॅवर पाॅट्स, खुर्जा पाॅटरी की कलात्मक वस्तुएं, सी शैल की कलात्मक व सजावटी वस्तुएं, नारियल के छिलकों की कलात्मक चीजा़ें आदि के अलावा, विभिन्न प्रकार के वस्त्रों, साड़ियों आदि के स्टाॅल पर खरीददारों की भीड़ देखी गई। इसके साथ ही लोगों ने विभिन्न लोक कला प्रस्तुतियों के अलावा घोड़े व ऊंट की सवारियों के आनन्द के साथ खान-पान का मजा लिया।
पेन्टिंग्स से सजे लेम्प शेड्स- यहं शिल्पग्राम उत्सव के हाट बाजार में महाराष्ट्र की प्रसिद्ध कला पिंगुली चित्रकारी को एक नये व अनूठे अंदाज में देखा जाता है। दरअसल पिंगुली महाराष्ट्र तथा कनार्टक की एक प्रचलित कला शैली है जिसमें चर्म पर रामायण, महाभारत, गीता जैसे ग्रंथों के विभिन्न प्रसंगों के चित्र रंगों के प्रयोग से बनाये जाते हैं। कलाकार इन ले कर गांव-गांव घूमता है और चित्र में वर्णित प्रसंग के समक्ष दीप रख कर उसकी कथा सुनाता है। हाट बाजर में बैठे शिल्पकार ने इसी पिंगुली चित्रकारी को चमड़े पर बना कर उससे आकर्षक लेम्प शेड्स बनाये हैं। पाश्र्व में प्रकाश होने की स्थिति में चित्र खूबसूरती से उभर कर आते हैं।
रंगमंच पर सिद्दी धमाल, संबलपुरी, पुग चोलम व भांगड़ा की धूम
यहां शिल्पग्राम के मुक्ताकाशी रंगमंच पर बुधवार को आॅडीशा के संबलपुरी नृत्य, मणिपुर का पुग चोलम तथा पंजाब के भांगड़ा साथ-साथ गुजरात के सिद्दी कलाकारों ने अपनी आल्हादकारी प्रस्तुतियों से कला रसिकों को उल्लास व उत्साह में अभिवृद्धि कर दी।
रंगमंचीय संध्या गुजरात के वसावा होली नृत्य से प्रारम्भ हुई, इसके बाद पद्दूचेरी का नृत्य वीर वीरई नाट्यम ने दर्शकों पर अपनी कला का रंग दिखाया। इसके बाद सहरिया कलाकारो की कला को दर्शकों ने बेहद रूचि से देखा। कार्यक्रम में होजागिरी, स्टिक परफोरमेन्स व थांग-ता जहां मार्शियल आर्ट की प्रदर्शनात्मक कलाएं थी वहीं सातवें दिन मणिपुर के पुंग चोलम में ढोल वादकों ने पुंग (ढोल) का एक साथ विभिन्न लयकारी पर नृत्य की भंगिमाओं के साथ करके दर्शकों को लुभाया।
इस अवसर पर पंजाब के लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा के ढोल वादक ने जेसे ही ढोल बजाया तो दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शकों की बल्ले बल्ले हो गई तथा दर्शक कलाकारों के साथ थिरकने लगे। इस मौके पर असम का बिहू नृत्य दर्शकों के लिये लावण्य भरी पेश कश थी तो उत्तराखण्ड के कलाकारों ने छपेली नृत्य से अपनी परंपराओं को दिखाया।
इस अवसर पर मांगणियार कलाकारों का गायन तथा उमर फारूख के भाई का भपंगवादन को दर्शकों ने भरपूर सराहा। कार्यक्रम में ही अहमदाबाद के हेमन्त खरसाणी ने अपनी मिमिक्री से दर्शकों में हंसी के फव्वारी छुड़वाये।
बुधवार शाम रंगमंच पर आखिरी प्रस्तुति के लिये जैसे ही सिद्दी कलाकारों ने मंच पर प्रवेश किया तो दर्शक झूम उठे। लोक वाद्यों ढोल, ढोलकी, शंख की धुन पर थिरकते हुए कलाकारों ने प्रस्तुति के दौरान सिर से नारियल फोड़ दर्शकों पर अपने नर्तन की अनूठी छाप छोड़ी। कार्यक्रम में इसके अलावा रोप मलखम्भ भ रोचक प्रस्तुति बन सकी।
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