सामाजिक बदलाव है ज़रूरी
उतरी भारत में दहेज एक सामाजिक कुप्रथा के रूप में बेहद घातक रूप लेता जा रहा है । एक तरफ़ लोग अपनी बच्चियों को शिक्षा से जोड़ने के सपने संजोय रहे है एवं उनका जीवन आत्मनिर्भर बनाना चाह रहे है । वही दूसरी तरफ उन्हीं बालिकाओं की शादी होने का समय जब क़रीब आता है तब दूल्हे के पक्ष की तरफ़ से मुंह मांगे दहेज की अनावश्यक मांग की जाती है। हरियाणा ,राजस्थान और उतरप्रदेश जैसे राज्यों में हालात आज भी बिल्कुल सामान्य नहीं कहे जा सकते है। वर्तमान दौर में समाज की हो रही इस दुर्गति ने आज के शिक्षित समाज की आधूनिकता पर एक जोरदार तमाचा मारा है
उतरी भारत में दहेज एक सामाजिक कुप्रथा के रूप में बेहद घातक रूप लेता जा रहा है । एक तरफ़ लोग अपनी बच्चियों को शिक्षा से जोड़ने के सपने संजोय रहे है एवं उनका जीवन आत्मनिर्भर बनाना चाह रहे है । वही दूसरी तरफ उन्हीं बालिकाओं की शादी होने का समय जब क़रीब आता है तब दूल्हे के पक्ष की तरफ़ से मुंह मांगे दहेज की अनावश्यक मांग की जाती है। हरियाणा ,राजस्थान और उतरप्रदेश जैसे राज्यों में हालात आज भी बिल्कुल सामान्य नहीं कहे जा सकते है। वर्तमान दौर में समाज की हो रही इस दुर्गति ने आज के शिक्षित समाज की आधूनिकता पर एक जोरदार तमाचा मारा है । देश के गरीब परिवारों की आर्थिक तंगहाली के बावजूद भी अंधाधूंध की जाने वाली दहेज की यह भारी भरकम मांग हमारी सामाजिक दुर्दशा का परिचायक बनती जा रही है। ऐसी स्थिति में समाज के सामने बदलाव की उम्मीदें अब केवल आज के नये युवा ही जगा सकते हैं। देश में शिक्षा का स्तर तो अवश्य बढ़ा है लेकिन सामाजिक समस्याओं में कमी बिल्कुल नहीं आयी है इससे थोड़ा इतर देखे तो उलट नयी समस्याएँ पैदा हो गई है। महिलाओं , लड़कियों और मासूम बच्चियों के साथ सामाजिक मान मर्यादाओं की आड़ में देशभर में बलात्कार ,ज्यादती ,मारकूट की घटनाएँ विश्वपटल पर अपने देश को शर्म -हया से तार-तार कर रही है। फिर भी हम बेइज़्जत होकर ये सिलसिला जारी रखे हुए हैं ।
सामाजिक समस्याएँ दिनोंदिन नये तौर-तरीकों से बढ़ती ही जा रही है। बदलाव करने की जो कोई पहल करता है उसे जातिगत पंचों द्वारा , समाज द्वारा या संबंधित जाति के द्वारा तिरस्कार करके बाहर निकाल दिया जाता है ।
भारत में एक ओर मेट्रॉपॉलिटन सिटीज हर तरह की सामाजिक बुराइयों के प्रति बदलाव लाने के लिए बुलेट की रफ्तार से भागना चाह रही है वही दूसरी तरफ़ हमारे गांव अब भी केवल रेंग रहे हैं। कैसे बदलेगा हमारा देश ? कैसे खत्म होंगे ये सामाजिक अत्याचार ? कैसे पढेगी और आगे बढ़ेगी हमारी बच्चियां ? ज़रा सोचो ! केवल दूसरो को ही मत कोसो ! एक सुदृड़ शुरुआत कीजिए अपने आप से । पहले खुद के साथ बदलाव कीजिए ।
अपने घर में भी आपस में बातचीत शुरू कीजिए । कोई ज्याद फ़र्क़ नहीं पड़ता , भले ही आपके मां – बाप कम पढ़े लिखे हो हां अगर आप उनको समझाने में दक्ष है ,थोड़े बहुत हुनरमंद है तो बेशक बलदाव संभव है ।आप जो अपने समाज के बारे में सोचते हैं उसे धरातल पर करके देखना शुरू कीजिए । आप अपने आस-पास छोटे -छोटे बदलावों के दस्तख़त करने की आदत बनाएगा। लोगों के तानों से दूर रहिए । आज के युवा जो अभी जोब कर रहे है ,जॉब की तलाश में है , कॉलेजों और स्कूलों में पढ़ते है , रिसर्च में बिजी है उनसे भी मेरा आग्रह है आप आगे आइए। चाहे आप बॉयज हो गर्ल्स हो।
बस खुद को सामाजिक विकास का असली नायक – नायिका बनाने के लिए आपको अंतर्मन से तैयार हो जाना चाहिए । चाहे आप किसी भी जाति -धर्म से संबंध रखते है , लेकिन दोस्तों एक बात याद ज़रूर रखिएगा कि बदलाव एक ऐसी दुर्लभ जड़ी बूटी है जिससे बहुत ठीक किया जा सकता है, हमारे आस पास के प्रदूषित असामाजिक एटमॉस्फियर को निस्संदेह हेल्दी बनाया जा सकता है ।
पॉजिटिविटी के बीज स्वयं में बोने के लिए आपको बदलावपसंद और पॉजिटिव लोगों के बीच अक्सर रहना चाहिए। अच्छी बुक्स और अच्छी मैगजीन्स के आर्टिकल्स को पढ़ते रहना चाहिए या अपनी आदत में इसे शुमार करना चाहिए। मैं दावे के साथ कह सकता हूं आपके आउटलुक पर लोग बड़ा प्राउड फील करेंगे। आप बेशुमार लोगों की फेहरिश्त का हिस्सा बन जायेंगे।
नकारात्मक लोगों को बिल्कुल अकेला मत छोड़ो और उनको हो सके तो भीड़ में भी मत छोड़ो जब तक कि वो सकारात्मकता का माहौल स्वयं में पैदा न कर पाये । बल्कि उन्हें तो समय -समय पर अपने साथ रख कर कुछ न कुछ सिखाते रहिएगा। एक दिन वो आपके साथ खड़े होंगे। बिल्कुल आपकी बगल में खड़े होंगे । न आपसे आगे , न ही आपसे पीछे। बस यही से एक बड़े बदलाव का सिलसिला शुरू हो जाता है।
Contributed by: Rakshit Parmar – Udaipur
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