मृदा स्वास्थ्य के लिए सामाजिक चिंतन आवश्यक – किरण महेश्वरी


मृदा स्वास्थ्य के लिए सामाजिक चिंतन आवश्यक – किरण महेश्वरी

राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय व कृषि रसायन एवं मृदा विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘विश्व मृदा दिवस‘‘ शनिवार, 05 दिसम्बर. को संगोष्ठी कक्ष, कृषि प्रसार शिक्षा विभाग, आरसीऐ परिसर मे प्रातः 11.00 बजे आयोजित किया गया।

 

मृदा स्वास्थ्य के लिए सामाजिक चिंतन आवश्यक – किरण महेश्वरी

राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय व कृषि रसायन एवं मृदा विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘विश्व मृदा दिवस‘‘ शनिवार, 05 दिसम्बर. को संगोष्ठी कक्ष, कृषि प्रसार शिक्षा विभाग, आरसीऐ परिसर मे प्रातः 11.00 बजे आयोजित किया गया। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशानुसार वर्ष 2015 को ‘‘अर्न्तराष्ट्रीय मृदा वर्ष‘‘ के रूप मे मनाया जा रहा है। 

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि माननीया केबीनेट मंत्रीः जनस्वस्थ्य अभियांत्रिकी एवं भू जल विभाग, राजस्थान सरकार श्रीमति किरण महेश्वरी ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। श्रीमति महेश्वरी ने अपने सम््बोधन मे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के दिये नारे ‘‘स्वस्थ धरा-खेत हरा’’ से अपनी बात प्रारम्भ करते हुऐ कहा कि केंद्र सरकार लोगों केे मृदा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है तथा मृदा स्वास्थ्य योजना के अन्तर्गत 3 वर्षों में देश के किसान भाइयों को 14 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराये जायेगें।

उन्होंने समारोह में उपस्थित कृषकों को ‘‘ मृदा हैल्थ कार्ड‘‘ भी वितरित किये। माननीया मंत्री जी ने जानकारी देते हुऐ बताया कि प्रदेश सरकार किसान हित के लिए कृतसंकल्प है। इस योजना के क्रियान्वयन में हमारा राज्य अन्य राज्यों से अग्रणी है। वर्तमान में राज्य में 56 मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालायें कार्य कर रही है, परन्तु 68.88 लाख जोतों का मृदा स्वास्थ्य कार्ड तैयार करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने वर्ष 2015 में 55 नई मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालायें खोली है जिससे मृदा स्वास्थ्य कार्ड का कार्य समय पर पूर्ण किया जा सके।

मृदा स्वास्थ्य के लिए सामाजिक चिंतन आवश्यक – किरण महेश्वरी

कार्यक्रम की अघ्यक्षता कर रहे महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के माननीय कुलपति प्रो. पी. के. दशोरा ने अपने उदबोधन मे कहा मात्र 15 से.मी. मिट्टी की परत तैयार होने में प्रकृति को 1000 वर्ष लग जाते हैं। खेत की मिट्टी को सजीव बताते हुऐ कहा कि हमे इसके महत्व को समझना होगा। उन्होंने कहा कि खेती मे रसायनों व उर्वरकांे के अत्यधिक व असंतुलित उपयोग से लागत बढ़ रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण प्रदूषित हो रहे हैं साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे हैं।

अधिक उपज प्राप्त करने के लिए मिट्टी से पोषक तत्वों का ज्यादा दोहन हो रहा है अतः हमे टिकाउ व जैविक खेती की ओर ध्यान देना होगा। यह विश्वविद्यालय कृषि को वास्तविक अर्थांे में कहीं अधिक सतत् और लाभपद्र बनाने के लिए बाधाओं का समाधान करने के प्रति प्रतिबद्व है।

विश्वविद्यालय के अनुसन्धान निदेशक ड़ॉं. जी.एस. आमेटा ने सभी अतिथियों का स्वगत किया। एवं बताया कि यह विश्वविद्यालय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन तथा किसानों तक नई तकनीक एवं योजनाएँ पहुँचाने के लिए सतत् प्रयासरत है। विश्वविद्यालय को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा जैविक खेती पर नेट वर्किंग प्रोजेक्ट प्राप्त हुआ है इसमें मृदा स्वास्थ्य संबंधी कार्य विशेष रूप से किए जायेगें।

कार्यक्रम में डॉ. गजानन्द जाट, डॉ. जे.एल. चौधरी व डॉ. राम हरी मीणा द्वारा लिखित पुस्तक मृदा एवं जल प्रबन्धन तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड आवश्यकता एवं उपयोगिता विषयक फोल्डर का विमोचन भी किया गया।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के आयोजना एवं परिवेक्षण निदेशक डॉं0 आर सी पुरोहित, प्रसार शिक्षा निदेशक डॉं0 आई.जे. माथुर, डॉं0 विमल शर्मा, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर, के अलावा अन्य महाविद्यालयों के अधिष्ठाता-विभागाध्यक्षों, संकाय सदस्यों, राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि नियोजन के वैज्ञानिकों, किसान भाइयों, कृषि विभाग के अधिकारियों, मीडि़या, महाविद्यालय के कर्मचारियों एवं विद्याथियों ने भाग लिया ।

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