धर्म पर आने वाले सकंट के समय समाज एकजुट होः सुप्रकाशमति माताजी
गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि धर्म पर आने वाले संकट के समय समाज को एकजुट को हो ना चाहिये ताकि विरोधी ताकतें हावी नहीं हो पायें। वे आज हिरणमगरी से. 5 स्थित वाटिका में संयम उपरण पिच्छी परिवर्तन, वर्षायोग निष्ठापन आदि कार्यक्रमों के समापन पर आयोजित धर्मसभा में उपस्थित हजारों को श्रावक-श्राविकओं को संबोधित कर रही थी।
गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि धर्म पर आने वाले संकट के समय समाज को एकजुट को हो ना चाहिये ताकि विरोधी ताकतें हावी नहीं हो पायें। वे आज हिरणमगरी से. 5 स्थित वाटिका में संयम उपरण पिच्छी परिवर्तन, वर्षायोग निष्ठापन आदि कार्यक्रमों के समापन पर आयोजित धर्मसभा में उपस्थित हजारों को श्रावक-श्राविकओं को संबोधित कर रही थी।
उन्होेंने कहा कि जैन समाज को त्याग, तपस्या के लिये एकजुट होना चाहिये। संत पर दाग लगने पर पीड़ा होती है। संतो के खिलाफ मोबाईल पर आने वाले संदेश को आगे नहीं भेजना चाहिये। अब भी यदि जैन समाज एकजुट नहीं हुआ तो आने वाले समय में दिगम्बर जैन साधु-संत भ्रमण नहीं कर पायेगा।
कलश स्थापना एवं पिच्छी परिवर्तन समारोह में बोलियों पर लगे प्रतिबंध- सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि यह अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि वर्तमान में समय में समाज देश में ऐसे साधु संतो की खोज कर अपने यहाँ वर्षावास कराता है जिनके माध्यम से समाज में धन को एकत्रित किया जा सकें। वर्षायोग के समय होने वाले कलश स्थापना एंव समापन पर होने वाले पिच्छी परिवर्तन समारोह में लगने वाली लाखों रूपयें की बोलियों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये और इसकी शुरूआज इस वर्षा योग से की है। इस वर्षा योग में न तो कलश स्थापना पर और न हीं आज किसी भी प्रकार की बोली लगायी गई। पुण्र्याजकों को कलश एवं पिच्छी प्रदान की गई। उन्होेंने कहा कि समाज संतो का इस्तेमाल कर अपनी आय को बढ़ा रहा है। पिच्छी संयम का उपकरण ओर अहिंसा का ध्वज है जिसकी कोई कीमत नहीं लगा सकता है।
कलश की बोली से संतो के चरित्र का आंकलन करना गलत परम्परा- कलश स्थापना के समय लगने वाली बोली से संतो के चरित्र का आंकलन किया जाता है जो यह परम्परा गलत है। इसे बंद किया जाना चाहिये। कलश की बोली एक सामाजिक व्यवस्था है। उस आयोजन को लेकर यदि कोई दानदाता मिल जाये तो फिर बोलिया नहीं लगायी जानी चाहिये।
उन्होेंने कहा कि पैसा और साधु को एक साथ जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिये। उन्होेनें सभी का आव्हान किया कि वर्तमान में पंचम काल चल रहा है। आप को विचलित नहीं होना है। अभी तो धर्म पर और संकट आयेंगे। उनका मुकाबला करना होगा। जैन साधु संकट की गली से गुजर रहा है। साधु-संतो का ध्यान रखा जाना चाहिये।
इस अवसर पर आर्यिका सुगीतमति माताजी ने कहा कि मन के नियंत्रण में नहीं होने पर मनुष्य स्वास्थ्य, सम्पत्ति एवं सत्ता का सुख प्राप्त करने के बावजूद दुखी हो जाता है। ईश्वर से मांगना है तो मन को नित्रयंण में करने की शक्ति मांगनी चाहिये। साधु सदैव प्रसन्न रहते है क्योंकि उन्होेंने अपने मन को नियंत्रित करना सीख लिया है।
सुप्रकाश ज्योति मंच के राष्ट्रीय संयोजक ओमप्रकाश गोदावत ने बताया कि गुरू मां के प्रभाव के कारण आज समाज के अनेक युवा धर्म से जुड़ की इसकी राह पर चल पड़े है जो समाज के लिये एक सकारात्मक संकेत है।
मंच के अध्यक्ष राजेश बी.शाह ने बताया कि इससे पूर्व प्रातः आठ बजे सुप्रकाशमति माताजी ससंघ हिरणमगरी से. 5 पंहुचे जहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। कुण्डलगढ़ से आये विशेष कलाकारों द्वारा उनकी भव्य शोभायात्रा निकाली गई।
पिच्छी, शास्त्र, वस्त्र हुए भेंट-पाण्डाल में सुप्रकाशमति माताजी, सुगीतमति माताजी, सुहितमति माताजी को राजेश, रमेश बी.शाह एवं परिवार, अशोक, अजित गादड़ोत, महेन्द्र फान्दोत, महावीर पचोरी ने पिच्छी, केशवललाल, ओमप्रकाश, दिलीप कुमार गोदावत शास्त्री, दाड़मचन्द दाड़म परिवार ने वस्त्र भेंट किये। इस अवसर पर ओमप्रकाश, केशवलाल गोदावत एवं परिवार ने माताजी का पाद प्रक्षालन किया।
संयोजक हीरालाल मालवी ने बताया कि समारोह में माताजी ने वर्षायोग के प्रारम्भ में ध्यानोदय क्षेत्र में स्थापित किये गये मुख्य कलश ओमप्रकाश गोदावत, दर्शन कलश मदनलाल हरावत, ज्ञान कलश हरीश कीकावत, चारित्र कलश बांसवाड़ा के अशोक बोहरा, तप कलश बांसवाड़ा के नानालाल, पुष्पाबेन कीकावत, श्रीयंत्र कलश बांसवाड़़ा के ही सुरेश ललित सिंघवी, तीर्थ क्षेत्र कमेटी कलश राजेश बी.शाह, भक्तामर कलश सुभाष धन्नावत को प्रदान किया गया। मुख्य कलश ओमप्रकाश गोदावत के घर पर माताजी ने स्वयं जा कर वहां स्थापित कराया।
प्रारम्भ में चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर के महामंत्री रमेश जसोत ने स्वागत उद्बोधन दिया। श्रीमती अंजू चम्पावत एण्ड पार्टी द्वारा मंगलाचरण प्रस्तुत की गई।
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