राजस्थान के उर्दू साहित्यकार शीन काफ़ निज़ाम, पद्म श्री से सम्मानित


राजस्थान के उर्दू साहित्यकार शीन काफ़ निज़ाम, पद्म श्री से सम्मानित

इन शायर का वास्तविक नाम है शिव किशन बिस्साजो जोधपुर से हैं। उनका नाम  शिव किशन यानि "SK" को उर्दू हर्फ़ में  'शीन' और 'काफ़' लिखा गया है और 'निज़ाम' उनका तखल्लुस है।

 
राजस्थान के उर्दू साहित्यकार शीन काफ़ निज़ाम, पद्म श्री से सम्मानित Rajasthan Urdu Poet and Litterateur Sheen Kaaf Nizam Conferred with the Padma Shri

Udaipur, January 28, 2025: इस साल के पदम् पुरस्कारों में एक उर्दू साहित्यकार का नाम भी है। नाम है शीन काफ़ निज़ाम जिन्हें पदम् श्री से सम्मानित किया गया। मसलन नाम काफी अजीब लगता है। इन शायर का वास्तविक नाम है शिव किशन बिस्सा जो जोधपुर से हैं। उनका नाम  शिव किशन यानि "SK" को उर्दू हर्फ़ में  'शीन' और 'काफ़' लिखा गया है और 'निज़ाम' उनका तखल्लुस है। इस प्रकार उनका नाम हुआ शीन काफ़ निज़ाम।

उनके कुछ शेर है:

अपनी पहचान भीड़ में खोकर 
खुद को कमरों में ढूंढते है लोग
 

कुछ पंक्तिया इस प्रकार से है:

पुरखों से जो मिली है वो दौलत भी ले न जाए 
ज़ालिम हवा-ए-शहर है इज़्ज़त भी ले न जाए 

उन्होंने दीवान-ए-ग़ालिब और दीवान-ए-मीर सहित कवियों की कई पुस्तकों का देवनागरी में संपादन किया है। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह गुमशुदा दैर की गूंजती घंटियाँ के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

आँसू गिरे तो मेरे ही दामन में आए थे,
आकाश कैसे इतने सितारों से भर गया
आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ,
आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ
मिल गया तो सोचता हूँ क्या करूँ

भागते मंज़रों ने आँखों में
जिस्म को सिर्फ़ आँख भर छोड़ा

बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा

दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे
बे-ख़ौफ़ कोई रास्ता चलने के लिए दे

बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को

कभी जंगल कभी सहरा कभी दरिया लिखा
अब कहाँ याद कि हम ने तुझे क्या क्या लिखा

बर्बादियाँ समेटने का उस को शौक़ है 
लेकिन वो उन के नाम पे बरकत भी ले न जाए 

आदिल है उस के अद्ल पर हम को यक़ीन है 
लेकिन वो ज़ुल्म सहने की हिम्मत भी ले न जाए 

ख़ुद से भी बढ़ के उस पे भरोसा न कीजिए 
वो आइना है देखिए सूरत भी ले न जाए 

शीन काफ़ निज़ाम उर्दू अदब और रिवायत के गहरे जानकार है और उर्दू शायरी के एक सशक्त हस्ताक्षर। इस्‍लामी तौर तरीकों, उनके धर्मग्रंथों, उनके मिथकों का इतना गहरा अध्‍ययन उनके पास है कि आप आसानी से उन्‍हें मौलवी या उलेमा मान सकते  हैं। फिर कथन यह कि भाषा किसी धर्म या मजहब से बंधी हुई नहीं होती। उनकी प्रमुख रचनाएँ है - दश्त में दरिया, और भी नाम है रस्ते का, उस पार की शाम, आदि.    

जहाँ कल था वहीं फिर आ गया हूँ 
मगर सदियों तलक चलता रहा हूँ। 

नहीं पहचानने का ये सबब है 
तेरी आँखों से खुद को देखता हूँ। 
 
‘शुक्रिया यूँ अदा करता है, गिला हो जैसे 
उसका अंदाजे बयाँ सबसे जुदा हो जैसे’ 

यूँ हरेक शख़्स को हसरत से तका करता हूँ 
मेरी पहचान का कोई न रहा हो जैसे। 

सरनगू है साअतों के सिलसिले सहमे हुए।
दूरियां ही दूरियां हैं फासले ही फासले। 
मौसमों का बोझ तन्‍हा सह सकेगा या नहीं 
पेड़ पर जितने भी थे पत्ते पुराने झड़ गये।

कहीं से बोलता कोई नहीं है 
तो बस्‍ती में भी क्‍या कोई नहीं है  
सभी के दम घुटे जाते हैं लेकिन 
खिड़कियां खोलता कोई नहीं है।
 

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