13वॉं पद्मश्री देवीलाल सामर नाट्य समारोह में ‘‘खबसूरत बहू’’ का मंचन
ग्रामीण अंचल की पृष्ठभूमि पर लिखा नाटक खबसूरत बहू भारत के उत्तर एवं पश्चिम भू भाग की ग्रामीण संस्कृति के दर्शन कराता है, जहॉ सामाजिक सरोकार और मान्यताएॅ हमारे जीवन मे बहुत महत्व रखती है और यही हमारे जीवन मूल्य भी है। इन जीवन मूल्यो के निर्वाह में किस प्रकार गॉव का सीधा-सादा जनमानस अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार रहता है। बूढी काकी इसका एक अनूठा उदाहरण हैं जो बचपन से ही विधवा होने के पश्चात् भी परिवार एवं समाज से जुडी रहकर अपनी पहाड जैसी जिंदगी अकेले ही गुजार देती है। बचपन से ही विधवा होने के कारण उसे यह भी नही पता कि बच्चे का जन्म स्त्री-पुरूष के बीच शारीरिक संबध होने पर होता है, वो तो ओझा एवं भगवान की प्रार्थना से ही ऐसा होना मानती आ रही है और इसी कारण या कहे कि अत्यधिक ममता एवं स्नेह के कारण वह स्वयं ही हरी और सुमन के बीच एक दीवार बन जाती है। जिस कारण उसे प्रताडना भी सहनी पडती है और उम्र के इस पडाव पर उसे ज्ञान होता है कि वास्तविकता क्या है। जिस कारण उसे ग्लानि होती है परन्तु अन्त मेें सब सुखद होता है।
भारतीय लोक कला मण्डल के संस्थापक पद्मश्री देवीलाल सामर की स्मृति में छः दिवसीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन ‘‘खबसूरत बहू’’ का मंचन हुआ ।
कार्यक्रम के आरम्भ में संस्था के सहायक निदेशक, गोवर्धन समार व मानद सचिव, रियाज तहसीन, अतिथि ऐडिनबरा समारोह आयोजक एलन टिविड व डॉ लईक हुसैन ने संस्थापक पद्मश्री देवीलालजी सामर सा. की प्रतिमा पर माल्यापर्ण कर कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ । संस्था के सहायक निदेशक, गोवर्धन सामर एवं मानद सचिव, रियाज तहसीन ने बताया कि भारतीय लोक कला मण्डल के 66वें स्थापना दिवस पर लोक कला मण्डल व दी परफॉरमर्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित नाट्य समारोह के तीसरे दिन नाटक ‘‘खबसूरत बहू’’ प्रसिद्व लेखक नाग बोडसे द्वारा लिखित एवं कविराज लईक द्वारा निर्देशित, दी परफोरमर्स, उदयपुर की प्रस्तुति आरंभ हुई।
ग्रामीण अंचल की पृष्ठभूमि पर लिखा नाटक खबसूरत बहू भारत के उत्तर एवं पश्चिम भू भाग की ग्रामीण संस्कृति के दर्शन कराता है, जहॉ सामाजिक सरोकार और मान्यताएॅ हमारे जीवन मे बहुत महत्व रखती है और यही हमारे जीवन मूल्य भी है। इन जीवन मूल्यो के निर्वाह में किस प्रकार गॉव का सीधा-सादा जनमानस अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार रहता है। बूढी काकी इसका एक अनूठा उदाहरण हैं जो बचपन से ही विधवा होने के पश्चात् भी परिवार एवं समाज से जुडी रहकर अपनी पहाड जैसी जिंदगी अकेले ही गुजार देती है। बचपन से ही विधवा होने के कारण उसे यह भी नही पता कि बच्चे का जन्म स्त्री-पुरूष के बीच शारीरिक संबध होने पर होता है, वो तो ओझा एवं भगवान की प्रार्थना से ही ऐसा होना मानती आ रही है और इसी कारण या कहे कि अत्यधिक ममता एवं स्नेह के कारण वह स्वयं ही हरी और सुमन के बीच एक दीवार बन जाती है। जिस कारण उसे प्रताडना भी सहनी पडती है और उम्र के इस पडाव पर उसे ज्ञान होता है कि वास्तविकता क्या है। जिस कारण उसे ग्लानि होती है परन्तु अन्त मेें सब सुखद होता है।
नाटक में मंच पर भुमिकाओं में कविराज, भावना, किरणदीप कौर, मन्जु, वत्सला, दीपिका, अश्विना, रविन्द्र, नरेन्द्र, वीर, विक्रम, महिपाल, आकाश, भानू, सुनिल, देवन्द, जयेश, पवन, दिव्यांश व कुनाल थे । अन्त मे सभी कलाकारो का उप महापौर लोकेश द्विवेदी ने माल्यार्पण कर अभिनन्दन किया।
सहायक निदेशक, गोवर्धन सामर ने बताया कि समारोह के चौथेे दिन 28 फरवरी को सायं 7.30 बजे विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित एवं कविराज लईक द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘मीता की कहानी’’ की प्रस्तुति होगी । नाट्य समारोह 2 मार्च तक चलेगा।
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