पंचायतीराज से सुधरी है महिलाओं की स्थिति


पंचायतीराज से सुधरी है महिलाओं की स्थिति

पंचायतीराज संस्थाओं ने महिलाओं को जमीनी स्तर की राजनीति से जोडऩे का प्रयास किया है। इसमें पहले ग्रामीण महिलाएं केवल घर के चौके चूल्हे व कृषि तक ही सीमित थी, पर अब वे ग्राम

 
पंचायतीराज से सुधरी है महिलाओं की स्थिति

पंचायतीराज संस्थाओं ने महिलाओं को जमीनी स्तर की राजनीति से जोडऩे का प्रयास किया है। इसमें पहले ग्रामीण महिलाएं केवल घर के चौके चूल्हे व कृषि तक ही सीमित थी, पर अब वे ग्रामीण विकास का कार्य भी कर रही हैं।

पंचायतीराज में महिलाओं को पहले 33 प्रतिशत व अब 50 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त हो जाने से महिलाएं राजनैतिक दृष्टि से भी सशक्त हे रही है। पंचायतीराज व्यवस्था का वर्तमान में जो स्वरूप है, वो अब तक हुए कई आंदोलन का सुधरा स्वरूप है।

यह जानकारी समाजशास्त्री नरेश भागर्व ने दी। अवसर था, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के द्वारा भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित भारत की अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में पंचायत प्रणाली विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का। आयोजन सचिव डॉ. सुनील चौधरी ने बताया कि कार्यक्रम का उद्घाटन जनजाति विश्वविद्यालय के कुलपति टीसी डामोर ने किया। अध्यक्षता कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने की।

सेमिनार में गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, झारखण्ड, उत्तराखंड, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल सहित भारत से विषय विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता आदि ने हिस्सा लिया।

इस अवसर पर भागर्व ने कहा कि ग्रामीण विकास का आधार पंचायतीराज पर ही निर्भर करता है। इसलिए जरुरी है कि पंचायतीराज में जो योजनाएं आदि बनाई जाए, उसमें पूरी गंभीरता बरती जाए। यही नहीं पंचायतीराज को ग्रामीण विकास के लिए पर्याप्त बजट से भी लैस किया जाना चाहिए। सेमिनार के पहले दिन तीन तकनीकी सत्रों में 47 पत्रों का वाचन हुआ।

जोड़ा ग्राम विकास की मुख्य धारा से

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने बताया कि पंचायतीराज संस्थाओं में हर वर्ग की महिलाओं को आरक्षण देकर निश्चित रूप से इनको ग्राम विकास की मुख्य धारा से जोडऩे का प्रयास किया गया है। यदि समाज के इस वर्ग कार्य में जागरुकता लाई जाए तो विकास के सारे कार्यक्रम चाहे वे मजदूरी रोजगार से संबंधित हो या स्वरोजगार से संबंधित हो, महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान होने के कारण गांवों को विकसित किया जा सकता है।

इस प्रकार विकस के कार्यों में महिलाओं की भागीदारी व नेतृत्व आगे चलकर विधायिका  में भी आरक्षण देने का रास्ता प्रशस्त होगा। इस प्रकार विधायिका मेंमिले आरक्षण से महिला की राष्ट्रीय विकास में भागीदारी को सुनिश्चित की जा सकती है।इस अवसर पर मास्टर ऑफ  सोशल वर्क के प्राचार्य प्रो. आरबीएस वर्मा, बारां जिला कलेक्टर सुमतिलाल बोहरा, सहायक आचार्य डॉ. लालराम जाट, डॉ. वीणा द्विवेदी ने भी विचार रखें।

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