उदयपुर प्रवास रहा एक तीर्थ यात्रा के समान: आचार्य सुकुमालनन्दी
विगत कई महीनों से उदयपुर की जनता को धर्म व ज्ञान का बोध करने वाले संत आचार्य सुकुमालनन्दीजी का विहार- विदाई समारोह भावभीना एवं ऐतिहासिक रहा।

विगत कई महीनों से उदयपुर की जनता को धर्म व ज्ञान का बोध करने वाले संत आचार्य सुकुमालनन्दीजी का विहार- विदाई समारोह भावभीना एवं ऐतिहासिक रहा।
दोपहर डेढ़ बजे हुमड़ भवन में अपनी अन्तिम संक्षिप्त सभा को सम्बोधित कर बैण्डबाजों व सैंकड़ों गुरू भक्तों सहित शोभा यात्रा के साथ शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए नगर निगम के टाउनहॉल प्रांगण में पहुंचे। मार्ग में जगह- जगह आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन, मंगल आरती और पुष्प वृष्टि कर आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया गया।
शोभायात्रा जब टाउन हॉल के मुख्य स्वागत द्वार पर पहुंची तो सैंकड़ों भक्तों ने जयकारा गुरूदेव का जय-जय गुरूदेव का जयघोष कर पुष्पवृष्टि कर आचार्यश्री का जोरदार स्वागत किया। इसके बाद आचार्यश्री वहां बने पाण्डाल में पहुंचे।
धर्मसभा प्रारम्भ होने से पूर्व दीप प्रज्वलन, मंगलाचरण, पत्रिका विमोचन, तस्वीर अनावरण आदि अनेक मांगलिक कार्यक्रम हुए। शहर की सभी जैन कॉलोनियों के अध्यक्षों ने आचार्यश्री को भावभीनी विनयांजलि अर्पित की। सभा के बीच-बीच में महिलाएं मंगल गान और विदाई गीत गाकर आचार्यश्री के प्रति अपन भक्ति भावनाएं अर्पित कर रही थीं।
इस दौरान विदाई- विहार के अपने प्रवचन में आचार्य सुकुमालनन्दी जी महाराज ने कहा कि उदयपुर प्रवास उनके लिए एक तीर्थ यात्रा की तरह रहा है। यह चातुर्मास उनके जीवन के लिए नींव का पत्थर साबित होगा। इसमें सभी सम्प्रदायों की कडिय़ों को जोडऩे के लिए कई कार्यक्रम सम्पादित हुए। मानव जाति एक होकर प्रेम, वात्सल्य और सौहाद्र्र से जुड़ कर संगठन से बन्ध गई, यह बात सबसे महत्वपूर्ण रही। आचार्यश्री ने कहा इतिहास साक्षी है जब भी कोई विशेष घटना घटी, उसमें मेवाड़ साक्षी रहा। उसी प्रकार मेवाड़ की धरा पर हुए इस अभूतपूर्व चातुर्मास को हम कभी नहीं भूल पाएंगे। आचार्यश्री ने जब यह कहा कि मेरे व्यवहार से किसी के दिल को ठेस पहुंची हो तो क्षमा याचना स्वीकार करें।
आचार्यश्री ने उदयपुरवासियों के लिए सन्देश दिया कि जो मैंने परोपकार, संगठन के लिए बीड़ा उठाया है, उसे पूरा करने का दायित्व अब उदयपुरवासियों का हैं। सभी लोग सुखी समृद्ध रहें और इसी तरह या इससे भी कहीं अधिक भक्ति करें, सभी के घर के ज्ञान का दीपक जले। आचार्यश्री ने कहा कि हम तो हलके होकर जा रहे हैं, सारा भार अब उदयपुरवासियों पर छोड़ कर। घड़ी की सुईयां बदल गई, वक्त बदल गया, उसी प्रकार अब साधु का स्थान भी बदल रहा है। जब साधु विहार कर रहा होता है तो उसे रोकना नहीं चाहिये क्योंकि वह आप जैसे दूसरे भाईयों के कल्याण के लिए ही तो जा रहा है।
आचार्यश्री ने सभी 35 गांव और शहरों के प्रतिनिधियों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि संघ एक है और निवेदन करने वाले अनेक। चातुर्मास तो एक जगह ही होगा। इसलिए किसी को भी नाराज होने की आवश्यकता नहीं है।
इस अवसर पर भीलवाड़ा से पांच बसें भर कर यात्री उदयपुर पहुंचे और उन्होंने भीलवाड़ा पधारने हेतु आचार्यश्री को श्रीफल चढ़ाया।
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