पाषाण की मूर्तियों ने जीवंत कर दिया इतिहास
सिटी पैलेस में आयोजित द्वितीय विश्व जीवंत विरासत महोत्सव - 2014 के तहत शुक्रवार को दूसरे दिन प्रतिमा वीथी का उद्घाटन भारत में आस्ट्रिया के राजदूत हिज एक्सीलैंसी बनार्ड व्रेब्ज़ ने किया।
सिटी पैलेस में आयोजित द्वितीय विश्व जीवंत विरासत महोत्सव – 2014 के तहत शुक्रवार को दूसरे दिन प्रतिमा वीथी का उद्घाटन भारत में आस्ट्रिया के राजदूत हिज एक्सीलैंसी बनार्ड व्रेब्ज़ ने किया।
इस अवसर पर महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़, लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ एवं विजयराज कुमारी मेवाड़ आमंत्रित अतिथियों के साथ उपस्थित थे।
सिटी पैलेस संग्रहालय सलाहकार डॉ. अलका पाण्डे ने बताया कि विश्व जीवंत विरासत महोत्सव 2014 महोत्सव के तहत शुक्रवार को सिटी पैलेस के जनाना महल में प्रतिमा वीथी का उद्घाटन किया गया। इस वीथी का उद्घाटन भारत में आस्ट्रिया के राजदूत हिज एक्सीलैंसी बनार्ड व्रेब्ज़ ने किया। वीथी में 47 मूर्त शिल्प कृतियों को प्रदर्शित किया गया है। फाउण्डेशन को इस कार्य में भारत सरकार के कला एवं सांस्कृतिक मंत्रालय की वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है।
सिटी पैलेस संग्रहालय सलाहकार डॉ. अलका पाण्डे ने बताया कि वर्तमान में सिटी पैलेस संग्रहालय में 308 मूर्ति शिल्प संग्रहित एवं संरक्षित हैं। उनमें से इस वीथी में चयनित 47 कलाकृतियां रखी हुई है जिन्हें विषय वस्तु के आधार पर चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है इसमें देवता, सुरसुंदरी, देवियां एवं पशु आकृतियां, स्मारक प्रस्तर। यह वर्गीकरण संग्रह में संकलित मूर्तियों के कलाबोध (कला सौंदर्य) एवं प्रतिनिधित्व के गुण के आधार पर किया गया है।
डॉ. अलका पाण्डे ने बताया कि राजस्थान राज्य पुरातत्व विभाग को सन् 1965 में सभी प्रतिमाओं का विवरण दे दिया गया था, तत्पश्चात श्री एकलिंगजी ट्रस्ट द्वारा उन प्रतिमाओं को महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन के अंतर्गत संचालित सिटी पैलेस संग्रहालय में प्रदर्शित कर इनकी सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया।
फाउण्डेशन की स्थापना के साथ ही ये प्रतिमाएं संग्रहालय सूची का हिस्सा बन गई व साथ ही इनका राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग द्वारा पंजीयन कर दिया गया। ये अमूल्य प्रतिमाएं राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में जानी जाती हैं व वर्तमान में सिटी पैलेस संग्रहालय में संरक्षित है व भावी पीढ़ी के लिए प्रदर्शित की जा रही है। सिटी पैलेस को इन संरक्षण कार्यों के लिए भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय की वित्तीय सहायता प्राप्त है। प्रतिमा वीथी में संग्रहित की गई मूर्तियों का विवरण निम्न है-
प्रथम कक्ष देवता – सूर्यदेव अपने अनुचरों के साथ (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), शिवमंदिर का द्वार (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), अंधकासुर वध करते शिव की प्रतिमा (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), इन्द्र (देवताओं के राजा) (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), गणेश (गजमुखी देवता) (सरपेन्टाईन 8वीं-9वीं शताब्दी), गजेन्द्र मोक्ष करते विष्णु की मूर्ति (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), अग्नि (आग के देवता) (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), पाश्र्वनाथ (23वें जैन तीर्थंकर) (सरपेन्टाईन 10वीं-11वीं शताब्दी), पाश्र्वनाथ पगल्या जी (पाश्र्वनाथ के पद चिन्ह) (मार्बल 16वीं-17वीं शताब्दी), यम (मृत्यु के देवता) एवं भैरव (शिव के उग्र अवतार) (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), चतुर्भुज विष्णु (सेण्ड स्टोन 9वीं-10वीं शताब्दी)।
द्वितीय कक्ष सुरसुंदरी – नर्तकी (नृत्यरत सुरसुंदरी) (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), मर्कटचेष्टा सुरसुन्दरी (बंदर द्वारा अधोवस्त्र खींचते हुए) (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), नर्तकी (नृत्यरत सुरसुंदरी) (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), सुरसुंदरी (मार्बल 10वीं-11वीं शताब्दी), स्तम्भ पर दो सुरसुन्दरियां (मार्बल 10वीं-11वीं शताब्दी), मर्कटचेष्टा सुरसुन्दरी (बंदर द्वारा अधोवस्त्र खींचते हुए) (मार्बल 10वीं-11वीं शताब्दी)।
तृतीय कक्ष देवियां – लक्ष्मी (धन की देवी) (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), महिषासुर मर्दिनी (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), ब्रह्माणी (ब्रह्मा की शक्ति) (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), पार्वती (शिव की पत्नी ) (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), वैष्णवी (विष्णु की शक्ति) (मार्बल 13वीं-14वीं शताब्दी), इन्द्राणी (इन्द्र की शक्ति) (मार्बल 15वीं-16वीं शताब्दी), महेश्वरी (शिव/महेश्वर की शक्ति) (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), सरस्वती (ज्ञान की देवी) (मार्बल 14वीं-15वीं शताब्दी), लक्ष्मी नारायण (दिव्य युगल) (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी)।
चतुर्थ कक्ष पशु आकृतियां – स्मारक प्रस्तर- सर्वभौम नामक हाथी पर सवार कुबेर (मार्बल 13वीं-14वीं शताब्दी), योद्धा स्मारक प्रस्तर (पत्थर) (मार्बल 19वीं-20वीं शताब्दी), पुरूषोत्तम जी (सरपेन्टाईन 18वीं-19वीं शताब्दी), व्याल (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), व्याल (संकर प्राणी) (मार्बल 13वीं-14वीं शताब्दी), सिंह आकृति (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी)।
बालकनी – महावीर (24वें तीर्थंकर) (मार्बल 10वीं-11वीं शताब्दी), युवा परिचारक (सरपेन्टाईन 6-7वीं शताब्दी), महिषासुर मर्दिनी (सरपेन्टाईन 7वीं-8वीं शताब्दी), चंवर धारिणी (सरपेन्टाईन 6-7वीं शताब्दी), नृत्यांगना एवं सुरसुंदरी (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), लेखन करती सुरसुंदरी (मार्बल 10वीं-11वीं शताब्दी), सुगन्धा सुरसुंदरी (छल्ले से खेलते हुए) (मार्बल 13वीं-14वीं शताब्दी), भैरव (शिव का उग्र रूप) (मार्बल 13वीं-14वीं शताब्दी), विष्णु (ब्रह्माण्ड के रक्षक) (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), सदाशिव (मार्बल 13वीं-14वीं शताब्दी), राम-रावण युद्ध का दृश्य (मार्बल 12वीं-13वीं शताब्दी), नवग्रह (सरपेन्टाईन 8वीं-9वीं शताब्दी), संगीतज्ञ एवं नर्तक (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी), नाट्य मुद्रा में सुरसुंदरी (मार्बल 11वीं-12वीं शताब्दी)।
विरासत जीवंत रहे उसके लिए स्वयं का जीवंत होना जरूरी है: शुक्रवार को संगोष्ठी के दूसरे दिन फतहप्रकाश पैलेस होटल के दरबार हॉल सभागार में विषय विशेषज्ञ रामनिवास, श्वेता राव, ओसामा मंजर, मुजफ्फर अहमद अंसारी, शांतिनी राय चौधरी, स्वर्णा चित्रकार, नेपाल के काय वेसी, फोर्ड फाउण्डेशन की डॉ. रवीना अग्रवाल, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की डॉ. अंजू उपाध्याय, आयरलैण्ड की मेरी मेककेरथी ने विश्व जीवंत विरासत महोत्सव पर अपने शोध संबंधी व्याख्यान दिये।
इस अवसर पर फाउण्डेशन के ट्रस्टी लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि कोई भी विरासत जीवंत रहने के लिए जरूरी है कि उस विषय को जानने वाला व्यक्ति स्वयं जीवंत हो। व्यक्ति यदि अपनी परंपरा, संस्कृति, धर्म, मानवता एवं सच्चे इंसान के स्वरूप को मृत्युपरंत बनाए रखे तो निश्चित रूप से वह जीवंत विरासत को आगे ले जाने में सक्षम है। इस अवसर पर उन्होंने फाउण्डेशन द्वारा किए जाने वाले बहुआयामी प्रयासों का उल्लेख किया है। संगोष्ठी में फाउण्डेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़ भी उपस्थित रहे।
महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन एवं कला समर्पित संस्थान लोकल आर्ट डॉट कॉम के सौजन्य से यहां सभा शिरोमणी के दरीखाने में लगाई गई कला प्रदर्शनी में सूक्ष्म चित्रकारी में माहिर दीपक सोनी, टेराकोटा के कारीगर गंगाराम सहाय, ठीकरी कला के कृष्णकांंत शर्मा, काष्ठ कला के विष्णु सिकलीगर, कावड़ कलाकार मांगीलाल मिस्त्री, संगमरमर की कृतियां रचने वाले अंबालाल भट्ट, नेल आर्ट के कलाकार प्रकाश के विभिन्न कृतियां प्रदर्शित की गई। शुक्रवार को दूसरे दिन देशी एवं विदेशी पर्यटकों का इस प्रदर्शनी को देखने के लिए हूजूम उमड़ पड़ा।
सिटी पैलेस के जनाना महल के लक्ष्मी चौक में बने चौमुखा में परंपरा एवं आधुनिकता के मेल को समर्पित फ्रांस के स्ट्रासबर्ग शहर के फोटो एवं उदयपुर शहर के विभिन्न धर्मो, लोगों, शैलियों के फोटो प्रदर्शित किए गए। स्ट्रासबर्ग के फोटोग्राफर अल्बर्ट हूबर एवं उदयपुर की फोटोग्राफर अनुराधा सरूप द्वारा दोनों ही जगहों के खींचे गए करीब 50 फोटो यहां प्रदर्शित किए गए। इस प्रदर्शनी को देखने शुक्रवार को कई लोग पधारे।
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