15 दिन की नवजात के हृदय में छेद की सफल स्टेंटिंग

15 दिन की नवजात के हृदय में छेद की सफल स्टेंटिंग

उदयपुर निवासी रमीज़ जहां (उम्र 30 वर्ष) की निजी हाॅस्पिटल में सामान्य डिलिवरी हुई। डिलीवरी के कुछ घंटों बाद ही नवजात का शरीर नीला होना शुरु हो गया। आपातकालीन स्थिति में परिजन उसे गीतांजली हाॅस्पिटल लाए जहां हृदय रोग के संदेह के चलते नवजात के एक्स-रे एवं ईकोकार्डियोग्राफी की जांचें की गई जिसमें पता चला कि नवजात के दिल में छेद और हृदय का एक वाॅल्व नहीं बना हुआ है। साथ ही हृदय से निकलने वाली दो मुख्य धमनियां आपस में जुड़ी हुई है। यह धमनियां जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तब तक जुड़ी रहती है जिससे बच्चा जीवित रह सके परन्तु जन्म के बाद यह धमनियां प्राकृतिक रुप से बंद हो जाती है। इस जन्मजात हृदय रोग को टेट्रोलोजी आॅफ फैलाॅट विद् पल्मोनरी एट्रेक्सिया कहते है। इस बीमारी का इलाज सर्जरी द्वारा किया जाता है। परंतु नवजात की नाजुक हालत को देखते हुए सर्जरी संभव नहीं थ

 

15 दिन की नवजात के हृदय में छेद की सफल स्टेंटिंग

गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के कार्डियोलोजिस्ट की टीम ने 15 दिन के नवजात की पीडीए स्टेंटिंग कर नया जीवन प्रदान किया। इस सफल इलाज करने वाली टीम में कार्डियोलोजिस्ट डाॅ कपिल भार्गव, डाॅ रमेश पटेल, डाॅ डैनी कुमार एवं डाॅ शलभ अग्रवाल शामिल है।

क्या था मामला?

उदयपुर निवासी रमीज़ जहां (उम्र 30 वर्ष) की निजी हाॅस्पिटल में सामान्य डिलिवरी हुई। डिलीवरी के कुछ घंटों बाद ही नवजात का शरीर नीला होना शुरु हो गया। आपातकालीन स्थिति में परिजन उसे गीतांजली हाॅस्पिटल लाए जहां हृदय रोग के संदेह के चलते नवजात के एक्स-रे एवं ईकोकार्डियोग्राफी की जांचें की गई जिसमें पता चला कि नवजात के दिल में छेद और हृदय का एक वाॅल्व नहीं बना हुआ है। साथ ही हृदय से निकलने वाली दो मुख्य धमनियां आपस में जुड़ी हुई है। यह धमनियां जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तब तक जुड़ी रहती है जिससे बच्चा जीवित रह सके परन्तु जन्म के बाद यह धमनियां प्राकृतिक रुप से बंद हो जाती है। इस जन्मजात हृदय रोग को टेट्रोलोजी आॅफ फैलाॅट विद् पल्मोनरी एट्रेक्सिया कहते है। इस बीमारी का इलाज सर्जरी द्वारा किया जाता है। परंतु नवजात की नाजुक हालत को देखते हुए सर्जरी संभव नहीं थी अन्यथा मृत्यु की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती।

डाॅक्टर द्वारा क्या इलाज किया गया?

नवजात की हालत को स्थिर करने के लिए एवं सर्जरी तक जीवित रखने के लिए गीतांजली के कार्डियोलोजिस्ट द्वारा पीडीए स्टेंटिंग की गई। पीडीए एक रास्ता होता है जो फेफड़ों तक रक्त की आपूर्ति करता है। ऐसे मामलों में बच्चों का जीवित रहना सिर्फ पीडीए पर ही निर्भर करता है। अनुभवी एवं प्रशिक्षित चिकित्सकों की टीम ने मात्र आधे घंटें की प्रक्रिया से जुड़ी हुई धमनियों के बीच स्टेंट डाल दिया। पाँव की नस से इस पीडीए को स्टेंट किया जिससे यह पीडीए खुला रहे और उचित रक्त फेफड़ों में जा सके जिससे नवजात को आॅक्सीजन मिल सके एवं सर्जरी तक वह जीवित रह सके।

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डाॅ पटेल ने बताया कि एक लाख में से केवल 3 या 4 नवजात में पाए जाने वाली इस बीमारी में त्वरित उपचार की आवश्यकता होती है। किन्तु इतने कम वजनी नवजात का उपचार करना काफी जटिल होता है। उन्होंनें यह भी कहा कि यह पीडीए स्टेंटिंग का इलाज सिर्फ उन्हीं सेंटर पर होता है जहां पीडियाट्रिक कार्डियोलोजी एवं पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जरी की सुविधा उपलब्ध होती है। दिल्ली, मुबंई, चेन्नई जैसे महानगरों के बाद अब राजस्थान के उदयपुर शहर में भी यह इलाज संभव है। नवजात का इलाज राजस्थान सरकार की भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत निःशुल्क हुआ।

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