राजस्थान में पहली बार किडनी के उपचार में एंजियोप्लास्टी द्वारा सफल उपचार
गीतांजली हॉस्पिटल के नेफ्रोलोजी विभाग के डॉ जी.के.मुखिया ने राजस्थान का पहला एंजियोप्लास्टी द्वारा बायपास ग्राफ्ट के ब्लॉकेज का इलाज किया। इस मामले में डॉ मुखिया के साथ कैथ लेब स्टाफ शामिल था।
गीतांजली हॉस्पिटल के नेफ्रोलोजी विभाग के डॉ जी.के.मुखिया ने राजस्थान का पहला एंजियोप्लास्टी द्वारा बायपास ग्राफ्ट के ब्लॉकेज का इलाज किया। इस मामले में डॉ मुखिया के साथ कैथ लेब स्टाफ शामिल था।
डॉ मुखिया ने बताया कि उदयपुर निवासी 45 वर्षीय रोगी रंजीत पिछले 4 वर्षों से डायलिसिस पर है। जब दो वर्ष पूर्व मुख्य धमनियां ब्लॉक होने की वजह से रोगी के शरीर में सूजन आने लगी थी और फिस्टूला द्वारा डायलिसिस करने में भी दिक्कत होने लगी थी तो इसके उपचार के लिए जब वे गीतांजली अस्पताल आए तो कार्डियक सर्जन डॉ संजय गाँधी व नेफ्रोलोजिस्ट डॉ मुखिया ने मिलकर रोगी के पैर की नस का ग्राफ्ट बायपास के लिए इस्तेमाल किया व रोगी को ठीक किया।
इसके पश्चात् उसकी सूजन कम हुई व फिस्टूला द्वारा डायलिसिस भी सही से होने लगा। किंतु इस शनिवार को वे दोबारा आए जब उनके चेहरे, छाती व हाथ में सूजन दोबारा होने लगी। इसके बाद एंजियोग्राफी की गई जिससे पता चला कि बायपास ग्राफ्ट के अंतिम सिरे पर गहरा सिकुड़ापन आ गया है जिसके कारण रक्त प्रवाह सही से नही हो रहा था। इसके उपचार के लिए भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत निःशुल्क एंजियोप्लास्टी का 3 घंटे की प्रक्रिया हुई। इस एंजियोप्लास्टी के बाद रंजीत के हाथ, छाती व चेहरे की सूजन में कमी हुई व अब वह ठीक है और फिस्टूला द्वारा डायलिसिस भी सही से हो रहा है।
बायपास की जगह एंजियोप्लास्टी अच्छा विकल्प
डॉ मुखिया ने बताया कि यदि यह उपचार एंजियोप्लास्टी द्वारा नही होता तो रोगी को एक ओर बायपास की जरूरत होती। एंजियोप्लास्टी में फायदा यह हुआ कि रोगी उसी दिन घर जा सकता है। वहीं बायपास करने में दिक्कते यह होती कि रोगी को कई दिनों तक अस्पताल में ही रहना पड़ता और खर्चा भी अधिक होता। उन्होंने बताया कि यह एंजियोप्लास्टी द्वारा बायपास ग्राफ्ट का उपचार राजस्थान में पहली बार हुआ है।
डायलिसिस फिस्टूला में एंजियोप्लास्टी की महत्ता
डॉ मुखिया ने बताया कि आज के दौर में किडनी फेल्योर मरीजों के लिए डायलिसिस फिस्टूला ज्यादा कारगर माध्यम इसलिए है क्योंकि यह लंबी अवधि तक काम करता है और इसमें जटिलताएं भी कम रहती है। लेकिन कुछ मरीजों में इसकी परेशानियां सामने आती है जैसे फिस्टूला वाले हाँथ में सूजन, रक्तप्रवाह जरूरत से कम मिलना, डायलिसिस की सुई निकालने के बाद रक्त प्रवाह न रूकना, मुख्य शिराओं या धमनियों में सिकुडापन जैसा कि इस मरीज में सूजन के रूप में हुआ। इसलिए इस मरीज की तरह लोगों के पास फिस्टूला के उचित कार्य करने के लिए सर्जरी के अलावा एंजियोप्लास्टी भी एक और वैकल्पिक माध्यम है।
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