एपिलेप्सी रोगियों का सर्जरी द्वारा सफल इलाज


एपिलेप्सी रोगियों का सर्जरी द्वारा सफल इलाज

उदयपुर, गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल, न्यूरोसाइंस सेंटर की न्यूरो टीम ने 10 वर्षीय व 28 वर्षीय रोगियों की एपिलेप्सी सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। डाॅ अनीस जुक्करवाला, न्यूरोलोजिस्ट एवं एपिलेप्टोलोजिस्ट ने बताया कि पहला मरीज 10 वर्षीय बच्चा था जो पिछले 5 वर्षों से एपिलेप्सी की बीमारी से पीड़ित था। वह महीने में 3-4 बार बेहोश हो जाता था। वहीं दूसरा 28 वर्षीय रोगी पिछले 13 वर्षों से इसी बीमारी से ग्रसित था। यह रोगी भी बार-बार बेहोश होना एवं गिरने की परेशानी से जूझ रहा था।

 
एपिलेप्सी रोगियों का सर्जरी द्वारा सफल इलाज

उदयपुर, गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल, न्यूरोसाइंस सेंटर की न्यूरो टीम ने 10 वर्षीय व 28 वर्षीय रोगियों की एपिलेप्सी सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। डाॅ अनीस जुक्करवाला, न्यूरोलोजिस्ट एवं एपिलेप्टोलोजिस्ट ने बताया कि पहला मरीज 10 वर्षीय बच्चा था जो पिछले 5 वर्षों से एपिलेप्सी की बीमारी से पीड़ित था। वह महीने में 3-4 बार बेहोश हो जाता था। वहीं दूसरा 28 वर्षीय रोगी पिछले 13 वर्षों से इसी बीमारी से ग्रसित था। यह रोगी भी बार-बार बेहोश होना एवं गिरने की परेशानी से जूझ रहा था। इन दोनों ही रोगियों में तीन-चार प्रकार की दवाईयां देने पर भी दौरे रुक नहीं रहे थे। गीतांजली हाॅस्पिटल में डाॅ अनीस जुक्करवाला से परामर्श के पश्चात् मस्तिष्क की विशेष तरह की एमआरआई जाचं की गई जिससे दोनों रोगियों में मस्तिष्क की दायीं ओर मीसीयल टेम्पोरल स्केलोरोसिस नामक बिमारी का पता चला। मस्तिष्क के दायें एवं बायें हिस्से में हिप्पोकैम्पस नामक एक विशेष नस जिसका काम याद्दाश्त एवं भावनाओं को नियंत्रित करना होता है, कई बार बचपन में बुखार के साथ आने वाली मिर्गी, संक्रमण, सिर की चोट आदि कारणों से यह नस धीरे-धीरे एक तरफ से सूख जाती है। सूखी हुई नस दिमाग में केवल दौरे बनाने का काम करती है जो दवाईयों द्वारा नियंत्रित नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में दवाईयों द्वारा इलाज करने पर केवल 10 प्रतिशत रोगी ही ठीक हो पाते है। परंतु सर्जरी द्वारा इलाज होने से लगभग 80 प्रतिशत रोगी ठीक हो कर दवाई मुक्त हो जाते है। सर्जरी का खतरा भी केवल 0.001 प्रतिशत होता है जो आए दिन पढ़ने वाले दौरे से कम है।

इन रोगियों की विशेष तरह की वीडियो ईईजी जांच से सुनिश्चित किया गया कि दौरे उसी सूखी हुई नस से उत्पन्न हो रहे है। डाॅ उदय भौमिक (चीफ न्यूरो सर्जन, जीएमसीएच) ने दोनों रोगियों की सर्जरी के लिए एक विशेष टीम गठित की जिसमें न्यूरोसर्जन डाॅ गोविंद मंगल एवं न्यूरो एनेस्थेटिस्ट डाॅ नीलेश भटनागर शामिल थे। इस टीम की विशेष मदद डाॅ आदित्य गुप्ता (सीनियर न्यूरोसर्जन आर्टेनिस हाॅस्पिटल, गुड़गांव) ने प्रदान की। इन दोनों रोगियों की विशेष सर्जरी की गई जिसको एंटीरियर टेम्पोरल लोबेक्टोमी विद् एमिगडालो हिप्पोकैम्पेकटोमी कहते है। साथ ही आॅपरेशन पूरा होने पर स्पेशल इलेक्ट्रोड (इलेक्ट्रोर्कोटीकोग्राफी) द्वारा डाॅ अनीस ने सुनिश्चित किया कि अब अंदरुनी दौरे नहीं आ रहे है। डाॅ अनीस ने यह भी बताया कि मीसीयल टेम्पोरल स्केलोरोसिस के अलावा बहुत सी और बीमारियों में भी सर्जरी द्वारा दौरे बंद किए जा सकते है।

डाॅ भौमिक ने बताया कि भारत में लगभग कुछ ही केंद्रों पर मिर्गी का सर्जरी द्वारा उपचार किया जाता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि एपिलेप्सी सर्जरी के लिए एक समर्पित एवं प्रशिक्षित न्यूरोलोजिस्ट एवं न्यूरो सर्जन की टीम जिनका एपिलेप्सी रुचि क्षेत्र हो जरुरी है। इस कारण ही गीतांजली सम्पूर्ण राज्य का एकमात्र एपिलेप्सी सर्जरी केंद्र के रुप में स्थापित हुआ है जिसमें अब तक पाँच से अधिक मिर्गी रोगियों का सर्जरी द्वारा सफल इलाज किया जा चुका है।

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