दो दिन के षिषु की आंत का सफल उपचार


दो दिन के षिषु की आंत का सफल उपचार

हर्षस्प्रंग डिसीज़ नामक बिमारी में जन्म से ही आंतों का कुछ या ज्यादा हिस्सा खराब होता है और इस वजह से मल सही जगह से बहार निकल नहीं पाता है जिसके कारण पेट फूलता जाता है और बच्चे की जान भी जा सकती है। इस बिमारी का पता इस बच्चे की गंभीर स्थिति के कारण केवल सर्जरी द्वारा ही लगाया जा सकता था

 

दो दिन के षिषु की आंत का सफल उपचार

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर के बाल एवं षिषु रोग सर्जन डॉ अतुल मिश्रा ने 15 अगस्त 2016 को 2 दिन के बच्चे के जन्म से ही गंभीर रोग हर्षस्प्रंग से पीडि़त का जटिल ऑपरेषन कर स्वस्थ किया।

डॉ अतुल मिश्रा ने बताया कि यह बच्चा बहुत ही गंभीर स्थिति में गीतांजली हॉस्पिटल में भर्ती हुआ था । भर्ती के समय बच्चे की बचने की आषा बहुत ही कम थी । बच्चे को सेप्रिस न्यूमोनिया और पेट फूलने की षिकायत भी थी । षुरुआत में बच्चे को नवजात गहन चिकित्सा ईकाई (छप्ब्न्) में डॉ महेंद्र जैन (नियोनेटोलोजिस्ट) की देख-रेख में रखा गया । स्थिति कुछ सुधरने पर यह स्पश्ट हुआ कि बच्चे को सर्जिकल समस्या है । इसके बाद खतरा उठाते हुए बच्चे का ऑपरेषन किया गया । ऑपरेषन के दौरान यह पता चला कि बच्चे को हर्षस्प्रंग डिसीज़ नामक बिमारी है जिसमें जन्म से ही आंतों का हिस्सा खराब होता है । इस बिमारी में दो से तीन स्टेज़ में सर्जरी की जाती है और इस बिमारी की वज़ह से मल भी सही द्वार से बहार नहीं आ पाता है।

इस बच्चे के पहली स्टेज़ में कोलोस्टमी और मल्टीपल बायोप्सी की गई । और 6 से 8 महीने के बाद डेफिनेटिव रिपेयर कर आंतों को पूरी तरह से ठीक किया जाएगा जिससे बच्चा सामान्य रुप से मल को सही रास्ते से बहार निकाल पाएगा । डॉ मिश्रा ने कहा कि यह एक जीवन रक्षक प्रक्रिया है जिससे बच्चे को जिंदगी दी गई । ढाई घंटे चले इस ऑपरेषन में डॉ अतुल मिश्रा के साथ निष्चेतना विभाग के डॉ अनिल, बाल एवं षिषु रोग विभाग के डॉ देवेंद्र सरीन, नियोनेटोलोजिस्ट डॉ महेंद्र जैन और नवजात गहन चिकित्सा ईकाई का नर्सिंग स्टाफ आदि मौजूद थे।

उन्होंने यह भी बताया कि हर 5000 बच्चों में से किसी एक को यह बिमारी होती है।

क्या होता है हर्षस्प्रंग डिसीज़?

हर्षस्प्रंग डिसीज़ नामक बिमारी में जन्म से ही आंतों का कुछ या ज्यादा हिस्सा खराब होता है और इस वजह से मल सही जगह से बहार निकल नहीं पाता है जिसके कारण पेट फूलता जाता है और बच्चे की जान भी जा सकती है। इस बिमारी का पता इस बच्चे की गंभीर स्थिति के कारण केवल सर्जरी द्वारा ही लगाया जा सकता था । क्यों जटिल था यह मामला? डॉ मिश्रा ने बताया कि यह मामला इसलिए जटिल था क्योंकि बच्चे की गंभीर स्थिति के कारण इस बिमारी का इलाज केवल ऑपरेषन द्वारा ही संभव था और इससे बच्चे की जान को खतरा होने पर भी गीतांजली हॉस्पिटल में मौजूद डॉक्टर्स की टीम और अत्याधुनिक सुविधाओं के कारण बच्चे को नई जिंदगी मिली।

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